गायघाट का सबसे पुराना एपीएचसी केवटसा को आयुष्मान योजना के तहत वेलनेस सेंटर तो बना दिया गया। लेकिन उसकी बदहाली को दूर नहीं किया गया। अस्पताल अतिक्रमण का शिकार है। वार्ड व क्वार्टर में स्थानीय लोग अतिक्रमण कर अपना निवास स्थल बना लिये है। वार्ड में मरीज की जगह जलावन व भूसा भरा हुआ है। बड़े कमरे वाला सुसज्जित पूर्व का यह एपीएचसी सरकारी उदासीनता व अधिकारियों की लापरवाही के कारण विरान पड़ा है।

मुजफ्फरपुर- दरभंगा एनएच 27 के बगल का यह एपीएचसी सुबह 9 बजे से एक बजे तक जरूर चलता है। लेकिन यहां दुर्घटना का प्राथमिक उपचार की बात तो छोड़िए हाथ पैर कटने व फटने का भी इलाज नहीं होता है। इसके लिए सात किमी दूर गायघाट पीएचसी जाना होता है। पूर्व में यहां दो एमबीबीएस डाक्टर, ड्रेसर फर्मासिस्ट, दो एएनएम व अन्य कर्मी रहते थे। 24 घंटे चलने वाले इस एपीएचसी में अभी एक एमबीबीएस डाक्टर, एक आयुष, एक फिल्ड वर्कर एएनएम, एक महिला व एक पुरूष कक्ष सेवक पदस्थापित हैं पर मात्र तीन घंटे खुलने वाले इस एपीएचसी में रोज एमबीबीएस डाक्टर नहीं आते। इधर कोरोना काल में उनकी सेवा जिला में ले ली गई है। आयुष चिकित्सक ओंकार नाथ झा का कहना है कि यहां न शौचालय है न व कोई सुविधा। बड़ा दो कमरा का वार्ड व डाक्टर आवास पर अतिक्रमण है डाक्टर व मरीज कहां रहेंगे।

ग्रामीणों ने बताया कि अब यह नाम का एपीएचसी है आयुष्मान भारत योजना के तहत इसे हेल्थ एण्ड वेलनेस सेंटर बनाया गया पर भवन का जिर्णोद्धार भगवान भरोसे है। सिर्फ रंग पेंट बाहर से कर चमका दिया गया है भीतर आने पर पता चलेगा कि क्या सच्चाई है। प्रसव सेंटर भी कागज पर बना। ग्रामीणों की मांग है कि कोरोना काल में इस एपीएचसी का कायाकल्प हो जाता तो बाढ़ प्रभावित छह पंचायत के लोगों के लिए फायदेमंद होता। गायघाट के हेल्थ मैनेजर ओवेद अंसारी के मुताबिक कम से कम सुबह 9 बजे से 4 बजे तक तो एपीएचसी चलना चाहिए था। उन्होंने कहा कि वहां 19 प्रकार की दवा दी जा रही हैं। पीएचसी प्रभारी गायघाट डा पीएसपी गुप्ता ने बताया कि एपीएचसी केवटसा ने अब तक डाक्टर आवास या वार्ड का लोगों द्वारा अतिक्रमण किये जाने की शिकायत आती है तो जिला व प्रखंड प्रशासन को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए लिखा जायेगा।

Input: live hindustan

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