INDIA
मोदी सरकार का बड़ा फैसला- इन खेलों के खिलाड़ियों को भी मिलेगी सरकारी नौकरी

हम सब अक्सर ही देखते और सुनते है,कि अमुक खिलाड़ी किसी खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के बाद भी आर्थिक तंगी झेल रहा है। बाॅडी – बिल्डिंग जैसे खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करनेवाले खिलाड़ियों की जिदंगी बदहाल है। ऐसी बातें सुनकर शायद ही कोई खेल के प्रति अपनी रूचि, प्रतिभा प्रदर्शित करेगा । लेकिन इन समस्याओं पर विचार करते हुए केन्द्र सरकार ने 20 नए खेल जोड़ते हुए 63 खेलों के खिलाड़ी को सरकारी नौकरी में नियुक्ति देगी। पहले सिर्फ 43 खेल के खिलाड़ी ही नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते थे।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी), भारत सरकार ने मंगलवार, 1 सितंबर 2020 को 20 नए खेलों के एथलीटों को खेल कोटा का लाभ दिए जाने के खेल विभाग के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। केन्द्र सरकार के कार्यालयों में प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की नियुक्ति के लिए पात्र खेलों की सूची में अब खेलों की संख्या 43 से बढ़कर 63 हो गई है और इसमें मल्लखम्ब, टग ऑफ वार, रोल बाल जैसे स्वदेशी तथा पारम्परिक खेल शामिल हैं।
डीओपीटी द्वारा जारी संशोधित सूची में शामिल 20 नए खेल इस प्रकार हैं : बेसबाल, बॉडी बिल्डिंग (इसे पूर्व में जिम्नास्टिक के भाग के रूप में शामिल किया गया था।), साइक्लिंग पोलो, डीफ स्पोर्ट्स, फेंसिंग, कुडो, मल्लखम्ब, मोटरस्पोर्ट्स, नेट बाल, पैरा स्पोर्ट्स (पैरालम्पिक और पैरा एशियाई खेलों में शामिल खेल), पेनकेक सिलट, रोल बाल, रग्बी, सेपक टकरा, सॉफ्ट टेनिस, शूटिंग बाल, टेनपिन बॉलिंग, ट्राइएथलॉन, टग ऑफ वार और वुशु।
फैसले के बारे में बताते हुए केन्द्रीय युवा कार्यक्रम और खेल मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने कहा, “हमारे एथलीटों का समग्र कल्याण सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता है और डीओपीटी की सूची में ज्यादा खेलों को शामिल करने का प्रस्ताव इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है। यह न सिर्फ ऐसे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाने के लिहाज से अहम होगा जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, बल्कि इससे देश में खेलों के समग्र विकास के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने में भी सहायता मिलेगी।”
पहले भारत सरकार और विभिन्न मंत्रालयों में नौकरियों के लिए खेल कोटे के अंतर्गत 43 खेलों के एथलीट ही पात्र थे। युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय ने खेलों की सूची में संशोधन के लिए इस मामले को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के सामने रखा। इस सूची को पिछली बार अक्टूबर, 2013 में संशोधित किया गया था। इसकी समीक्षा की गई और अब स्वदेशी और पारम्परिक खेलों सहित 20 नए खेलों को जोड़ दिया गया है। एशियाई खेलों, ओलम्पिक जैसी अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं और अन्य चैम्पियनशिप्स में इन नए जोड़े गए खेलों में अच्छा प्रदर्शन करने वाले एथलीटों को खेल कोटे के अंतर्गत फायदा मिलेगा।
Team : Satyam
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मेंगलुरु-मुंबई विमान में हुई अजीब घटना, प्रेमी जोड़े का व्हाट्सएप्प चैट बना उड़ान में देरी की वजह

