(द इकोनॉमिस्ट से विशेष अनुबंध के तहत सिर्फ दैनिक भास्कर में) विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और उसके लीडर डॉ. टेडरोस अधानोम गेब्रियेसस इस समय अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निशाने पर हैं। कोरोनावायरस को लेकर ट्रंप ने उन पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगाए हैं। ट्रम्प ने कहा कि डब्ल्यूएचओ ने कोरोना को महामारी घोषित करने में 72 दिन का समय लिया। तब तक वायरस 114 देशों में पहुंच चुका था।
ट्रम्प जैसे कई आलाेचक यह मानते हैं कि चीन को लेकर डब्ल्यूएचओ का रवैया उदासीनता भरा रहा है। उन्होंने अमेरिका द्वारा डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाले फंडिंग रोकने की बात कही है। डब्ल्यूएचओ का वार्षिक बजट 4.5 बिलियन डॉलर है। इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है। जाहिर है इससे उसके कामकाज पर गंभीर असर पड़ेगा।
डब्ल्यूएचओ प्रमुख चीनी राष्ट्रपति की तारीफ कर चुके हैं
डब्ल्यूएचओ के प्रमुख डॉ. टेडरोस अधानोम एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट हैं और इथियोपिया के स्वास्थ्य मंत्री रहे चुके हैं। वे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उनके “राजनीतिक नेतृत्व’ के लिए प्रशंसा कर चुके हैं। हालांकि, उन्होंने ट्रम्प की भी उनके “अच्छे कामों’ के लिए प्रशंसा की है। ये परिस्थितियां एक तरह से सवाल खड़ा करती हैं कि क्या डब्ल्यूएचओ केवल अपने सदस्य देशों के सहारे ही प्रतिदिन के काम, जिनमें डेटा प्राप्त करना, परखना और दुनिया भर के देशों को उनके आधार पर सुझाव देना शामिल है, कर सकता है।
डब्ल्यूएचओ दुनियाभर में गंभीर रोगों से बचाव में मदद करता है
डब्ल्यूएचओ के काम पर उठने वाले सवाल केवल कोरोना महामारी तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रतिदिन हजारों लोगों की जान लेने वाली खसरा, मलेरिया, एचआईवी, टीबी, पोलियो, दस्त, कुपोषण, कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों पर भी लागू होते हैं। महामारी के संदर्भ में मेंबर स्टेट्स किस तरह कोरोना वायरस को बढ़ने से रोकें, कौन से उपाय प्रभावी हैं और कौन से नहीं, डॉक्टर किस तरह मरीजों के उपचार करें आदि से जुड़ा डेटा उपलब्ध कराना भी उसके काम में शामिल है।
टेस्टिंग का डाटा जुटाने और टीका विकसित करने में भी मददगार
डब्ल्यूएचओ कोरोनोवायरस की जांच के लिए सहायता भी प्रदान करता है। इसके साथ ही किस तरह के टेस्ट का उपयोग किया जाए, उन्हें कैसे एग्जिक्यूट किया जाए आदि से जुड़े सुझाव भी देता है। यही नहीं जांच कितनी असरदार है, इसके परीक्षण के तरीके विकसित करने में भी यह संगठन मदद करता है। डब्ल्यूएचओ कोरोना से संबंधित रिसर्च, दवाओं और टीके पर हो रहे काम में भी मदद कर रहा है।
संस्था के कामकाज में खूबियों के साथ कुछ बड़ी खामियां भी हैं
इस संगठन में कुछ खामियां भी हैं, जिनकी वजह से इसके काम करने के तरीके पर सवाल खड़े होते रहे हैं।
- जब कांगो में इबोला का प्रकोप बढ़ा, तो डब्ल्यूएचओ इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर की हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने में हिचकिचाता रहा। 2013 में पश्चिम अफ्रीका में इबोला के प्रकोप के दौरान और उसके बाद डब्ल्यूएचओ कि प्रतिक्रिया को लेकिर भी इसकी आलोचनाएं हुईं। हालांकि यह डॉ. टेडरोस के समय से पहले की बात है।
