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राइफल के पुर्जे बनाने वाली कंपनी ने बना दी रॉयल एनफील्ड बुलेट, जानें कितना दिलचस्प था सफर

पिछली आधी सदी में देश में ना जाने कितनी तकनीकें बदलीं, ना जाने कितनी बाइकें आईं और चलते-चलते रास्तों में कहीं खो गईं। लेकिन Royal Enfield Bullet ऐसे खो जाने के लिए नहीं बनी थी। इस शानदार मोटरसाइकल ने पिछले 85 सालों से अपनी शान को बरकरार रखा है। इसका सबूत वो सभी आंखें हैं जिनका लालच सालों बाद भी सड़क पर इठलाती बुलेट को देखकर रत्तीभर कम नहीं हुआ है।
ये जानना आपको दिलचस्प लग सकता है कि रॉयल एनफील्ड (Royal Enfield ) भारत की बजाय इंग्लैंड में बनती थी और वहां से ये बाइक यहां तक पहुंची। वो कहते हैं ना, ‘किसी भी सफर का मुस्तकबिल उसका आगाज तय कर देता है।’ ‘बुलेट’को ‘बुलेट’ बनाने के पीछे ऐसे ही एक आगाज की दिलचस्प कहानी छिपी है।
इस सफर की शुरूआत तब हुई जब इंग्लैंड की साइकिल बनाने वाली कंपनी ‘इनफिल्ड’ को 1893 में ब्रिटिश फौज द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली राइफिल के कुछ पुर्जे बनाने का काम सौंपा गया। इन पुर्जों के तैयार होने के साथ ही एक साधारण सी साइकिल कंपनी रातों-रात हमेशा के लिए ‘रॉयल’ बन चुकी थी।
इस अभूतपूर्व गौरवमयी उपलब्धि की याद में इनफील्ड साइकिल्स ने अपना नाम बदलकर ‘रॉयल इनफील्ड’ रखने का फैसला किया और कंपनी की टैगलाइन भी बदलकर ‘मेड लाइक ए गन’ रख दी गई। इसी थीम पर आगे चलते हुए 1932 में लीजेंड ऑफ बाइक्स ‘बुलेट’को लांच किया गया। इस ब्रिटिश मोटरसाइकिल को भारत मंगाने के लिए के.आर. सुंदरम अय्यर ने 1949 में मद्रास मोटर्स की स्थापना की।
1952 में फौज के लिए भारत सरकार की 800 ‘बुलट’ की मांग पर 1953 में समुद्र के रास्ते यह मोटरसाइकिल पहली बार हिंदुस्तान पहुंची और हम लोगों से रूबरू हुई।

1952 में भारत आई बुलेट
1970 में यूके स्थित रॉयल इनफील्ड कंपनी के बंद हो जाने के बाद से सिर्फ भारत में इस कंपनी की बाइक्स बनाई जाती हैं। इस तरह से ‘बुलट’ ब्रिटेन से हिंदुस्तान आई और यहीं की होकर रह गई। दरअसल, हालात कुछ इस तरह हुई कि बुलेट बनाने वाली ब्रिटिश कंपनी घाटे में चली गई और मद्रास मोटर्स भी हाशिए पर पहुंच गई। तब 1994 में भारत की प्रमुख ट्रैक्टर निर्माता कंपनी आयशर ग्रुप (Eicher Group) ने एनफील्ड इंडिया लिमिटेड को हमेशा के लिए अपने अधिकार में ले लिया।
तब आयशर भी कोई नई कंपनी नहीं थी। बल्कि 1948 से लगातार भारत में अपने उत्पादों की सफलतापूर्वक बिक्री कर रही थी। अब इस कंपनी का नाम रॉयल एनफील्ड मोटर्स लिमिटेड रख दिया गया। दुनियाभर में जितनी भी रॉयल एनफील्ड की मोटरसाइकिलें बिक रही हैं उन सभी का निर्माण ये ही कंपनी करती है।
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ज्ञान की बात: आखिर जींस के पैंट में क्यों बनी होती है एक छोटी पॉकेट

