मशहूर शायर राहत इंदौरी (Rahat Indori) इस दुनिया में नहीं रहे. राहत इंदौरी की कोविड-19 के इलाज के दौरान मृत्यु हुई. इंदौर के जिलाधिकारी मनीष सिंह ने पुष्टि की. उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित पाये जाने के बाद यहां एक निजी अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में भर्ती किया गया थी.

अलविदा राहत इंदौरी: नहीं रहा 'आसमां को जमीन' पर लाने वाला शायर, पढ़िए उनके 20 चुनिंदा शेर

आज ही (मंगलवार) सुबह 70 वर्षीय शायर ने खुद ट्वीट कर अपने संक्रमित होने की जानकारी थी. उन्होंने कहा, “कोविड-19 के शुरूआती लक्षण दिखायी देने पर कल (सोमवार) मेरी कोरोना वायरस की जांच की गई जिसमें संक्रमण की पुष्टि हुई.” इंदौरी ने ट्वीट में आगे कहा, “दुआ कीजिये (मैं) जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं.” 1 जनवरी 1950 को इंदौर, मध्य प्रदेश में जन्में राहत कुरेशी उर्फ राहत इंदौरी के पिता का नाम रफ्तुल्लाह कुरैशी था जोकि कपड़ा मिल के कर्मचारी थे उनकी माता का नाम मकबूल उन निशा बेगम था.

उर्दू को विश्व पटल को एक नई और आधुनिक पहचान देने वाले शायरों में से एक राहत इंदौरी का इस दुनिया को छोड़ के जाना एक ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई नहीं हो सकती. आज हम आपको मशहूर शायर राहत इंदौरी के कुछ चुनिंदा शेर शेयर कर रहे हैं. राहत इंदौरी जब अपने खास और बेहद कमाल के लहजे में स्टेज पर शेर पढ़ते थे तालियों की गड़गड़ाहट रुकती नहीं थी. उनका एक शेर ‘आसमान लाये हो ले आओ ज़मीन पर रख दो..’ लोगों को बेहद पसंद है.

राहत इंदौरी के चुनिंदा शेर

1. आसमान लाये हो ले आओ ज़मीन पर रख दो.

मेरे हुजरे में नहीं, और कहीं पर रख दो,
आसमां लाये हो ले आओ, जमीं पर रख दो!
अब कहाँ ढूड़ने जाओगे, हमारे कातिल,
आप तो क़त्ल का इल्जाम, हमी पर रख दो!
उसने जिस ताक पर, कुछ टूटे दिये रखे हैं,
चाँद तारों को ले जाकर, वहीँ पर रख दो!

2. बुलाती है मगर जाने का नहीं
बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं

ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं

सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं

वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं

वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर जालिम से डर जाने का नहीं

3. ‘किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है’

अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

जो आज साहिब-इ-मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.

4. तूफ़ानों से आँख मिलाओ
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो

ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई मांगे
जो हो परदेस में वो किससे रज़ाई मांगे

5. फकीरी पे तरस आता है
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे

जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ, हिसाब तो दे

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क़ खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो

6. बहुत हसीन है दुनिया
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

7. उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे ख़राब करूं

8. बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं

9. आँख में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

10. बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ

11. तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो

12. अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए

13. न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा

14. मेरी ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे
मेरे भाई, मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले

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