तालाबंदी के बाद बिहार के हजारों बच्चे राजस्थान के कोटा में फंसे है, ये बिहार के वही उज्ज्वल भविष्य है जो कल डॉक्टर या इंजीनियर बनेंगें लेक़िन वर्तमान समय मे ये बच्चें सरकार से ख़ुद को ठगा महसूस कर रहे है और घर वापस बुला लेने की नीतीश सरकार से गुहार लगा रहे है. ये बच्चे ख़ुद को बिहारी होने पर तब कोसने लगते है जब इनके असम के साथियों को उनकी सरकार वापस बुला लेती है.

जी हाँ कोटा में फंसे असम के बच्चों को असम सरकार ने वापस बुलाने के लिये समुचित इंताज़म किया है और अपने आला अधिकारियों को भी कोटा भेज दिया है. ये सब देख कोटा में फंसे बिहार के बच्चें फफक कर रोने लगते है और कहते है प्लीज नीतीश अंकल हमे भी बुला लो जिस तरह हमारे अन्य राज्यों के साथी को सरकार बुला रही है ऐसे हम भी तो आपके बच्चें है, अपनी सरकार को मनाने के लिये बच्चों ने अनशन भी किया लेकिन बिहार सरकार अपने तर्कों के साथ जिद पर अडिग है.

लॉकडाउन होने के बाद कोटा के सारे मेस भी बंद हो गए है, मेस की सुविधा बन्द हो जाने से बच्चे औऱ अधिक परेशान है उन्हें अब खाना भी नहीं मिल रहा, बच्चे भूख से भी परेशानी में है.

इन्हीं मामलों पर जब पटना हाईकोर्ट ने नितीश सरकार से सवाल किया तो जवाब मिला बिहार सरकार लॉकडाउन के नियमों का सख़्ती से पालन कर रही है. बिहार सरकार का कहना है अगर अन्य राज्यों से लोगो को बुलाया जाए तो लॉकडाउन फेल हो जाएगा, ऐसे में क्या जो राज्य अपने बच्चों को वापस बुला रही है वो क्या लॉकडाउन के नियम के विरुद्ध है क्या, उपयुक्त जानकारी तो गृह मंत्रालय के पास भी, तालाबंदी के नियमो को जरूरत के अनुसार बदला जा सकता है. तालाबंदी कोई अडिग कानून नहीं है देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार राज्य की सरकारें बदलाव ला सकती है.

त्रासदी के इस स्तिथि में बिहार के जो बच्चें कोटा में फंसे है सरकार की उनसे बेरुख़ी क्या संदेश दे रही है, बच्चों को कोटा से लाने के सवाल को विपक्ष भी पुरजोर तरीक़े से उठा रही है. विपक्ष ने बच्चों को लाने के लिये संसाधन की भी पेशकश की है लेक़िन फिलहाल सरकार बच्चो को कोटा से लाने के बारे में चुप्पी साधी हुई है और बच्चो के माता पिता बेहाल हो रहे है.

Abhishek Ranjan Garg

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...