आंखों की रोशनी बचाने के नाम पर होने वाली फंडिंग की झपटमारी ऐसी कि बिना संसाधन के भी दो कमरों का आंख अस्पताल शहर में शुरू हो जाता है। इसके पीछे राष्ट्रीय अंधापन निवारण योजना के अलावा विदेशी फंडिंग भी काम करती है। लाचार लोगों की आंखों की रोशनी बचाने के नाम पर यह खेला वर्षों से चल रहा है। स्थिति यह है कि हर दूसरे गांव में पांचवे दिन आंख जांच शिविर आयोजित हो रहा है और स्वास्थ्य विभाग को इसकी भनक तक नहीं लगती।

शहर में जूरनछपरा से लेकर गांव के चौक-चौराहों तक आंख अस्पताल, आंख जांच केंद्र व आई केयर के नाम से धंधा चल पड़ा है। इनमें से अधिकांश अस्पतालों के पास आधारभूत संरचना भी नहीं है। डॉक्टर की कुर्सी, मरीज लेटाने के लिए बेड व ऊपर से एक मशीन। महज तीन संसाधनों के बूते के अस्पताल व नर्सिंग होम लाखों की कमाई कर रहे हैं। यह कमाई राष्ट्रीय स्तर की योजना से लेकर विदेशी कंपनी तक से की जा रही है।

जानकार बताते हैं कि जगह जगह खुले आंख के ये अस्पताल गांवों में मरीजों को नि:शुल्क आंख जांच के नाम पर जमा करते हैं। इसके बाद इनकी आंखों की जांच के दौरान कुछ को ऑपरेशन की सलाह दी जाती है। दलाल अक्सर कम पैसे में ऑपरेशन कराने या कभी-कभी मुफ्त ऑपरेशन के नाम पर शहर ले जाते हैं। इन्हें ऐसे अस्पतालों में पहुंचा दिया जाता है, जहां राष्ट्रीय या विदेशी कोष से प्रति मरीज पैसा मिलता है। मुफ्त ऑपरेशन के नाम पर इन मरीजों का ऑपरेशन आनन-फानन में किया जाता है। सूत्रों के मुताबिक एक व्यक्ति के नाम में थोड़ा हेरफेर कर उसे कई बार दर्ज किया जाता है।

Source : Hindustan

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