रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारत के पास डिफेंस क्षेत्र में निर्यातक बनने की क्षमता है। उन्होंने दावा किया कि कई देश भारत से संबंध स्थापित कर रक्षा उत्पादों को खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। रक्षा मंत्री के मुताबिक, भारत की मिसाइलों को कई देश अपने हथियारों के जखीरे में शामिल करना चाहते हैं। सीतारमण का यह बयान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसकी वजह यह है कि भारत पारंपरिक तौर पर हथियारों का बड़ा आयातक है। अभी भी सेना को करीब 50% रक्षा खरीद के लिए विदेशी सरकारों और कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है।

भारत के वॉरशिप्स की विदेश में चर्चा

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के एक इवेंट में रक्षा मंत्री ने कहा, “हमारे इंटिग्रेटेड मिसाइल प्रोग्राम की दुनियाभर में बात होती है, क्योंकि इसके नतीजे हर किसी को पता हैं। मैं यह बताना चाहती हूं कि उत्पादकों के पास भारतीय सेना के अलावा भी एक बाजार मौजूद है।” उन्होंने बताया कि दुनिया को भारत की वॉरशिप और साधारण शिप बनाने की क्षमता का भी अंदाजा है। इसी लिए कई देश हमसे रक्षा उत्पाद बनाने में मदद मांग रहे हैं।

निर्यातक बनने के लिए भारत को लॉन्ग टर्म प्लान बनाने की जरूरत

सीतारमण ने जोर देते हुए कहा कि भारत को निर्यातक बनने के लिए एक लॉन्ग टर्म प्लान की जरूरत है। उन्होंने सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिल लिमिटेड (एचएएल) का उदाहरण देते हुए कहा, “मैं काफी समय से उन्हें (एचएएल को) निर्यात बढ़ाने के लिए कह रही हूं। एयरफोर्स से आपको भुगतान समय पर न मिलने की शिकायत हो सकती है, लेकिन इस बारे में भी विवाद है कि आप समय पर उत्पादों की सप्लाई नहीं देते।” रक्षा मंत्री के मुताबिक, एचएएल की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के बावजूद एयरफोर्स के पहले से लिए गए ऑर्डरों को पूरा करने में अभी काफी समय लग सकता है।

Input : Dainik Bhaskar

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