भागलपुर  परीक्षाएं निकट आते ही दवा दुकानों में याददाश्त बढ़ाने के नाम पर उपलब्ध दवाओं की बिक्री बढ़ जाती है। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसी दवाओं के सेवन से छात्रों की याददाश्त कतई नहीं बढ़ती हैं। उल्टे उन्हें शारीरिक रूप से अन्य नुकसान उठाने पड़ते हैं। युवाओं को ऐसी दवाएं खाने की आदत सी पड़ जाती है। वे एडिक्ट बन सकते हैं।

ऐसी दवाओं से होने वाले नुकसान से चिंतित होकर आइएमए की जिला इकाई ने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर इनकी बिक्री पर रोक लगाने की मांग की है। इस पत्र के बाद बिहार में ऐसी दवाओं की बिक्री और नुकसान पर चर्चा तेज हो गई है।

दवा बिक्री पर रोक लगाने की अपील की

आइएमए के सचिव वीरेंद्र कुमार बादल ने स्वास्थ्य मंत्री से याददाश्त बढ़ाने वाली दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की है। पत्र में कहा गया है कि मात्र 13 फीसद डॉक्टर वैसे मरीज को ऐसी दवा खाने की सलाह देते हैं जिन्हें नींद नहीं आती है और वे तनाव में रहते हैं। 83 फीसद दवाएं बिना डॉक्टर की पुर्जी के ही बेची जा रही हैं।

नहीं बनती हैं याददाश्त बढ़ाने वाली दवाएं

डॉक्टरों का कहना है कि वास्तव में याददाश्त बढ़ाने के लिए अबतक कोई दवा नहीं बनाई गई है। मेडिकल लिट्रेचर में भी ऐसा कोई जिक्र नहीं है। जो दवाएं याददाश्त बढ़ाने के नाम पर बेची जा रहीं, उसके दुष्प्रभाव से छात्र बीमार पड़ सकते हैं।

छात्रों की घबराहट का लाभ उठाती हैं दवा कंपनियां

जवाहरलाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल (जेएलएनएमसीएच) के मेडिसीन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एके पाण्डेय ने कहा कि दवा कंपनियां छात्रों की घबराहट का लाभ उठाने में माहिर हैं। वे उनकी मन:स्थिति को भांप कर उनका आर्थिक दोहन करती हैं। सभी डॉक्टर जानते हैं कि ऐसी कोई दवा बनती ही नहीं है। इसलिए वे कभी भी छात्रों को इस तरह की दवा खाने की सलाह नहीं देते हैं।

छोटे शहर में भी ऐसी दवाओं की रोजाना बिक्री 25 हजार तक

बाजार में आयुर्वेद और एलोपैथ की आधा दर्जन से अधिक ऐसी दवाएं उपलब्ध हैं। जिला केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष घनश्याम कोटरीवाल के मुताबिक जिले में प्रतिदिन 20 से 25 हजार की ऐसी दवाएं बिकती हैं। परीक्षा के समय इनकी बिक्री और भी बढ़ जाती है।

दवा का होता है दुष्प्रभाव

जेएलएनएमसीएच के मानसिक रोग विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. गौरव ने कहा कि ऐसी दवा खाने से मात्र मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है, लेकिन वास्तव में वैसा होता नहीं है। इन दवाओं में ‘हैवी मेटल’ होते हैं। इससे उनका सेवन करने वाले छात्रों में खून की कमी, सिर दर्द, उल्टी , पेट से जुड़ीं अन्य बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है।

Input : Dainik Jagran

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