दुनिया में जींस को अमेरिका ने इंट्रोड्यूस करवाया. इस देश से होते हुए जींस दुनिया के सारे कोनों में पहुंच गया. जिस जींस को आज फैशन स्टेटमेंट माना जाता है, असल में उसका निर्माण मजदूरों के लिए किया गया था. जींस बनाने के पीछे कारण था मजदूरों के कपड़े ज्यादा गंदे ना हों. जी हां, बार-बार पैंट को धोना ना पड़े इस कारण जींस बनाई गई थी. आज के समय में हर कोई जीन्स पहनता है. इसके पॉकेट के अंदर के हिस्से में एक छोटा पॉकेट बना रहता है. इसे हम सिक्के रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं. लेकिन आपको बता दें कि असल में ये किसी और चीज के लिए बनाया गया है.
जींस के पॉकेट के अंदर के एरिया में एक छोटा सा स्पेस बनाया जाता है. आमतौर पर हम इसमें सिक्के डाल देते हैं. लेकिन दाएं तरफ बनी का असली उपयोग किसी और कारण से होता है. दरअसल,इसे सिक्के नहीं, बल्कि छोटी घड़ी रखने के लिए यूज किया जाता है. दरअसल,जींस का इतिहास काफी पुराना है. शुरुआत में तो इसे मजदूरों के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में ये फैशन स्टेटमेंट बन गया. 18वीं सदी में छोटी चेन वाली घड़ियां चलती थी. उसी घड़ी को रखने के लिए पॉकेट में ये स्पेस बनाया गया था. इस स्पेस को बनाना लेवी स्ट्रॉस नाम की कंपनी ने शुरू किया था. यही अब लेविस बन चुका है.
जींस के दाएं तरफ मौजूद इस स्पेस को आधिकारिक तौर पर वॉच पॉकेट कहा जाता है. पुराने समय में काऊब्वॉयज़ इसके अंदर चेन वाली घड़ी रखते थे. लेकिन बाद में जब इस घड़ी का चलन कम हुआ तो लोगों को लगने लगा कि असल में ये सिक्के रखने के लिए बनाए जाते हैं.इस स्पेस में घड़ी रखने से इसके टूटने-फूटने के चांसेस कम होते थे. इसका इस्तेमाल हर मजदुर करता था. बाद में इस वॉच पॉकेट को लोग इतना पसंद करने लगे कि अब भी इसे दायीं तरफ बनाया जाता है.
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फुल टाइम जॉब के साथ तैयारी करके IAS बनीं याशनी नागराजन, सीखें बेहतर टाइम मैनेजमेंट

नई दिल्ली: संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को देश के सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है और ज्यादातर कैंडिडेट्स को लगता है कि इसकी तैयारी फुल टाइम करनी पड़ती है, लेकिन कुछ स्टूडेंट ऐसे भी होते हैं, जो नौकरी करने के साथ ही सिविल सर्विस एग्जाम पास कर लेते हैं और आईएएस बन जाते हैं. ऐसी ही कुछ स्टोरी अरुणाचल प्रदेश की रहने वाली यशनी नागराजन की है, जिन्होंने फुल टाइम जॉब के साथ रोजाना सिर्फ 4-5 घंटे पढ़ाई की और आईएएस अफसर बनने का सपना पूरा किया.
याशनी ने पहले की इंजीनियरिंग
याशनी नागराजन ने अपनी स्कूली शिक्षा अरुणाचल प्रदेश के नाहरलगुन स्थित केंद्रीय विद्यालय से की. 12वीं के बाद याशनी ने पापुम पारे जिले के युपिया में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया और उन्होंने इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक पूरा किया.
फुल टाइम जॉब के साथ यूपीएससी की तैयारी
बीटेक करने के बाद याशनी नागराजन की नौकरी लग गई, लेकिन उनका सपना हमेशा से आईएएस अफसर बनने का था. इसके बाद उन्होंने नौकरी के साथ ही यूपीएससी एग्जाम की तैयारी करने का फैसला किया. हालांकि फुल टाइम जॉब के साथ यह इतना आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने बेहतर टाइम मैनेजमेंट से यह संभव कर दिखाया.
रोज कर पाती थीं सिर्फ 4-5 घंटे पढ़ाई
फुल टाइम जॉब के बावजूद याशनी नागराजन पढ़ाई के लिए समय निकाल लेती थीं, लेकिन वह एक दिन में सिर्फ 4-5 घंटे ही पढ़ाई कर पाती थीं. हालांकि वह वीकेंड का पूरा इस्तेमाल करती थीं और पूरे दिन पढ़ाई करती थीं. DNA की रिपोर्ट के अनुसार, याशनी मानती है कि फुल टाइम जॉब करने के साथ ही यूपीएससी एग्जाम की तैयारी कर सकते हैं, लेकिन वीकेंड पर आपको ज्यादा ध्यान देना होगा.
तीसरे प्रयास में याशनी को मिली सफलता
याशनी नागराजन ने कड़ी मेहनत से यूपीएससी एग्जाम की तैयारी की, लेकिन पहले दो प्रयासों में उन्हें सफलता नहीं मिली. तीसरे प्रयास में याशनी चयनित हुईं और ऑल इंडिया में 834वीं रैंक हासिल की, लेकिन वो अपनी रैंक से संतुष्ट नहीं थी. इसके बाद उन्होंने चौथी बार एग्जाम देने का फैसला किया.
चौथे प्रयास में बनीं IAS अफसर
लगातार दो असफलताएं और तीसरी बार 834वीं रैंक हासिल करने के बाद भी याशनी नागराजन ने हिम्मत नहीं हारी और खुद को मोटिवेट करते हुए चौथी बार यूपीएससी परीक्षा दी. चौथे प्रयास में भी याशनी को सफलता मिली और उन्होंने 57वीं रैंक हासिल कर आईएएस बनने का सपना पूरा किया. याशनी के पिता थंगावेल नागराजन रिटायर्ड पीडब्ल्यूडी इंजीनियर हैं और उनकी मां गुवाहाटी हाई कोर्ट रजिस्ट्री के ईटानगर शाखा की रिटायर्ड सुपरिटेंडेंट हैं.
पहले 2 प्रयासों में क्यों नहीं मिली सफलता?
याशनी नागराजन बताती है कि उनकी असफलता पीछे सबसे बड़ी कमी ऑप्शनल विषय था. उन्होंने गलत ऑप्शनल चुन लिया था, क्योंकि उनके सारे दोस्त वही चुन रहे थे. तीन बार उन्होंने उसी ऑप्शनल सब्जेक्ट के साथ परीक्षा दी और चौथी बार में उसे बदलने के बाद सफलता हाथ लगी. वे कहती हैं ऑप्शनल सब्जेक्ट का चुनाव बहुत ज्यादा जरूरी है, इसलिए सोच-समझकर ही चुनना चाहिए.
Source : Zee News
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‘तुम कोई कलेक्टर हो क्या?’, सवाल चुभा तो पास कर ली IAS की परीक्षा; प्रियंका शुक्ला की कहानी

