बिहारी संस्कृति, सभ्यता, सुंदरता, संवेदनशीलता औऱ स्वाभिमान का समाहित स्वरूप है छठी माई. लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का गीत फिजा में घुलते ही एक मधुरता का एहसास होता है. छठ केवल पर्व का विषय नहीं बल्कि गर्व का विषय है.
डूबते सूर्य को नमन करने की परंपरा अगर किसी राज्य में है तो वो राज्य है बिहार. हम बिहारी सम्पूर्ण जगत में कही भी चले जायें लेक़िन हमारे भीतर बिहारीपन अमर रहेगा और छठ उसी अमरत्व की पहचान है. बिहार में यू ही नहीं छठ को महापर्व कहते है. ठेठ बिहारीपन आपमें तब तक नहीं आ सकती जब तक आप छठ माई के प्रासंगिकता को नहीं समझे.
छठ पूजा महापर्व है बाकी सब तो सिर्फ़ पर्व है- अब छठ की धूम बिहार से बाहर विदेशों में भी है. बिहार के मिट्टी का यह मुलपर्व वास्तव में बिहार के लिये पर्व मात्र नहीं है बल्कि यह गर्व के अनुभूति का कारण है.
छठ माई के गीत सुनते ही आपको अगर अपने घर- दुआर, छठ घाट और परिवार की याद आने लगती है तभी आपके भीतर बिहारिपन जिंदा है. बिहार के छठ उसकी आत्मा है, बिहार का सार है यह तयोहार- जय छठी माई.