सरकारी प्रयासों के बावजूद दूसरे राज्यों में फंसे मजदूर हजारों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर रहे हैं। मजदूरों की कहानी सुन रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं। एमपी-महाराष्ट्र के बिजासन बॉर्डर पर नवजात बच्चे के साथ पहुंची महिला मजदूर की कहानी रुह कंपाने देने वाली है। बच्चे के जन्म के 1 घंटे बाद ही उसे गोद में लेकर महिला 160 किलोमीटर तक पैदल चल बिजासन बार्डर पर पहुंची।

दरअसल, 5 दिन के बच्चे को गोद में लेकर बैठी महिला का नाम शकुंतला है। वह अपने पति के साथ नासिक में रहती थी। प्रेग्नेंसी के नौवें महीने में वह अपने पति के साथ नासिक से सतना के लिए पैदल निकली। नासिक से सतना की दूरी करीब 1 हजार किलोमीटर है। वह बिजासन बॉर्डर से 160 किलोमीटर पहले 5 मई को सड़क किनारे ही बच्चे को जन्म दिया।

बच्चे को लिए बिजासन बॉर्डर पहुंची महिला

शनिवार को शकुंतला बिजासन बॉर्डर पर पहुंची। उसके गोद में नवजात बच्चे को देख चेक-पोस्ट की इंचार्ज कविता कनेश उसके पास जांच के लिए पहुंची। उन्हें लगा कि महिला को मदद की जरूरत है। उसके बाद उससे बात की, तो कहने को कुछ शब्द नहीं थे। महिला 70 किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में मुंबई-आगरा हाइवे पर बच्चे को जन्म दिया था। इसमें 4 महिला साथियों ने मदद की थी।

पुलिस की टीम रह गई अवाक

शकुंतला की बातों को सुनकर पुलिस टीम अवाक रह गई। महिला ने बताया कि वह बच्चे को जन्म देने तक 70 किलोमीटर पैदल चली थी। जन्म के बाद 1 घंटे सड़क किनारे ही रुकी और पैदल चलने लगी। बच्चे के जन्म के बाद वह बिजासन बॉर्डर तक पहुंचने के लिए 160 किलोमीटर पैदल चली है।

शकुंतला के पति राकेश कौल ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा कि यात्रा बेहद कठिन थी, लेकिन रास्ते में हमने दयालुता भी देखी। एक सिख परिवार ने धुले में नवजात बच्चे के लिए कपड़े और आवश्यक सामान दिए। राकेश कौल ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से नासिक में उद्योग धंधे बंद हैं, इस वजह से नौकरी चली गई।

राकेश ने बताया कि सतना जिले स्थित ऊंचाहरा गांव तक पहुंचने के लिए पैदल जाने के सिवा हमारे पास कोई और चारा नहीं था। हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं था। हमें बस घर जाना था, क्योंकि वहां अपने लोग हैं, वे हमारी मदद करेंगे। राकेश ने बताया कि हम जैसे ही पिंपलगांव पहुंचे, वहां पत्नी को प्रसव पीड़ा शुरू हो गया।

वहीं, बिजासन बॉर्डर पर तैनात पुलिस अधिकारी कविता कनेश ने कहा कि समूह में आए इन मजदूरों को यहां खाना दिया गया। साथ नंगे पैर में आ रहे बच्चों को जूते भी दिए। शकुंतला की 2 साल की बेटी इधर-उधर छलांग लगा रही थी। उसके बाद प्रशासन ने वहां से उसे घर भेजने की व्यवस्था की।

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