आज बात एक ऐसी महिला की जिसने अपनी जिंदगी में जो ठाना वो कर के दिखाया। लगन और मेहनत के बूते यह महिला वहां तक पहुंची जहां पहुंचने की तमन्ना कई लोगों के दिल में होती है। आज हम बात कर रहे हैं आईएएस अफसर प्रियंका शुक्ला की। छत्तीसगढ़ की यह आईएएस अफसर सोशल मीडिया पर भी एक्टिव रहती हैं औऱ कोरोना वायरस जैसे घातक संक्रमण के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का काम भी करती हैं।
हालांकि, आईएएस अफसर बनने से पहले प्रियंका शुक्ला एक एमबीबीएस डॉक्टर थीं। लेकिन उनकी जिंदगी में एक ऐसा वाकया हुआ जिसके बाद वो आईएएस अफसर बन गईं। साल 2006 में प्रियंका शुक्ला ने लखनऊ के KGMU संस्थान से MBBS की डिग्री हासिल की थी। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने लखनऊ में काम शुरू कर दिया था।
अपने कामकाज के दौरान ही वो लखनऊ के एक झोपड़पट्टी इलाके में पहुंची थीं। यहां पहुंचने के बाद उन्होंने देखा कि एक महिला और उनका बच्चा प्रदूषित पानी पी रहे हैं। उस वक्त प्रियंका शुक्ला ने महिला से पूछा था कि आप यह पानी क्यों पी रही हैं? इसपर महिला ने प्रियंका शुक्ला को जवाब दिया कि ‘क्या तुम कोई कलेक्टर हो?’…महिला की यह बात सुनकर प्रियंका शुक्ला चकित रह गई थीं। महिला की बात प्रियंका को इतनी चुभी कि उन्होंने आईएएस अफसर बनने का फैसला कर लिया। इसके लिए उन्होंने साल 2009 में अपनी तैयारी शुरू की। दूसरी बार में प्रियंका शुक्ला ने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली
प्रियंका शुक्ला के बारे में बताया जाता है कि उनकी गिनती बेहतरीन आईएएस अफसरों में होती है। वो बेहतरीन कविताएं लिखती हैं और एक अच्छी नर्तकी भी हैं। इसके अलावा उन्हें गाने और पेंटिग्स का भी शौक है। अपनी कलाकारी से वो सोशल मीडिया पर अपने प्रशंसकों को अक्सर चकित करती रहती हैं।
सोशल मीडिया पर उनके कई प्रशंसक मौजूद हैं। अकेले ट्विटर पर उन्हें 70,000 लोग फॉलो करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में अपने बेहतरीन काम के लिए प्रियंका शुक्ला अवार्ड भी जीत चुकी हैं। कोरोना वायरस के खिलाफ लोगों को जागरुक करने के उनके काम को लोगों के बीच काफी पसंद किया जाता है।
Input: jansatta
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