हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र माह के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम जन्मोत्सव मनाया जाता है। ग्रंथों के अनुसार त्रेतायुग में इस तिथि पर पुनर्वसु नक्षत्र में श्रीराम का जन्म हुआ था। इस बार ये महापर्व 2 अप्रैल, गुरुवार को मनाया जाएगा। श्रीराम के जन्म समय के दौरान ग्रहों की स्थिति शुभ स्थिति और दुर्लभ योग भी बन रहे थे। इस दिन पांच ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित थे। सूर्य, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि के उच्च राशि में स्थित होने से राजयोग और पंचमहापुरुष योग भी बने थे। इन ग्रहों के शुभ प्रभाव से त्रेता युग में राजा दशरथ के यहां भगवान विष्णु के अवतार यानी मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में ज्ञानी, तेजस्वी और पराक्रमी पुत्र का जन्म हुआ।

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राम जन्म की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम का अवतार त्रेता युग में हुआ था। अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया और यज्ञ से प्राप्त खीर की। दशरथ ने अपनी प्रिय पत्नी कौशल्या को दे दिया। कौशल्या ने उसमें से आधा हिस्सा कैकेयी को दिया इसके बाद दोनों ने अपने हिस्से से आधा-आधा खीर तीसरी पत्नी सुमित्रा को दे दिया। इस खीर के सेवन से चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम का जन्म हुआ। इसी तरह कैकेयी से भरत तो सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया।

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राम नवमी ऐसे मनाते हैं

रामनवमी पर सुबह जल्दी उठकर सूर्य को जल चढ़ाया जाता है। इसके बाद पूरे दिन नियम और संयम के साथ मर्यादा पुरुषोत्तम का व्रत किया जाता है। इस पर्व पर भगवान श्रीराम की तरह मर्यादा में जीवन जीने के लिए संकल्प भी लिया जाता है। इसके बाद भगवान राम और सीता माता के साथ ही भगवान लक्ष्मण और हनुमान जी की पूजा की जाती है। कई जगह भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। भगवान राम की मूर्ति को पालने में झुलाया जाता है। इस दिन रामचरित मानस का पाठ करवाया जाता है। मान्यता है कि राम नवमी के दिन उपवास रखने से सुख समृद्धि आती है और पाप और बुराइयों का नाश होता है।

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