मेंगलुरु (कर्नाटक). मेंगलुरु से मुंबई जाने वाले विमान को उड़ान भरने में उस समय छह घंटे की देरी हुई. जब एक महिला यात्री ने उसके साथ यात्रा कर रहे एक व्यक्ति के मोबाइल फोन पर संदिग्ध संदेश आने के बारे में जानकारी दी. पुलिस ने बताया कि सभी यात्रियों को विमान से उतरने के लिए कहा गया और उनके सामान की व्यापक रूप से तलाशी ली गयी. इसके बाद ही इंडिगो के विमान को रविवार शाम को मुंबई के लिए उड़ान भरने की अनुमति दी गई.
एक महिला यात्री ने विमान में सवार एक व्यक्ति के मोबाइल फोन पर एक संदेश देखा और विमान के चालक दल को इसकी जानकारी दी. चालक दल ने हवाई यातायात नियंत्रक को इसकी सूचना दी और उड़ान भरने के लिए तैयार विमान को रोकना पड़ा.
बताया जाता है कि यह व्यक्ति अपनी प्रेमिका से मोबाइल पर संदेश भेजकर बातचीत कर रहा था, जिसे उसी हवाईअड्डे से बेंगलुरु के लिए उड़ान भरनी थी. इस व्यक्ति को पूछताछ के कारण विमान में सवार होने नहीं दिया गया. पूछताछ कई घंटों तक चली जबकि उसकी प्रेमिका की बेंगलुरु की उड़ान छूट गयी. बाद में सभी 185 यात्री मुंबई जाने वाले विमान में फिर से सवार हुए और शाम पांच बजे विमान ने उड़ान भरी. शहर के पुलिस आयुक्त एन. शशि कुमार ने कहा कि देर रात तक कोई शिकायत दर्ज नहीं की गयी क्योंकि यह दो दोस्तों के बीच सुरक्षा को लेकर मैत्रीपूर्ण ढंग से हो रही बातचीत थी.
Source : News18
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38 साल बाद मिला शहीद चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर, हल्द्वानी में होगा अंतिम संस्कार

15 अगस्त को पूरा देश आजादी की 75वीं सालगिरह अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है. वहीं, सियाचिन पर अपनी जान गंवाने वाले एक शहीद सिपाही का पार्थिव शरीर 38 साल बाद उनके उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित घर आ रहा है. हम बात कर रहे हैं 19 कुमाऊं रेजीमेंट के जवान चंद्रशेखर हर्बोला की.

शहीद चंद्रशेखर की पत्नी
दरअसल, 29 मई 1984 को सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान हर्बोला की जान चली गई थी. बर्फीले तूफान में उस दौरान 19 जवान दब गए थे, जिनमें से 14 के शव बरामद कर लिए गए थे. लेकिन पांच जवानों के शव नहीं मिल पाए थे. इसके बाद सेना ने पत्र के जरिए घरवालों को चंद्रशेखर के शहीद होने की सूचना दी थी. उसके बाद परिजनों ने बिना शव के चंद्रशेखर हर्बोला का अंतिम क्रिया-कर्म पहाड़ी रीति रिवाज के हिसाब से कर दिया था.
डिस्क नंबर से हुई पहचान
इस बार जब सियाचिन ग्लेशियर पर बर्फ पिघलनी शुरू हुई, तो खोए हुए सैनिकों की तलाश शुरू की गई. इसी बीच, आखिरी प्रयास में एक और सैनिक लॉन्स नायक चंद्रशेखर हर्बोला के अस्थि शेष ग्लेशियर पर बने एक पुराने बंकर में मिले. सैनिक की पहचान में उसके डिस्क ने बड़ी मदद की. इस पर सेना कर दिया हुआ नंबर (4164584) अंकित था.
28 की उम्र में छोड़ गए थे बिलखता परिवार
बता दें कि 1984 में सेना के लॉन्स नायक चंद्रशेखर हर्बोला की उम्र सिर्फ 28 साल थी. वहीं, उनकी बड़ी बेटी 8 साल और छोटी बेटी करीब 4 साल की थी. पत्नी की उम्र 27 साल के आसपास थी.
राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार
अब 38 साल बाद शहीद चंद्र शेखर का पार्थिव शरीर सियाचिन में बर्फ के अंदर दबा हुआ मिला, जिसे 15 अगस्त यानी आजादी के दिन उनके घर पर लाया जाएगा और पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा.
चेहरा तक देख नहीं सकी थी पत्नी
शहीद चन्द्रशेखर हर्बोला के पत्नी शांति देवी (65 साल) के आंखों के आंसू अब लगभग सूख चुके हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि उनके पति अब इस दुनिया में नहीं हैं. गम उनको सिर्फ इस बात का था कि आखिरी समय में उनका चेहरा नहीं देख सकी.
वहीं, उनकी बेटी कविता पांडे (48 साल) ने बताया कि पिता की मौत के समय वह बहुत छोटी थीं. ऐसे में उनको अपने पिता का चेहरा याद नहीं है. अब जब उनका पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचेगा, तभी जाकर उनका चेहरा देख सकेंगे.
चित्रशाला घाट पर क्रिया-कर्म
भतीजे ने बताया कि चाचा चंद्रशेखर हर्बोला की सियाचिन में पोस्टिंग थी. उस दौरान ऑपरेशन मेघदूत के दौरान बर्फीले तूफान में 19 जवानों की मौत हुई थी, जिसमें से 14 जवानों के शव को सेना ने खोज निकाला था, लेकिन 5 शव को खोजना बाकी था. एक दिन पहले की चन्द्रशेखर हर्बोला और उनके साथ एक अन्य जवान का शव सियाचिन में मिल गया है. अब उनके पार्थिव शरीर को धान मिल स्थित उनके आवास पर 15 अगस्त यानी आज लाया जाएगा है. जिनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ रानी बाग स्थित चित्रशाला घाट में होगा.
Source : Aaj Tak
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आज 15 अगस्त पर जानिए ध्वजारोहण और झंडा फहराने में क्या है अंतर?

