कोरोना की धमक मुजफ्फरपुर तो आ गयी, लेक़िन मुजफ्फरपुर के कुछ लोगों को अक्ल अब तक नहीं आयी. जी हाँ यही हक़ीक़त है, मुजफ्फरपुर में लगातार तीन दिन से रोज मिल रहे कोरोना के संक्रमीत मरीज़ मिलने के बाद भी अब भी कई लोग है जो कोरोना के गंभीरता तो नहीं समझ रहे. दुनिया भर में मौत का तांडव मचा चुके कोरोना से मुजफ्फरपुर के कुछ लोग समझने का नाम नहीं ले रहे. बाजारों में अब भी जमघट लगा रहे है. बाइक सवार गैर जिम्मेदार लड़के शहर का चक्कर काट रहे है. ये हालत देख कर लगता है शहर में मूर्खो की संख्या बहुत है, जो प्रसाशन से नुक़्क़ा छिपाई खेल कर बहुत महान समझ रहे है.

बिहार का सभी जिला कोरोना के चपेट में आ गया है. प्रवासी मजदूरो के बिहार लौटने का सिलसिला जारी है. मजदूरों के बिहार लौटने से संक्रमण का खतरा और अधिक बढ़ गया है. मुजफ्फरपुर में भी बड़ी संख्या में प्रवासी लोग आये है सभी की संगरोध किया गया है लेकिन बाजारों में लग रही जमघट को देख लग रहा है, मुजफ्फरपुर वालो ने क़सम खा रखी है हम नहीं सुधरेंगे.

सड़क पर निकलने वाला हर इंसान कोई ना कोई बहाना सोच कर घर से निकल रहा है, इन बहाना से आप पुलिस से तो बच सकते है लेकिन कोरोना से कैसे छिपेंगे. आपकी लापरवाही सिर्फ आपकी जान नहीं लेगी ये पूरे शहर को खतरा में डाल देगी ये तो वहीं बात हुई ना हम तो डूबेंगे सनम साथ में पूरा मुजफ्फरपुर को ले डूबेंगे.

जो लोग घर से बेवजह बाहर निकल रहे है वो मन ही मन कह रहे है कि हम नहीं सुधरेंगे. ये ना सुधरने वाले लोग वही लोग है जो समाज के असली दुश्मन है, लगता है इन लोगो को अपने घर परिवार से लगाव नहीं है. अगर लगाव होता तो ऐसी बेहया वाली हरक़त नही करते.

जिन लोगों की कोरोना वारियर या आवश्यक सेवा में ड्यूटी लगी है उनकी तो मजबूरी है, उनकी जिम्मेदारी है बाहर निकलना, लेक़िन जो समाज के दुश्मन घरों से बेवज़ह बाहर जा रहे है वो दुष्ट लोग मुजफ्फरपुर के लिये समस्या बन सेकते है.

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अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...