सुजानपुर (हमीरपुर).पूरा देश आज होली (Holi-2020) का त्योहार मना रहा है. ऐसे में हिमाचल भी इससे अछूता कैसे रहेगा. सूबे में कई जगह होली पर अबीर गुलाल उड़ रहा है. हमीरपुर में तीन दिवसीय सुजानपुर होली महोत्सव (Sujanpur Holi Festival) भी आयोजित हुआ.
हमीरपुर (Hamirpur) में सुजानपुर में होली मेला काफी मशहूर है. इसका इतिहास तीन सौ साल पुराना है. विश्व के सबसे प्राचीन कटोच वंश के 481वें महाराजा संसार चंद ने हिमाचल के हमीरपुर के सुजानपुर के चौगान में 1795 में प्रजा के साथ पहली बार राजमहल में तैयार खास तरह के गुलाल से तिलक होली खेली थी. अब इस चौगान में राष्ट्रीय होली आयोजित की जा रही है. नगर के एक छोर में करीब 300 वर्ष पुराने राधा कृष्ण मंदिर से होली का महाराज ने आगाज किया था. कटोच वंश पर चल रहे राष्ट्रीय शोध संस्थान नेरी के शोध में इस बात का खुलासा हुआ है.शोध के मुताबिक, पूरे वर्ष में केवल होली के दिन ही राजा संसार चंद के आम लोगों को दर्शन हुआ करते थे.
होली का इतिहास
कटोच वंश का इतिहास मंगोलिया देश तक जुड़ा है. जिस पर मंगोलिया के दूत सुजानपुर में पहुंचकर पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं. अब शोध में यह बात भी सामने आ रही है कि उत्तर प्रदेश के रामपुर के नवाब मुल्ला मोहम्मद खान को सुजानपुर में राजनीतिक शरण मिली हुई थी. महाराजा की सेना में दो अंग्रेज विदेशी अधिकारी भी थे, जिनमें ओब्राइन आइरिश व जेम्स अंग्रेज थे. जो अंग्रेजी सेना के अनुरूप सैनिकों को प्रशिक्षित करते थे. होली के दिन सेना के अलावा रानियां व राजा भी सुजानपुर में एकत्र हो जाते थे.
अब भी हैं कटोच शासन के वंशज
काँगड़ा व जोधपुर की सांसद रहीं एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्री चंद्रेश कुमारी कटोच वंश के 489वें वंशज हैं. उनके बेटे एश्वर्य कटोच सुजानपुर से तीन किलोमीटर टीहरा महाराजा संसार चंद की राजधानी में भी मेले को एक दिन मनाने की मांग उठाते रहे हैं. शोध के मुताबिक, 1795 को सुजानपुर के अस्तित्व में आने से पहले टीहरा में भी होली होती थी. संसार चंद का जन्म 1765 को हुआ था.पिता तेग चंद की जगह उन्हें राजगद्दी मिली थी. 1823 को उनकी मृत्यु हुई थी. सुजानपुर नगर को बसाने के लिए विभिन्न कलाओं में प्रवीण सज्जन पुरुषों को सुजानपुर में सम्मान सहित लाया गया. पुरातन मंदिरों की इस नगरी को पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए कभी गम्भीरता से प्रयास नहीं हुए.