पिछले साल जब फेसबुक ने अपना नाम बदलकर मेटा किया था तो उसने दलील दी थी कि वह अपना फोकस मेटावर्स टेक्नोलॉजी पर करना चाहती है. तभी से आप मेटावर्स शब्द को लगातार सुन रहे होंगे या देख रहे होंगे. इसे लेकर आपके मन में कई तरह के सवाल भी होंगे. मसलन मेटावर्स क्या है, यह कैसे काम करता है, क्यों फेसबुक का सारा फोकस इसी पर है. आज हम आपके इन्हीं सवालों के जवाब देंगे विस्तार से.
पहले मेटावर्स को समझें
मेटावर्स शब्द सुनने में काफी जटिल है. आसान शब्दों में समझें तो मेटावर्स एक तरह की आभासी दुनिया है. इस तकनीक से आप वर्चुअल आइंडेंटिटी के जरिए डिजिटल वर्ल्ड में घुसते हैं. यह एक अलग दुनिया होती है और यहां आपकी अलग पहचान होती है. इस पैरेलल वर्ल्ड में आप घूमने, शॉपिंग करने और दोस्तों से मिलने का मौका भी मिलता है. मेटावर्स ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी कई टेक्नोलॉजी को मिलाकर काम करता है.
कहां से निकला कॉन्सेप्ट
मेटावर्स का कॉन्सेप्ट कोई नया नहीं है. इसकी उत्पत्ति करीब तीन दशक पहले 1992 में हुई थी. तब अमेरिकन साइंस फिक्शन लेखक नील स्टीफैंसन ने मेटावर्स का वर्णन अपने उपन्यास ‘स्नो क्रश’ में किया था. इन तीस साल में इंडस्ट्री धीरे-धीरे इस टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ती गई. वहीं अब मौजूदा स्थिति की बात करें तो फेसबुक मेटावर्स पर काम करने वाली पहली कंपनी नहीं है. फेसबुक से पहले 2017 में स्टार्टअप Decentraland ने इसी कॉन्सेप्ट पर काम किया था. इसकी वेबसाइट https://decentraland.org/ है. आपको यहां अलग वर्चुअल दुनिया मिलेगी. इस दुनिया में अपनी करंसी, इकोनॉमी और जमीन है.
मेटावर्स बदल देगा आपकी दुनिया
मेटावर्स का यूज अभी ट्रायल बेस पर कुछ ही लोग कर पा रहे हैं. इसके जल्द ही सबके लिए आने की उम्मीद है. यह जब भी आएगा, तब आपकी दुनिया बदल देगा. दरअसल इसके जरिए आप किसी भी वर्चुअल वर्ल्ड में पहुंच सकते हैं. मान लीजिए वर्चुअल टूर के दौरान रास्ते में आपको कोई शोरूम दिखा तो आप वहां खरीदारी कर सकते हैं. इसके बाद वर्चुअली खरीदा गया आपका सामान हकीकत में आपके दिए पते पर पहुंच जाएगा. यानी आपकी दुनिया तो वर्चुअली होगी, लेकिन उसका एक्जिक्यूशन असल होगा.
Source : ABP News