कोरोना से जंग तो पूरा विश्व लड़ रहा है, लॉकडाउन की स्तिथि को करीब डेढ़ महीने हो गए है लेक़िन मन में ये ख़्याल बिल्कुल भी नही रखें की मुसीबतें कम हो गयी है. जिस प्रकार लॉकडाउन में सहूलियत बढ़ रही है वैसे ही लोगो में लापरवाही भी बढ़ती दिख रही है. दुकानें नये प्रावधान से खोलें जाने लगे है ढिलाई दी जा रही है, क्योंकि जान के साथ जहान भी जरूरी है. मगर इन सब के साथ अगर कोरोना के प्रति आपकी सजगता कम हो गयी है तो ठहरिये ये लापरवाही मौत का सबब भी बन सकती है.

असल में बिहार को अब असली चुनौती का सामना करना है, हम ऐसा इसलिए कह रहे है क्योंकि अब लॉकडाउन में पहले जितनी सख़्ती नहीं रहेगी, अर्थव्यवस्था की होड़ में दुकानें और कारख़ाने भी खुलने लगेंगे नये नियम होंगे लेक़िन कोरोना का ख़तरा कम नहीं हुआ है. साथ ही बिहार में अब बाहर फंसे लोग वापस आ रहे है उनमें संक्रमण का अधिक ख़तरा है, प्रसाशन ने उन्हें संगरोध करने की व्यवस्था की है लेकीन इन सब के बावजूद सतर्कता ही एक मात्र उपाय है जो हमें कोरोना से बचा सकता है.

बाजारों में भीड़ अब बढ़ने लगी है, लेक़िन ये भी न भूले की संक्रमण का ख़तरा कम नहीं हुआ है, रोज़ मरीज़ो के मिलने का सिलसिला जारी है, जीवन अब मुश्किल है ये भूल में ना रहे कि पहले जैसे दिन लौट आये है और संभव है कि कुछ दिन तक आये भी नहीं लेकिन स्मरण रहे सामाजिक दूरी ही जिंदगी की डोर है, जिंदगी मुश्किल है लेकिन असंभव नही अनुशासन ही हमें सुरक्षित रख सकता है.

आज हमारी जरूरत है, वक़्त के साथ चलने की सामाजिक दूरी और सामाजिक दायित्व को समझने की बिहार में तकरीबन 25 लाख लोग अन्य राज्यों से आ रहे है उनसभी को लॉकडाउन के नियमों का पालन करना होगा, सरकारी व्यवस्था का सम्मान करने की जरूरत है, प्रसाशन द्वारा 21 दिन के क्वारेन्टीन व्यवस्था मे रहने की जरूरत है, ये विकट समय है, समस्या अभी खत्म नही हुई है, ध्यान रहे एक भूल हजारो मौत का कारण बन सकती है, वो मरने वाले हमारे और आपके बीच के ही होंगे.

 

Abhishek Ranjan Garg

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...