- ब्रिटेन की शीर्ष विज्ञान एकेडमी रॉयल सोसाइटी द्वारा 2017 में इस मामले में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि “इबोला के प्रकोप के दौरान डब्ल्यूएचओ ने अपने मानक के अनुसार नेतृत्व दिखाया, लेकिन यह प्रभावी असर नहीं दिखा पाया। हालांकि, आलोचना के बाद एक उचित बात यह भी कही गई कि अपने सदस्यों के समर्थन के बिना डब्ल्यूएचओ ऐसा नहीं कर सकता है।
हालांकि डॉ. टेडरोस संगठन के रिफार्म की कोशिश कर रहे हैं , लेकिन यह कठिन है। क्योंकि इसे प्राप्त होने वाला अधिकांश पैसा सदस्य देशों की निश्चित परियोजनाओं से जुड़ा होता है। इसके पास अन्य मामलों के लिए बहुत कम राशि होती है।
अमेरिका v/s डब्ल्यूएचओ
1. यह विवाद क्या है?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का आरोप है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना के मामले में चीन को लेकर गंभीर नहीं था। इसी वजह से कोरोना संक्रमण दुनियाभर में फैल गया। ट्रम्प ने दावा किया कि डब्ल्यूएचओ अपने काम में विफल रहा है। उसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए। अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ को फंडिंग रोकने की बात कही है।
2. डब्ल्यूएचओ को आखिर फंड मिलता कितना है?
- अब तक 15% फंड अकेले अमेरिका देता था।
- यूएस ने डब्ल्यूएचओ को 2019 में 553 मिलियन डॉलर दिए थे।
- ब्रिटेन 08% फंड देता है।
- अकेले बिल एंड मेलिंडा गेट्स 10% फंड देते हैं।
3. डब्ल्यूएचओ इस फंडिंग को खर्च कहां करता है?
- टीकाकरण अभियान चलाने, हेल्थ इमरजेंसी और प्राथमिक इलाज में दुनियाभर के देशों की मदद करने में फंड खर्च होता है।
- 2018-19 में डब्ल्यूएचओ ने फंड का 19.36% हिस्सा यानी लगभग 1 बिलियन डॉलर पोलियो उन्मूलन पर खर्च किया।
- अफ्रीकी देशों में चल रहे डब्ल्यूएचओ के प्रोजेक्ट्स के लिए 1.6 बिलियन डॉलर खर्च किए गए।
4. क्या डब्ल्यूएचओ महानिदेशक और चीन के बीच कोई कनेक्शन है
जुलाई 2017 में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक का पद संभालने वाले डॉ. टेडरोस अधानोम गेब्रियेसस इथोपिया के नागरिक हैं। उन्हें चीन के प्रयासों की वजह से ये पद मिलने के आरोप लगते रहे हैं। वे इस संस्थान के पहले अफ्रीकी मूल के डायरेक्टर जनरल हैं। आरोप है कि चीन ने टेडरोस के कैंपेन को ना सिर्फ सपोर्ट किया बल्कि अपने मत के अलावा अपने सहयोगी देशों के भी मत दिलवाए। अमेरिका और चीन दोनों ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी सदस्य हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को देने वाले फंड में बढ़ोतरी की है।
5. डब्ल्यूएचओ की लापरवाही कहां हो सकती है?
चीन में जनवरी में इमरजेंसी
31 दिसंबर को चीन ने कोरोना वायरस के प्रकोप की घोषणा की और एक महीने बाद ही यानी 30 जनवरी 2020 को उसने देश में जन स्वास्थ्य आपातकाल लागू कर दिया।
डब्ल्यूएचओ का ट्वीट
14 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने ट्वीट किया कि चीन की शुरुआती जांच में इस बात के संकेत नहीं मिले हैं कि कोरोना वायरस इंसानों से इंसानों में फैलता है। इसके बाद संगठन पर आरोप लगा कि वह आंख मूंदकर चीन की बातों पर भरोसा कर रहा है।
डब्ल्यूएचओ बयान से यूं पलटा
22 जनवरी को एक ट्वीट में डब्ल्यूएचओ ने कहा कि वुहान में कोरोना वायरस के इंसानों से इंसानों में फैलने के मामले सामने आए हैं। इससे पहले उसने इससे इनकार किया था।
72 दिन बाद महामारी घोषित
30 जनवरी की रात डब्ल्यूएचओ ने कोरोना को ग्लोबल इमरजेंसी घोषित किया। 11 मार्च को चीन द्वारा वायरस की सूचना दिए जाने के 72 दिन बाद डब्ल्यूएचओ ने महामारी घोषित किया। तब तक 114 देशों के 1.18 लाख लोग संक्रमित हो चुके थे।
6. क्या अमेरिका द्वारा फंडिंग रोकने का असर क्या होगा?
