विधानसभा के रसूखदार नेताओं-अफसरों ने हाईकोर्ट के आदेश को तोड़-मरोड़ कर विज्ञापन निकाला और फिर जिनके रिश्तेदार परीक्षा दे रहे थे, उन्हें ही मूल्यांकन का जिम्मा भी दे दिया। नंबर कम आए तो उसे भी बढ़ाया और तो और नंबर बढ़ाने के लिए इंटरव्यू राउंड भी लिया गया। ये सब सारा खेल हुआ था 2001-02 में विधानसभा में 90 क्लर्क की नौकरी में, अब इस पूरे खेल को राज विजिलेंस ब्यूरो की चार्जशीट ने खोला है।

ब्यूरो की चार्जशीट में लिखा कि कांग्रेस नेता सदानंद सिंह ने संवैधानिक पदधारक (विधानसभा अध्यक्ष) होने के बावजूद नियुक्ति प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। बल्कि चयन समिति में मनमाना परिवर्तन कर और उस पर कब्जा कर ऐसे सदस्यों को इसमें ले लिया, जिनके बच्चे-रिश्तेदार इस परीक्षा में उम्मीदवार बनाए गए थे। ये सब के सब नौकरी पा गए।

चार्जशीट में गड़बड़ी हुई उजागर, उसी ने की नियुक्ति 

सदानंद सिंह ने ऐसा तब किया था जब उनके पास नियुक्ति का अधिकार भी नहीं था। ब्यूरो की चार्जशीट कहती है कि “राज्यपाल के आदेश का उल्लंघन, आदेश की गलत व्याख्या कर, पद का दुरुपयोग करते हुए यह नियुक्ति इनके द्वारा कराई गई। बहाली की प्रक्रिया को शुरू करने से लेकर अंतिम रूप से नियुक्ति तक में उनकी भूमिका रही।

मामले की जब पूरी बात खुली तो सदानंद सिंह ने विजिलेंस को सफाई दी-” गड़बड़ी थी, तो इसे सेक्रेटरी को देखना-रोकना चाहिए था। वह नियुक्ति की सिफारिश ही नहीं करते। रिश्तेदारों को आप परीक्षा देने से कैसे रोक सकते हैं? हां, इसकी प्रक्रिया सही होनी चाहिए और सही तरीके से ही हुई।

उन्होंने ये भी कहा कि विधानसभा में पदों को लेकर मेरे पास कभी, किसी  स्तर से, कोई आपत्ति नहीं आई।” इसका मतलब यह निकलता है कि सदानंद सिंह खुद को पूरी तरह अनजान और बेकसूर बताते हैं। लेकिन, उन्हें तथा अन्य लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने वाला विजिलेंस ब्यूरो ऐसा नहीं मानता। इन निम्नवर्गीय लिपिक (एलडीसी) की नियुक्ति की जांच में एजेंसी को आश्चर्यजनक सबूत मिले हैं।

बता दें कि उस वक्त राजकिशोर रावत, चयन समिति के सदस्य थे। उनके बेटे संजय कुमार रावत को दूसरी चयन समिति के सदस्य रामेश्वर प्रसाद चौधरी ने 64 नंबर दिए। यह 62 में 2 जोड़कर दिया गया, जबकि प्रश्नों पर प्राप्तांक 63 है। संजय कुमार (क्रमांक 1802) को पहले 51 नंबर मिले। दोबारा जांच में यह 59 पहुंचा और फिर इसमें 1 जोड़कर इसे 60 किया गया।

इसके अलावे प्रेरणा कुमारी (1198) को 70 नंबर मिले। इसे बढ़ाकर 72 किया गया। अनिल कुमार वर्मा (1081) को 64 नंबर मिले। पहले इसमें चार अंक बढ़ाए गए, फिर दोबारा जांच के बहाने इसे 70 किया गया। जबकि, कॉपी पर कुल प्राप्तांक 66 होता है। संजीव कुमार (क्रमांक 1071) को 24 अंक मिले। बाद में यह 70 हुआ। इंटरव्यू में उसे 13 नंबर मिले। चुने गए कुल 30 लोगों के नंबरों में इसी तरह का उलटफेर पाया गया।

किस तरह के की गई गड़बड़ी, जानिए…

-पहली ये गड़बड़ी निकली जो विज्ञापन में की गई थी- हाईकोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या कर विज्ञापन निकाला गया था। सदानंद सिंह ने हाईकोर्ट के आदेश की मनमानी व्याख्या कर छंटनीग्रस्त कर्मियों को लाभ पहुंचाया था। योग्यता में भी शिथिलता बरती गई थी ।

-दूसरी गड़बड़ी  मूल्यांकन में की गई थी जिसमें पाया गया कि रिश्तेदारों ने ही कॉपियों की जांच की थी। कॉपी जांचने वालों के लिए कोई मापदंड नहीं निर्धारित किया गया था। ऐसा करने वाले विधानसभा के ही अधिकारी थे। ज्यादातर वैसे अधिकारी थे, जिनके बच्चे-रिश्तेदारों ने परीक्षा दी थी।

-तीसरी बड़ी गड़बड़ी इंटरव्यू के दौरान पायी गई, पाया गया कि विज्ञापन में इंटरव्यू का कोई जिक्र नहीं था औऱ बावजूद इसके  28 गुणा (2544) आवेदक बुलाए गए। 25 नंबर के इंटरव्यू में अफसरों ने अपने-अपपने रिश्तेदारों को खूब नंबर दिया। फेल वालों को भी जबरदस्त नंबर देकर पास करा दिया गया।

सदानंद सिंह ने कहा-आरोप गलत और बेबुनियाद हैं

बिहार विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष सदानंद सिंह ने कहा कि मुझ पर लगे सारे आरोप गलत और बेबुनियाद हैं। विधानसभा अध्यक्ष के होने के नाते मैंने अपनी जिम्मेदारी बहुत अच्छे से निभाई है। मुझे इस बात पर घोर आपत्ति है कि मैंने रिश्तेदार-मित्रों को बिना परीक्षा में बैठे चयनित कर नियुक्ति कर ली गई। मैं 1969 से जनता का सेवक हूं और एेसे आरोपों, ऐसी बातों से मेरी प्रतिष्ठा पर आघात पहुंचा है।

Input : Dainik Jagran

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