बी.एच.एम. एस के छात्रों की स्थिति का अंदाजा शायद बिहार विश्वविद्यालय को नहीं है. विश्वविद्यालय ना जाने किन कामो मे मग्न है कि छात्रों की परीक्षा भी समय पर नही ली गयी. छात्रों का कहना है कि उन्हें यूनिवर्सिटी का चक्कर लगाना पड़ता है तब जाकर परीक्षा होती है और परीक्षा हो जाये तब भी लापरवाही का हद ऐसा है कि साहब रिजल्ट निकालना तक भूल जाते है. विद्यार्थि कहते है कि फिर से उन्हें यूनिवर्सिटी का चक्कर लगाना पड़ता है तब जाकर कहीं परीक्षाफल प्रकाशित किया जाता है.

ऐसी ही एक होमियोपैथी के छात्र ने बताया कि बिहार विश्वविद्यालय के अन्तर्गत महाविद्यालय में पढ़ने वाले उन जैसे हजारों होम्योपैथी के छात्रों की स्थिति बेहद खराब हो गई है.

अन्य विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र इन छात्रों से 1- 1.5 वर्ष आगे हो चुके हैं, बिहार विश्वविद्यालय का ये रवैया देखकर छात्र ख़ुद को कोस रहे है कि उन्होंने बेकार ऐसे यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया जिन्हें छात्रों की सूद तक नही है.

राज्य के एक मात्र सरकारी और अन्य कई प्राइवेट होम्योपैथिक चिकित्सा संस्थान बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर से संचालित हो रहे है, चिकित्सा प्रणाली का मानव जीवन मे महवपूर्ण स्थान होते हुए भी चिकित्सा के इस प्रणाली के प्रति ऐसा बरताव दुखदायी है.

छात्र कहते है कि होमियोपैथी आज भी चिकित्सा की दूसरी सबसे प्रमुख पद्धति घोषित है और असंख्य लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं, किसी विश्वविद्यालय के लिये तो ये गौरव की बात होनी चाहिए परन्तु मुज़फ्फरपुर स्तिथ बिहार विश्वविद्यालय के प्रशासन कानों में तेल डाल कर सो जाते है.

इस देश के हर विश्वविद्यालय में जहाँ भी होमियोपैथी (बी.एच.एम. एस) की पढ़ाई होती है वहां सभी जगह सेशन 2014-2019 का ईन्टर्नसिप पुरा हो गया है, यहाँ तक कि 2015-2020 का भी फाइनल परीक्षा परिणाम आ गया, परंतु बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ़्फ़रपुर में अभी तक 2014 बैच( Final year) के साथ-साथ 2015,2016,2018 बैच का परीक्षा परिणाम तक नही आया है जबकि हमलोगों की परीक्षा फरवरी में ही ख़त्म हो गई थी.

बिहार विश्वविद्यालय के इस रवैया से छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है, ये पूरे देश के छात्रों से 1-1.5 वर्ष पूर्ण रूप से पीछे हो गया है.

इस सेशन के छात्र बिहार के छात्रों से सीनियर हो चुके हैं, एक बार विश्वविद्यालय प्रसाशन खुद से सोच कर देखे छात्रों का भविष्य ऐसे में कितना मानसिक,आर्थिक प्रताड़ना हो रहा होगा.

बिहार विश्वविद्यालय मुज़फ्फरपुर का ये रवैया सिर्फ इसी कोर्स में नही है बल्कि कई कोर्सो में यह यूनिवर्सिटी छात्रों के जीवन से खेलती है यूनिवर्सिटी को तमाम खबरो से भी फर्क नही पड़ता ये कहना जायज़ होगा कि बिहार विश्वविद्यालय के प्रसाशन और कर्मचारियों ने विश्वविद्यालय को भगवान भरोसे छोड़ दिया है ऐसे में छात्र दर दर की ठोकरें खा रहे है और ख़ुद को कोस रहे है.

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...