कोरोना काल में सामाजिक दूरी और सांसों के साथ रिश्ते की डोर भी टूट रही है। ऐसे हालात में बेटियां हिम्मत के साथ आगे बढ़ कर आ रही हैं। बालूघाट के कृष्ण कुमार सहनी के निधन के बाद जब रिश्तेदार और समाज के लाेग भी मदद को आगे नहीं आए, तो उनकी दोनों बेटियों सिमरन एवं सलोनी ने ही पिता को कंधा दिया। मुखाग्नि भी दी। जिन कंधों पर ये लाडली बेटियां डोली में बैठने के सपने बुन रही थीं, उस पिता को कंधा देना पड़ा। अब घर में दोनों बेटियां न सिर्फ मां को हौसला दे रहीं, बल्कि काम क्रिया के सभी फर्ज भी निभा रही हैं।
सिमरन के अनुसार उनके 51 वर्षीय पिता कृष्ण कुमार सहनी उर्फ मुन्ना सहनी की 11 मई को अचानक तबीयत खराब हो गई। बुखार और सांस लेने में परेशानी हो रही थी। उन्होंने कई बार चीनी और नमक का घोल पीया। अगले दिन एसकेएमसीएच में टेस्ट आदि कराने के बाद 12 मई को एडमिट कराने के दाैरान उनका निधन हो गया। टेस्ट में कोरोना की रिपोर्ट निगेटिव अाई। लेकिन, फेफड़े में संक्रमण और शुगर लेवल बढ़ने से जान चली गई। रात में शव आया। न तो मोहल्ले के लोग आगे आए और न ही रिश्तेदार। सुबह में दोनों बेटियों ने अपने पिता काे कंधा दिया। अंत्येष्टि की।
एसकेएमसीएच से शव आते ही लाेगाें ने मोहल्लों में फैला दी कोरोना से मौत होने की अफवाह
सिमरन ने कहा कि पिता के निधन पर अपने भी कंधा देने नहीं आए। इसका मलाल नहीं है। लेकिन, दुख इस बात का है कि पिता का शव एसकेएमसीएच से लाए जाने की जानकारी मिलते ही मोहल्ले में कोरोना से मौत की अफवाह फैला दी गई। अंतिम संस्कार में सेवा देने वाले अमित रंजन और आशीष ने हर तरह से मदद की। शारदा यूनिवर्सिटी से पीजी कर रही सिमरन ने कहा कि पापा ने दोनों बेटियों को बेटे की तरह पाला। जॉब होने के सपने देखे थे। छोटी बहन सलोनी अभी इंटर पास की है। पिता तो नहीं रहे, लेकिन उनके सपने टूटने नहीं दूंगी।
Input: Dainik Bhaskar