पूर्व केन्द्रीय मंत्री और रालोसपा प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा पर लगा टिकट बेचने का आरोप कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी बिहार में कुशवाहा के साथ ही दूसरे नेताओं पर भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं। चुनाव का वक्त आते ही पार्टी छोड़ने और साथ ही पुराने नेता पर आरोप लगाने की परम्परा चली आ रही है। चुनाव के पहले भी दल बदलने वाले नेता अक्सर आरोप लगाकर ही पाला बदलते रहे हैं। गौरतलब है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री नागमणि ने भी मंगलवार को प्रेस कांफ्रेंस कर उपेन्द्र कुशवाहा पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था।
वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में उपेन्द्र कुशवाहा की प्रेस कान्फ्रेंस में अचानक हंगामे के हालात पैदा हो गए थे, जब एक नेता ने उनपर टिकट बेचने का आरोप लगाया। उसी चुनाव में रामविलास पासवान के दामाद साधु पासवान ने भी 15 सितम्बर, 2019 को चिराग पासवान पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था। पासवान की बेटी ने भी अपने पति के आरोपों का समर्थन किया था।
कभी कुशवाहा को सीएम बनाने का दम भरते थे नागमणि
खास बात यह है कि कुशवाहा पर टिकट बेचने का आरोप लगाने वाले नागमणि राज्य सरकार पर भी कई तरह के आरोप लगाते रहे हैं। हाल में दो फरवरी को रालोसपा के आंदोलन के दौरान कुशवाहा को पुलिस की लाठी लगी तो नागमणि ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राज्य सरकार पर कुशवाहा की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया था। सात जून 2018 को उन्होंने उपेन्द्र कुशवाहा को अगला सीएम उम्मीदवार घोषित करने की मांग एनडीए से की थी। गत 15 अक्टूबर, 2017 को उन्होंने गांधी मैदान में रालोसपा के सम्मेलन में उपेन्द्र कुशवाहा को अगला सीएम बनाने के लिए कार्यकर्ताओं से एक पैर पर खड़ा होकर समर्थन करने को कहा था।
खटास की वजह
बताया जाता है कि बाद में नागमणि की महत्वकांक्षा बढ़ने लगी तो उपेन्द्र कुशवाहा के साथ उनके रिस्ते में खटास आने लगी। सूत्रों के अनुसार वह लोकसभा चुनाव में खुद के साथ अपनी पत्नी के लिए भी टिकट चाहते थे। कुशवाहा ने इससे मना कर दिया। इस फैसले ने दोनों नेताओं की दूरी बढ़ा दी। नागमणि के आरोपों को इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा रहा है।
Input : Hindustan