चीन के सैनिकों से हिंसक झड़प में बिहार रेजिमेंट 16 के सीओ कर्नल बी. संतोष बाबू और जेसीओ कुंदन कुमार झा शहीद हो गए. बिहार रेजिमेंट का इतिहास वीरता की ऐसी कहानियों से भरा पड़ा है कि उसे दुश्मन ‘किलर मशीन’, ‘जंगल वॉरियर्स’ और ‘बजरंग बली आर्मी’ नाम से भी जानते हैं. बर्फीले पहाड़ हों या रेगिस्तान, बिहार रेजिमेंट ने अपनी वीरता की छाप हर जगह छोड़ी है.

वीरता और साहस का यह इतिहास ब्रिटिश काल से शुरू होता है. इसका गठन 1941 में हुआ. बिहार रेजिमेंट का सेंटर दानापुर कैंट, पटना में है. यह देश के सबसे पुराने कैंटोनमेंट में से एक है. वर्तमान में बिहार रेजिमेंट में सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि देशभर से सैनिक आते हैं. वैसे तो किसी भी रेजिमेंट में शामिल होना इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें कितनी वैकेंसी है और कितने लोग शामिल होना चाहते हैं. अच्छी रैंक वालों को मन-मुताबिक रेजिमेंट मिल जाती है. इसके अलावा किसी भी रेजिमेंट में एंट्री पैरेंटल कमांड के आधार पर भी मिलती है. अगर किसी के पिता ने किसी खास रेजिमेंट को कमांड किया है, तो उसे वहां एंट्री मिल जाती है.

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 बिहार के छोटे शहरों से शुरू हुई थी बटालियन

बिहार के छोटे शहरों से सैनिकों को पारंपरिक रूप से सेना में शामिल करने का काम लॉर्ड क्लाइव ने 1757 में किया. इन्हें मुख्य रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा के लिए रखा गया था. शुरुआत में इनका रिक्रूटमेंट भोजपुर से किया गया, लेकिन बाद में बक्सर, रोहतास औऱ कैमूर से भी सैनिकों को चुना गया. इन सैनिकों की खासियत थी किसी भी परिस्थिति में नई तकनीक को कम से कम वक्त में समझना और उसे इस्तेमाल करना. यही सैनिक बाद में भारत में ब्रिटिश सेना की बंगाल इंफैंट्री का हिस्सा बने.

वर्तमान में बिहार रेजिमेंट में 20 बटालियन, चार राष्ट्रीय राइफल और दो टेरिटोरियल आर्मी बटालियन के साथ देश की सेवा में लगा है. बिहार रेजिमेंट को अब तक 5 मिलिट्री क्रॉस, 7 अशोक चक्र, 9 महावीर चक्र, 35 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 21 कीर्ति चक्र, 49 वीर चक्र और 70 शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया है.

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1971 से लेकर कारगिल युद्ध में दिखा जौहर

1971 के युद्ध में पाकिस्तान के 96 हजार सैनिकों ने बिहार रेजिमेंट के जांबाजों के सामने ही बांग्लादेश में सरेंडर (आत्‍मसमर्पण) किया था. कहते तो ये हैं कि बिहार रेजिमेंट के सैनिकों के लड़ाई के तेवर का पाकिस्तानी सैनिकों में इतना खौफ था कि वह लड़ने को तैयार ही नहीं हुए. यह दुनियाभर के सैनिक इतिहास में एक रिकॉर्ड था, जब इतनी बड़ी सेना ने बिना लड़े ही हथियार डाल दिए थे.

