भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य के तौर पर चुने जाने पर कुछ ओछी मानसिकता वाले लोगों ने सवाल खड़ा किया है, दरअसल उनका ये सवाल बेबुनियाद है जो लोकतंत्र में राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट दोनों पर प्रश्न चिन्ह लगा रहा है, लोकतंत्र के इन दोनों मजबूत स्तंभ के बिना भारत में गणतंत्र की कल्पना नही की जा सकती, राष्ट्रपति देश के सर्वप्रथम नागरिक होते है, उनके निर्णय को संदेह से देखना और महामहिम को देश की राजनीति में घसीटना दुर्भाग्यपूर्ण है, राज्यसभा भारतीय संसद का उपरी सदन होता है और बुद्धिजीवी और जानकार लोगो के राज्यसभा सदस्य बनने से राज्यसभा की गरिमा और बढ़ती है, परन्तु विपक्ष और मोदी विरोधी ताकतें शायद विरोध के राग को गाने में लोकतंत्र की गरिमा को भूल गये है.

राज्यसभा सदस्यों के चयन की प्रक्रिया में राष्ट्रपति द्वारा कुछ मनोनीत सदस्यों के चुनाव का प्रावधान है जिसके अंतर्गत राष्ट्रपति अपने विवेक से बुद्धिजीवी लोगो का चयन करते है, जिन्होंने कला , न्याय , समाज, खेल और अन्य फील्ड में देश के वैभव में चार चांद लगाए हो, सचिन तेंदुलकर, जावेद अख़्तर और अभिनेत्रि रेखा भी इसी प्रावधान के तहत राज्यसभा के सदस्य है, इसी कड़ी में राष्ट्रपति को इस वर्ष भी मनोनीत सदस्यों में बुद्धिजीवी का चयन करना था और देश के महामहीम ने बुद्धि विवेक का परिचय देते हुए , सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का चयन किया, रंजन गोगोई का नाम सामने आते ही बोखलाहट में लोगो ने सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया, रंजन गोगोई विगत वर्ष ही सुप्रीम कोर्ट के सी.जी.आई पद से सेवानिवृत्त हुए है, सेवानिवृत्त होने के कुछ दिन पहले ही रंजन गोगई ने राम मंदिर अयोध्या मामले में रामलला के पक्ष में फैसला दिया था, उनके इसी फैसले के बाद देश का एक तबका उनपे बार बार आरोप लगाता रहा है, अब रास्ट्रपति द्वारा रंजन गोगई को मनोनीत करना भी कुछ लोगो को रास नहीं आ रहा.

Image result for justice Rangnath Mishra

मगर राज्यसभा कारवाई के कुछ जानकारो की माने तो रंजन गोगई के आने से राज्यसभा की बहस अधिक तर्कपूर्ण औऱ सवैधानिक होगी क्योंकि रंजन गोगई संविधान के अच्छे जानकार है और मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहते हुए उन्होंने देश की न्यायिक स्तिथि को अच्छे से समझा है, उनके राज्यसभा सदस्य चयणित होने का लाभ राज्यसभा को मिलेगा और बहस भी अच्छे होंगे.

Image result for ranjan gogoi

 

दरअसल राष्ट्रपति और राज्यसभा के मनोनीत सदस्यों को दलगत भावना से उपर उठ के देखना चाहिए, और इसके पूर्व भी कांग्रेस द्वारा न्यायाधीश का चयन राज्यसभा सदस्य पद के लिये हुआ है, खैर विरोध करने वाले को कौन समझाए उनका लोकतांत्रिक अधिकार है असहमति जताना लेकिन राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट को दलगत भावना से अलग देखना चाहिए और राष्ट्रधर्म सर्वप्रथम की नियत होनी चहिए.

 

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...