इंटरनेट पर आपने भी अबतक एक माँ के बेटे की मौत का प्रशासन द्वारा बनाया गया तमाशा वाला वीडियो देख लिया होगा. रोती – बिलखती माँ भले पैसे से गरीब है, मगर ममता की बीज उसमे भी इतनी ही है जितनी हर माँ में होती है. लेकिन वो अपने बच्चे को नहीं बचा सकी और वज़ह बस एक कि वो गरीब है.

अपने बीमार चल रहे बच्चें को उसके गरीब माँ- बाप ने बचाने का हर प्रयास किया, लेकिन उनका लाल स्वास्थ महकमा के लापरवाही की बली चढ़ गया, उस वीडियो में पिता के आंखों में बेबसी का दर्द झांकने की कोशिश कीजिये रूह सिहर जायेगा, आत्मा झकझोर देगा.

तीन साल के बच्चे को डॉक्टरों द्वारा पहले अरवल से जहानाबाद, फिर जहानाबाद से पटना रेफर किया गया. अस्पताल पहुचाने की बात तो कीजिये ही मत. बच्चे के मौत के बाद भी उसे एम्बुलेंस नहीं मिला, उस बदनसीब माँ को शव ले जाने के लिए एंबुलेंस भी नही नसीब हुई.

मां इस तरह बच्चे का शव हाथ में लेकर बदहवास भागती रही. मां गोद में तीन साल के बच्चे की लाश लेकर सड़क पर बदहवास दौड़ रही है, और आला अधिकारियों को मानो जैसे लकवा मार दिया हो, सब सुन्न परे है, शर्म आना चाहिए इसे देखकर सवेंदनहीन बिहार की स्वास्थ सेवा के लोगो को.

ये ऐसी त्रासदी है, जिसने सिर्फ कोरोना इंफेक्टेड ही नहीं, हर इंसान पर असर डाला. ये निंदनिय तस्वीर चिकित्सा सुविधाओं के जीते-जागते ‘लाश’ बिहार की है.

तारीख-10 अप्रैल. दिन- शुक्रवार, इस दिन एक माँ की आयी इस निर्मम तस्वीर को बिहार सरकार स्वास्थ विभाग का लोगो बना देना चाहिए, ताकि इस लोगो को देख लोग समझ सके,कि बिहार में जान की क्या कीमत है. और मानवता की मौत भी हो चुकी है.

हाथ में बच्चे की लाश लेकर दौड़ती औरत की वीडियो देखकर क्या साहब का कलेजा नहीं पसीजता. क्या इस माँ की चीख़- चीत्कार का असर साहबों के बंग्लो तक नहीं पहुचता, इन ग़रीबो को आख़िर मरने के बाद भी सम्मान का अधिकार नही है क्या, हजारो सवाल मन में उठ रहे है. ये वीडियो हर उस इंसान के हृदय को चोटिल कर रही है, जिसके भीतर तनिक भी मानवता है ऐसे में बिहार स्वास्थ सेवा और जिला प्रशासन के बाबू लोग को इस माँ का दुख नहीं दिखता क्या, ऐसे स्वास्थ सेवा के बदौलत हम कोरोना से जंग लड़ रहे है. यहाँ मेडिकल आपातकाल के साथ – साथ, सेवेदंनशीलता और मानवता पर भी आपातकाल लगा है..

 

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...