अनंत सिंह का साम्राज्य ढ़हने की मुनादी करने से पहले थोडा़ पीछे मुड़कर देख लीजिए! बिहार की सत्ता भले ही बदलती रही है,लेकिन अनंत का रूतबा नहीं बदला है। लालूराज में उनकी चलती थी। लेकिन नीतीशराज में तो वे हवा में उड़ने लगे। धन-संपत्ति के साथ उनका रसूख बढा़ और हनक भी बढी़। हनक ऐसी कि अनंत से पंगा लेने पर नीतीशराज में मंत्री रहीं एक कद्दावर महिला नेता को पार्टी तक छोड़नी पडी़। लेकिन अनंत का कुछ नहीं बिगडा़।
सत्ता के भीतर अनंत की पैठ की चर्चा करते हुए एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने कहा,’ मुझे अच्छी तरह याद है! नीतीश सरकार में मंत्री वह महिला नेता पुलिस की मदद मांग रही थीं। वह इतनी आतंकित थीं कि फोन पर अपनी बात कहते-कहते रोने लगीं! यह हालत उस महिला कि थी जो खुद मंत्री थीं। उनके पिता देश के मशहूर नेता रहे हैं। एक सीनियर नौकरशाह उनके पति हैं। उनके रिश्तेदार जज और नामी वकील हैं। इतना कुछ होते हुए उस महिला नेता को अपनी ही पार्टी के बाहुबली विधायक अनंत सिंह के आगे हथियार डालने पडे़! बाद में पार्टी भी छोड़नी पडी़।
एक रिटायर्ड पुलिस अफसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘दरअसल सरकार अनंत सिंह को केवल झुकाना चाहती है।अनंत जैसे लोगों को बचाये रखने में फायदा ही फायदा है। अगर ऐसा नहीं है तो दो दर्जन से अधिक संगीन मामलों में आरोपित अनंत को किसी एक मामले में भी सजा क्यों नहीं हुई? जबकि नीतीशराज में 90 हजार आरोपितों को सजा दिलाने के दावे किये जाते हैं। जब शहाबुद्दीन को सजा हो सकती है तो अनंत को भी सलाखों के पीछे होना चाहिए था।
अनंत की गिरफ्तारी के लिए शनिवार की देर रात पटना में उनके आवास पर पुलिस की छापेमारी पर सवाल खडे़ करते हुए पटना में एस एस पी रह चुके एक पुलिस अफसर ने कहा, जिस पुलिस टीम को अनंत के गांव लदमा के उनके घर में AK47 और हैंड ग्रेनेड की भनक लग गयी थी, उसे अनंत के पटना में होने, न होने की सूचना कैसे नहीं थी? अनंत सरकारी आवास में नहीं थे और पुलिस छापेमारी करने पहुंच गयी। कहा जा सकता है कि चाहे तो पुलिस का सूचना तंत्र फेल हो गया या पुलिस ने केवल दिखावे की कार्रवाई की। छापेमारी के ठीक चार-पांच घंटे के भीतर अनंत सिंह ने जो वीडियो जारी किया, उससे तो पुलिस की ही किरकिरी हुई है।
अनंत सिंह की पहुंच और रसूख की चर्चा करते हुए जेडीयू के एक नेता ने कहा, अनंत के बडे़ भाई दिवंगत दिलीप सिंह 1990 में निर्दलीय विधायक चुने गये थे। वह 1995 में भी चुने गये। लालू प्रसाद ने उनको मंत्री बनाया था। 2002 में चुनाव हारने पर लालू ने उनको 2003 में एमएलसी बनवा दिया। उनके एम एल सी रहते अनंत ने 2005 में मोकामा से निर्दलीय चुनाव लडा़ और जीत गये। 2006 में दिलीप सिंह की मौत के बाद अनंत सिंह अपने ‘भाई की छाया’ से बाहर आ गये! अगला विधानसभा चुनाव,2010 में अनंत ने जेडीयू उम्मीदवार के तौर पर जीता! 2015 में उनको टिकट नहीं मिला तो वे फिर निर्दलीय जीत कर विधानसभा पहुंच गये। जाहिर है, सत्ता बदली लेकिन अनंतका रूतबा नहीं बदला। अनंत सत्ता की जरूरत है, यह बार-बार साबित हुआ है।
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