भारतीय संस्कृति में हर पर्व का विशेष महत्व है और जब बात रौशनी के पर्व दीपावली की हो तो यह और भी खास हो जाता है।दीपावली पर घरौंदा बनाए जाने की परम्परा सदियों पुरानी है क्योंकि ऐसा मान्यता है कि यह सुख, समृद्धि का प्रतीक है। कार्तिक मास प्रारंभ होते ही सभी घरों में साफ-सफाई का काम शुरू हो जाता है। यह महीना दीपावली के आगमन का होता है। इसी दौरान घरों में घरौंदा का निर्माण शुरू हो जाता है। घरौंदा ‘घर’ शब्द से बना है और सामान्य तौर पर दीपावली के अवसर पर अविवाहित लड़कियां घरौंदा का निर्माण करती हैं ताकि उनका घर भरापूरा रहे। तो चलिए जानते हैं आखिर क्या है घरौंदा बनाने की कहानी।
अयोध्या के लोगों ने बनाया था घरौंदा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान राम ने चौदह वर्ष के वनवास के बाद कार्तिक मास की अमावस्या के दिन अयोध्या लौटे तब उनके आगमन की खुशी में नगरवासियों ने घरों में दीपक जलाकर उनका स्वागत किया। उसी समय से दीपावली मनाए जाने की परम्परा चली आ रही है। अयोध्यावासियों का मानना था कि श्रीराम के आगमन से ही उनकी नगरी फिर बसी है। इसी को देखते हुए लोगों में घरौंदा बनाकर उसे सजाने का प्रचलन हुआ।
ऐसे सजता है घरौंदा घरौंदा को सजाने के लिए कुल्हिया चुकिया का प्रयोग किया जाता है और अविवाहित लड़कियां फरही, मिष्टान्न आदि भरती हैं। ऐसी मान्यता है कि भविष्य में वह जब कभी भी वह दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करेंगी तो उनका संसार भी सुख-समृद्धि से भरा रहेगा। दिलचस्प बात यह है कि कुल्हिया चुकिया में भरे अन्न का प्रयोग वह स्वयं नहीं करती हैं और अपने भाई को खिलाती हैं।
घरौंदे में लक्ष्मी-गणेश की पूजा भी होती है घरौंदा बनाते वक्त अलग-अलग रंगों का प्रयोग किया जाता है, जो जीवन में नई-नई खुशियों का सूचक है। कई लोग घरौंदे में लक्ष्मी-गणेश की पूजा भी करते हैं, जिससे घर में समृद्धि और खुशहाली आती है। दलते परिवेश के साथ घरौंदे में भी बदलाव देखने को मिलता है। अब बाजार में हर चीज रेडिमेड उपलब्ध होने लगी है। बाजार में मिट्टी से बने-बनाए घरौंदे भी बिकने लगे हैं, लेकिन देखा जाए तो अपने हाथ से बनाए हुए घरौंदे के पीछे एक अलग तरह की सकरात्मकता होती है।
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