डब्ल्यूएचओ के पास पहले से ही फंड की कमी है। मार्च में ही डब्ल्यूएचओ ने बयान जारी कर कहा था कि कोरोनावायरस संक्रमण से निपटने के लिए 67.5 करोड़ डॉलर की जरूरत है। केवल कोराेनावायरस ही नहीं, पोलियो और टीबी जैसी बीमारियों को खत्म करने के लिए दुनियाभर में चलाए जा रहे उसके अभियान को धक्का लग सकता है। पाकिस्तान जैसे एशियाई देश और कई अफ्रीकी देश इन बीमारियों से प्रभावित हैं। संभावना है कि अमेरिका द्वारा फंडिंग रोकने के बाद डब्ल्यूएचओ एक अरब डॉलर जुटाने की अपील कर सकता है।
- अमेरिका द्वारा फंडिंग रोकने से डब्ल्यूएचओ के कई हेल्थ प्राेग्राम रुक सकते हैं। जैसे-डब्ल्यूएचओ के पोलियो उन्मूलन के कार्यक्रम को पिछले दो साल में अमेरिका से 158 मिलियन डॉलर की मदद मिली थी। इसी तरह डब्ल्यूएचओ के दस से ज्यादा ऐसे प्रोग्राम हैं, जिन्हें सर्वाधिक अमेरिका से ही पैसा मिला है।
- डब्ल्यूएचओ को मिलने वाली फंडिंग में सबसे ज्यादा हिस्सा सदस्य देशों का होता है। उनसे इसे करीब 35 फीसदी मदद मिलती है। जो इसके स्वास्थ्य कार्यक्रमों को चलाने में मददगार होता है।
- 7000 से ज्यादा हेल्थ वर्कर हैं डब्ल्यूएचओ के दुनियाभर में।
- डब्ल्यूएचओ यूनाइटेड नेशंस का हिस्सा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसकी स्थापना की गई थी। दुनियाभर में इसके 150 ऑफिस हैं।
अमेरिका-डब्ल्यूएचओ विवाद पर बिल गेट्स सहित दुनिया के नेताओं ने दी प्रतिक्रिया
बिल गेट्स
माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने एक ट्वीट में कहा, “वैश्विक महामारी के इस मुश्किल दौर में विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग रोकना बेहद डरावना है’।
तारो असो
ट्रंप के अलावा जापान के उप प्रधानमंत्री तारो असो भी डब्ल्यूएचओ पर लापरवाही का आरोप लगा चुके हैं। उन्होंने जापानी सांसदों को संबोधित करते हुए कहा था कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का नाम बदलकर चाइनीज हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन रख देना चाहिए।
जोसेफ बोरेल
यूरोपियन यूनियन के फॉरेन पॉलिसी चीफ जोसेफ बोरेल ने कहा कि महामारी से निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ को अब पहले से अधिक फंड की आवश्यकता है। ऐसी महामारी जिसकी कोई सीमा नहीं है, उसका मुकाबला हम केवल साथ आकर ही कर सकते हैं।
पैट्रिस हैरिस
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष पैट्रिस हैरिस ने इसे गलत दिशा में उठाया गया एक खतरनाक कदम बताया। उन्होने कहा कि इस तरह कोविड-19 को हराना आसान नहीं होगा। हैरिस ने राष्ट्रपति से पुनर्विचार का आग्रह किया।
एंटोनियो गुटेरस
यूनाइटेड नेशंस के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुटेरस ने कहा, यह वह समय नहीं है जब डब्ल्यूएचओ के संसाधनों में कटौती की जाए। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस समय साथ आकर काम करना चाहिए। जिससे वायरस के संक्रमण पर रोक लगाई जा सके।