वैसे तो बिहार सरकार और स्वास्थ्य विभाग दावा करते हैं कि सूबे के ग्रामीण इलाकों में भी लोगों को मुफ्त में चिकित्सा सुविधाएं मिल रही हैं, लेकिन जमुई  जिले में स्थित एक सरकारी अस्पताल की तस्वीरें सरकार के दावे की कलई खोलती नजर आती हैं।

इस सरकारी अस्पताल में जहां मरीज या डॉक्टर या फिर कोई स्वास्थ्यकर्मी नहीं आता. बल्कि 10 साल पहले बने सरकारी अस्पताल के परिसर में मवेशी बांधे जाते हैं. अस्पताल भवन के कमरों में सूअर-बाड़ी है. जमुई जिले के नक्सल इलाके खैरा में स्थित गरही का अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र आजकल गोशाला के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

गरही में स्थित इस स्वास्थ्य केंद्र के बारे में स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां डॉक्टर नहीं आते. अस्पताल में कोई स्वास्थ्यकर्मी भी तैनात नहीं है. ऐसे में मरीजों के आने का तो सवाल ही नहीं उठता. सरकारी अनदेखी और डॉक्टर-स्वास्थ्यकर्मी की गैर-मौजूदगी का फायदा कुछ लोग उठाते हैं. आसपास के गांव से विस्थापित लोगों ने इस अस्पताल भवन को रैन बसेरा बना लिया है. इस वजह से अस्पताल का भवन, जो दस साल पहले बना था, उसके कमरों में सूअर रखे जाते हैं. बाहर में लोग मवेशी बांधते हैं।

गरही के अस्पताल की जर्जर हालत को देखते हुए स्थानीय लोग इलाज के लिए जिला मुख्यालय जाने को मजबूर हैं. या फिर लोगों को निजी अस्पतालों के भरोसे रहना पड़ता है. गरही में रहने वालों ने बताया कि कई बार शिकायत करने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं हुई. स्थानीय ग्रामीण पिंकी देवी ने कहा कि जब डॉक्टर नहीं आते, इलाज नही होता तो लोग अस्पताल भवन को जानवरों को रखने में इस्तेमाल करते हैं. एक अन्य युवा विनय केशरी का कहना है कि उसने इस स्वास्थ्य केंद्र में कभी न तो किसी डॉक्टर को देखा है और न ही किसी स्वास्थ्यकर्मी को।

ऐसा नहीं है कि इस अस्पताल में डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी की तैनाती नहीं की गई है. खैरा के गरही के इस सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में चिकित्सक और कर्मी तैनात हैं, लेकिन अस्पताल की दुर्दशा के कारण यहां कोई आता ही नहीं. वर्षों से यह स्वास्थ्य केंद्र कागज पर ही चल रहा है. न्यूज 18 ने जब जमुई जिला स्वास्थ्य समिति के प्रबंधक सुधांशु कुमार से इस बारे में बात की तो उनका कहना था कि जल्द ही वहां सारी व्यवस्था ठीक कर ली जाएगी. इसके लिए विभाग ने काम शुरू कर दिया है।

Input : News18

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