जयंती पर विशेष-1 उनकी बोली, वाकपटुता, भाषा शैली, अध्ययन-अध्यापन, सामाजिक ताने-बाने, जनांदोलन, राजनीतिक कौशल और प्रशासनिक क्षमता के अनेक किस्से हैं। सीतामढ़ी से दिल्ली तक करीब 45-46 वर्षों के सियासी सफर में जेल यात्रा, जन संघर्ष, जेपी मूवमेंट एवं जीत-हार के किस्सों में विलक्षणता है, प्रखरता है, जन सरोकार, समाजवाद, सामाजिक न्याय, सेकुलरिज्म और स्वाभिमान समेत कई आयाम हैं। उपलब्धियों- नाकामियों की रेखाओं से उभरे इस चेहरे को कुछ शब्दों के सांचे में ढालना असंभव है। उनके बारे में आप खुद बहुत कुछ जानते हैं। मैं रघुवंश बाबू से चुनावी जंग जीतने-हारने वाले प्रतिद्वंद्वी, सामाजिक न्याय की सवारी में उनके साथ सफर करने वाले साथी और उन्हीं की तरह गणित की कक्षा से निकल कर सियासत संभालने वाले प्रोफेसर के हवाले से काली-सफेद दाढ़ी के अंदर के इंसान पर अलग ऐंगल से रोशनी डालने की कोशिश कर रहा हूं।
लोहिया-कर्पूरी के समाजवादी पाठशाला से निकले और सामाजिक न्याय की धारा के वाहक बने
उनमें कर्पूरी ठाकुर की सादगी-सरलता थी, संघर्ष और आंदोलन से सिद्धांत पर चढा़ते थे धार
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं दिग्गज समाजवादी राजनेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह गणित के कुशल प्राध्यापक थे, परन्तु वास्तव में वे एक मजे हुए समाज वैज्ञानिक थे। उन्हें सभी तबके के लोगों की आर्थिक-राजनीतिक एवं सामाजिक स्थिति, समस्याओं और जरूरतों की गहरी जानकारी थी। उनके इस अनुभव ने मनरेगा जैसी ऐतिसाहिक योजना को जमीन पर उतारने में अहम भूमिका निभाई। ये बातें उनके मित्र, गणित के रिटायर प्रोफेसर एवं राज्य के पूर्व मंत्री डॉ. रामचंद्र पूर्वे ने रघुवंश वाबू को उनकी 75 वीं जयंती की पूर्व संध्या पर याद करते हुए कहीं। डॉ. पूर्वे बताते हैं कि गणित की शीर्ष कक्षाओं में रियल एनालिसिस की पढ़ाई होती है, डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह इसके बड़े जानकार थे। गणित के इस विषय के अध्येताओं का दृष्टिकोण विश्लेषणात्मक हो जाता है। इसके सटीक उदाहरण रघुवंश बाबू थे। वास्तव में उनकी प्रतिभा बहुआयामी थी। एक बार वे हजारीबाग में जैन मुनियों के सम्मेलन में एक घंटा तक भगवान महावीर और जैन दर्शन पर बोलते रहे। वे वर्षों जननायक कर्पूरी ठाकुर के साथ रहे और 1974 के जयप्रकाश आंदोलन में प्रखर हुए। वे शुरू से समाजवादी विचारधारा के प्रवर्तक रहे और आगे चलकर सामाजिक न्याय और धर्मनिर्पेक्षता की धारा के वाहक बने।
सिद्धांत से अधिक संघर्ष को महत्व
राजनीतिक जीवन में डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के बहुत करीब रहे डॉ. पूर्वे ने बताया कि वे सिद्धांत की अपेक्षा संघर्ष और आंदोलन को अधिक अहमियत देते थे। उनका मानना था कि सैद्धांतिक राजनीति को जब तक संघर्ष और आंदोलन की जमीन पर नहीं उतारेंगे, तक तक वह समाज के लिए फलदायी नहीं होगा। वे कहते थे सिद्धांत साधन है, साध्य नहीं। वे सिद्धांत पर आंदोलन से धार चढ़ाने की बात करते थे। उनका यह विश्वास आपातकाल के खिलाफ जय प्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान और दृढ़ हो गया।
कर्पूरी ठाकुर की तरह बेदाग
डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने कर्पूरी ठाकुर के साथ चलते हुए उनकी सादगी और सरलता को आत्मसात किया। पटना से लेकर दिल्ली तक बड़े-बड़े पदों पर रहते हुए भी उन्होंने अपने दामन पर कोई दाग नहीं लगने दिया। कर्पूरी ठाकुर की तरह उनकी इमानदारी पर भी कभी उंगली नहीं उठी। जीवन के अंतिम दिनों तक कर्पूरी ठाकुर में उनकी गहरी आस्था रही। वे सभाओं को संबोधित करते हुए अक्सर कर्पूरी ठाकुर के विचारों, वक्तव्यों और किसी प्रेरक वाकया का हवाला देते थे।
नेतृत्व के प्रति निष्ठा
सीतामढ़ी के बेलसंड विधानसभा सीट पर डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह को हराने और फिर उनसे हारने वाले पूर्व विधायक प्रो. दिग्विजय प्रताप सिंह ने बताया कि उनके राजनीतिक व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता- नेतृत्व के प्रति गहरी निष्ठा थी। वे शुरू में कर्पूरी ठाकुर के प्रति निष्ठावान रहे और जब लालू प्रसाद को नेता माना तो पूरी इमानदारी से आजीवन निष्ठावान रहे। कर्पूरी ठाकुर की उन पर गहरी छाप थी। आम लोगों की जुबान में बातें करना और आम लोगों की बातें करना उनकी विशेषता थी। सार्वजनिक रूप से किसी काल्पिन रामचंद्र से खैनी मांगकर खाना और गांव में उन्नत नश्ल की गाय देखते ही यह पूछना कि ‘दूध कितना देती है’, यह सब उन्हें जनता का नेता बनाता गया। प्रो. दिग्विजय प्रताप सिंह से हारने और उन्हें हराने के बावजूद व्यक्तिगत जीवन में आत्मीयता रही और उनके पत्र लेकर दिल्ली पहुंचे जरूरतमंद की तत्परता से मदद करते थे।
Source : Bibhesh Trivedi – Deputy News Editor, Hindustan