नई दिल्ली, प्रेट्र : अब आठ वर्ष तक प्रीमियम भर चुके ग्राहकों को बीमा कंपनियां क्लेम देने में आनाकानी नहीं कर सकेंगी। भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण यानी इरडा ने इन कंपनियों के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इरडा ने बताया कि इस कदम का उद्देश्य क्षतिपूर्ति संबंधी बीमा प्रोडक्ट्स के लिए सामान्य शब्द और खंडों का मानकीकरण करना था। इसमें व्यक्तिगत एक्सीडेंट और देश से बाहर यात्र को शामिल नहीं किया गया है।

इस दौरान इरडा ने कहा है कि मौजूदा पॉलिसी कॉन्ट्रैक्ट्स में इस हिसाब से बदलाव करना होगा। हालांकि ऐसे मामले जो धोखाधड़ी से जुड़े हैं या जिनमें नियम व शर्तो का स्पष्ट उल्लंघन हुआ है उनके लिए बीमा कंपनियों को अपील करने की इजाजत दी जाएगी। आठ वर्ष का यह समय मोरेटोरियम पीरियड कहलाता है। बीमा की पहली किस्त भरने के साथ ही इसकी शुरुआत मानी जाती है। नियामक ने कहा कि बीमा कंपनी को सभी कागजी प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद 30 दिन के भीतर दावे को स्वीकार या इन्कार करना चाहिए। अगर इस अवधि में बीमा कंपनियां दावा पूरा नहीं करती हैं तो उन्हें पॉलिसीधारक को ब्याज देना होगा। यह ब्याज बैंक दर से दो परसेंट अधिक होना चाहिए। इसके साथ ही इरडा ने कहा है कि ऐसे मामलों में जहां किसी तरह की धोखाधड़ी हुई है, सभी किस्तें जमा होने के बावजूद क्लेम नहीं मिल सकेगा। इनमें जमा राशि बीमा कंपनियां जब्त कर सकेंगी। इन दिशा-निर्देशों में पोर्टेबिलिटी का जिक्र भी किया गया है। बीमाधारक अगर चाहें तो अपने पॉलिसीकर्ता को बदल सकते हैं। लेकिन यह प्रक्रिया उस पॉलिसी की नवीकरण तिथि से कम से कम 45 दिन पहले होना चाहिए। लेकिन 60 दिन से पहले ऐसा करने की इजाजत नहीं होगी।

इरडा ने जारी किए नए दिशा-निर्देश बीमा क्षेत्र में आएगी एकरूपता निर्धारित लिमिट के अंदर भुगतान से मना नहीं कर पाएंगी कंपनियां

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