कारगिल युद्ध के दौरान जुलाई 1999 में बटालिक सेक्टर के पॉइंट 4268 और जुबर रिज पर पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने कब्जा करने की कोशिश की. बिहार रेजीमेंट के योद्धाओं ने उन्‍हें खदेड़ दिया. करगिल युद्ध में शहीद कैप्टन गुरजिंदर सिंह सूरी को मरणोपरांत महावीर चक्र से, तो मेजर मरियप्पन सरावनन को मरणोपरांत वीरचक्र से सम्मानित किया गया. पटना के गांधी मैदान के पास कारगिल चौक पर कारगिल युद्ध में शहीद 18 जांबाजों की शहादत की याद में स्‍मारक बनाया गया है.

बिहार रेजिमेंट ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भी हिस्सा लिया था. तस्वीर साभार- INDIA TODAY
बिहार रेजिमेंट ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भी हिस्सा लिया था. तस्वीर साभार- INDIA TODAY

‘जय बजरंग बली’ है बिहार बटालियन की वॉर क्राई

बिहार बटालियन का नारा है- कर्म ही धर्म है. युद्ध के दौरान जब बिहार बटिलायन के जवान दुश्मन पर धावा बोलते हैं, तो वो ‘जय बजरंगबली’ और ‘बिरसा मुंडा की जय’ के नारे लगाते हैं. यही बिहार बटालियन की वॉर क्राई है. वॉर क्राई एक तरह का नारा होता है, जो हर बटालियन युद्ध में दुश्मनों पर आक्रमण के दौरान इस्तेमाल करती है. हर बटालियन की अपनी अलग वॉर क्राई होती है. आर्मी में मेजर के पद से रिटायर हुए मोहम्मद अली शाह ने हमें बताया कि दुश्मन में इस आर्मी का इतना खौफ है कि वो इसे ‘किलर मशीन’, ‘जंगल वॉरियर्स’, ‘बजरंग बली आर्मी’ भी कहते हैं.

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बिहार रेजिमेंट के मेजर मरियप्पन सर्वानन थे कारगिल के पहले शहीद

मेजर (रिटायर्ड) मोहम्मद अली शाह ने ‘दी लल्लनटॉप’ को बताया कि कारगिल युद्ध में सबसे पहले शहीद होने वालों में शामिल मेजर मरियप्पन सर्वानन बिहार रेजिमेंट से ही आते हैं. इन्हें बटालिक का हीरो भी कहा जाता है. जब सेना को बटालिक में दुश्मन की हरकत की जानकारी मिली, तो मेजर मरियप्पन को आगे जानकारी के लिए भेजा गया.

मेजर मरियप्पन ने दुश्मन के बंकर देखे और फौरन एक्शन लेने की ठानी. उन्होंने अकेले ही दो बंकरों को नष्ट कर दिए. इस दौरान उनके पास कोई बैकअप भी नहीं था, लेकिन फिर भी मेजर मरियप्पन पीछे नहीं हटे और 29 मई 1999 को शहीद हो गए थे. उनका शव करगिल की घमासान लड़ाई की वजह से 3 जुलाई को बर्फ में ढका मिला. मेजर सर्वानन के साथ पलटन के सदस्यों में से बचे हुए एकमात्र सैनिक थे नायक शत्रुघ्न, जिन्हें तीन गोली पैरों पर लगी थी. उन्हें यूनिट के कैंप तक पहुंचने में 10 दिन लग गए थे. वे रेंगते-रेंगते किसी तरह कैंप तक पहुंचे और उन्होंने यूनिट को इस बात की जानकारी दी कि मेजर सर्वनन शहीद हो चुके हैं. साथ ही उन्होंने दुश्मनों के कई बंकरों को ध्वस्त कर दिया है और बटालिक से पाकिस्तानियों को लगभग खदेड़ दिया है. नायक शत्रुघ्न का बाद में गैंग्रीन के कारण फील्ड अस्पताल में निधन हो गया. मेजर सर्वनन पहले सैनिक थे, जिन्होंने बिना किसी जानकारी के दुश्मन के बंकरों को ध्वस्त करके भारी नुकसान पहुंचाया था. यहीं नहीं, उन्होंने 11 दुश्मनों को मारा भी था.

Input : The Lallantop

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