एक बार फिर उत्तराखंड में आई आपदा (Disaster in Uttarakhand) से देश में हलचल मच गई है. 2013 में केदारनाथ (Kedarnath) में आई भीषण त्रासदी के बाद अब उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने (Avalanche) से 100 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की संभावना है. 10 लोगों के शव बरामद हो चुके हैं जबकि 150 से ज्यादा लोग लापता हैं. वहीं अचानक आई इस बाढ़ (Flood) से तपोवन बैराज सहित चमोली (Chamoli) जिले में चल रहा पावर प्राजेक्ट तबाह हो गया है. कहा जा रहा है कि नुकसान का आकलन होने में अभी एक दिन का समय लगेगा. हालांकि उत्तराखंड में 2013 में जल प्रलय के साक्षी रह चुके विशेषज्ञ इस तबाही के कारणों का आकलन करने में जुटे हुए हैं.
न्यूज 18 हिंदी से बातचीत में 2013 में केदारनाथ जल प्रलय (Jal Pralay) के दौरान मुख्यमंत्री के सलाहकार रह चुके और उत्तराखंड में ईको टास्क फोर्स के पूर्व कमांडेंट ऑफिसर कर्नल हरिराज सिंह राणा का कहना है कि आज हुई इस घटना में जान-माल का काफी नुकसान हुआ है. हालांकि कहना जल्दबाजी होगी लेकिन जिस तरह डेढ़ सौ से ज्यादा लापता हैं तो इससे मृतकों की संख्या बढ़ने की पूरी आशंका है. ग्लेशियर का टूटना उत्तराखंड में कोई नई घटना नहीं है लेकिन उसका तबाही में बदल जाना खतरनाक है और ऐसा प्रमुख वजह से है.
राणा कहते हैं कि उत्तराखंड में इस घटना की दो बड़ी वजहें हो सकती हैं. पहली नदी के फ्लड एरिया (Flood Area) में अतिक्रमण और निर्माण कार्य, दूसरा 2013 की तबाही (Disaster) से कोई सबक न लेना. इस इलाके में भी कमोबेश यही हाल है. यहां लोगों ने नदी के मुहानों पर घर और होटल आदि बना रखे हैं तो उनका नुकसान होना तय ही है. अगर यहां भी नियमों का पालन करते हुए नदी के दोनों तरफ पांच सौ-पांच सौ मीटर के क्षेत्र को छोड़ा होता तो ग्लेशियर के टूटने और बांध के ढहने से पानी की चपेट में इतने लोग नहीं आते.
यह तय है कि नीचे मानवीय गतिविधियां तेजी से चल रही थीं. नीचे जंगलों का कटान किया गया होगा. जिसकी वजह से ऊपर से आया पानी रुक नहीं पाया होगा और तेजी से नीचे चला आया. इसके अलावा बड़े स्तर पर बर्फ में भी खुदाई करके ऐसी घटनाओं को चुनौती दी जा रही है. पर्यावरण का दोहन किया जा रहा है.
2013 त्रासदी से नहीं लिया सबक
वहीं दूसरी वजह है यहां डिजास्टर मैनेजमेंट (Disaster Management) के लिए कुछ खास नहीं किया गया. उत्तराखंड हिमस्खलन (Uttarakhand Avalanche) के लिए सबसे सरल इलाका है. यहां अक्सर ही ये घटनाएं सामने आती हैं लेकिन 2013 की भीषण घटना के बाद में यहां कोई काम नहीं किया गया. यहां कोई आपदा आती है तो एनडीआरएफ (NDRF) और एसडीआरएफ (SDRF) की टीमें यूपी आदि राज्यों से आती हैं. जबकि यहां का सिस्टम ज्यादा मजबूत होना चाहिए था. यहां हर 30-40 किमी पर बसे जिले के लोगों को डिजास्टर मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यहां के आम लोगों को नदी के बढ़ने-घटने और आपदा में बचने के प्रयास करने के लिए तैयार नहीं किया गया. यही वजहें हैं कि ये घटनाएं माल के साथ-साथ जनहानि को बढ़ाती हैं.
Source : News18