आज देशभर में आजादी का 75वां साल धूमधाम से मनाया जा रहा है और इसी खुशी को दोगुना करने के लिए भारत सरकार ने ‘हर घर तिरंगा’ कैंपेन शुरू किया है. इसके तहत आम से लेकर खास हर कोई अपने घर पर तिरंगा लगा रहा है. वहीं, इस जश्न को मनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों ने कई तैयारियां की है.
देश का राष्ट्रीय ध्वज आन-बान और शान का प्रतीक है. हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराते हैं, लेकिन स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने में भी होते हैं. दो तरह से झंड़े को फहराया या लहराया जाता है. पहले को ध्वजारोहण कहते हैं और दूसरे को हम ध्वज फहराना कहते हैं. आइए आजादी के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर हम आपको बताते हैं कि इन दोनों के बीच क्या अंतर है?
ध्वजारोहण और झंडा फहराने में अंतर
देश के इन दो खास मौकों पर राष्ट्रीय ध्वज को फहराया या लहराया जाता है जिसके बीच अंतर होता है. स्वतंत्रता दिवस पर जब ध्वज को ऊपर की तरफ खींचकर लहराया जाता है, तो इसको ध्वजारोहण कहते हैं, जिसे इंग्लिश में Flag Hoisting कहते हैं. वहीं, दूसरी तरफ गणतंत्र दिवस पर ध्वज को ऊपर बांधा जाता है और उसको खोलकर लहराते हैं, इसे झंडा फहराना कहते है, जिसे अंग्रेजी में Flag Unfurling कहते हैं.
जानें प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति में क्या अंतर है?
स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के कार्यक्रम को आयोजन लाल किले पर होता है. इस खास मौके पर कार्यक्रम में देश के प्रधानमंत्री शामिल होते हैं और ध्वजारोहण करते हैं. वहीं, गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के कार्यक्रम का आयोजन राजपथ पर होता है और कार्यक्रम में देश के राष्ट्रपति शामिल होते हैं और झंडे को फहराते हैं. प्रधानमंत्री देश के राजनीतिक प्रमुख होते हैं और राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होते हैं.
गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति क्यों फहराते हैं झंडा?
देश का संविधान 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ था. इससे पहले देश में न तो संविधान था और न राष्ट्रपति. इसी के के कारण हर साल 26 जनवरी को राष्ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं.
Source : Zee News
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