शारीरिक रूप से दिव्यांग लोगों को हमारा समाज बोझ मानता है। बहुत बार तो परिवार पर उन्हें जिंदगी से मुक्त कर देने का भी दवाब बनाया जाता है। ऐसे ही शरीर में कोई भी कमी इंसान को मोहताज बना देती है। कद में छोटा होना भी एक शारीरिक कमी है। पर अपनी इस कमी को छोटा बनाया था उस लड़की ने जिसने बड़े सपने देखे। कभी कभी छोटे दिखने वाले लोग बड़े-बड़े कारनामे कर जाते हैं। किसी भी इंसान की काबिलियत हम उसके रंग-रूप और कद-काठी से नहीं आंक सकते। काबिलियत के आगे छोटा कद कभी कोई बाधा नहीं बन सकता। अगर हौसला बुलंद हो तो कोई भी मंजिल बहुत दूर नहीं होती। ऐसे ही मजबूत इरादों से मात्र 3 फीट कद वाली लड़की ने अफसर की कुर्सी पर बैठ लोगों के होश उड़ा दिए। समाज ने जिसे मार डालने के ताने दिए थे आज वो IAS हैं इनका नाम है आरती डोगरा।

IAS सक्सेज स्टोरी में आज हम आपको आरती के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं…

आज हम एक ऐसी ही शख्सियत के बारे नें बात करने जा रहे हैं जिनके लिए छोटा कद कभी बाधा नहीं बना। आरती डोगरा राजस्थान कैडर की आईएएस अधिकारी है। आरती का कद भले छोटा है लेकिन आज वो देशभर की महिला आइएएस के प्रशासनिक वर्ग में मिसाल बनकर उभरी हैं। उन्होंने समाज में बदलाव के लिए कई मॉडल पेश किए है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी खूब पसंद आए है।

आरती मूल रूप से उत्तराखंड की रहने वाली हैं। उनका जन्म उत्तराखंड के देहरादून में हुआ था। आरती 2006 बैच की आईएएस अधिकारी हैं। उनका कद तो मात्र तीन फुट छह इंच का है बचपन में उन्हें भी भेदभाव का सामना करना पड़ा।

समाज के लोग उन पर हंसे, मजाक उड़ाया और यहां तक कि कुछ लोगों ने उनके मां-बाप को ये भी सलाह दी कि ये लड़की बोझ है क्यों पाल रहे हो इसे मार डालो। पर आरती के माता-पिता को इन सारी बातों से ऊपर अपनी बच्ची से प्यार था। उन्होंने बेटी को पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया कि वो अफसर बन सके।

आरती ने अपने कार्यकाल में बड़े-बड़े काम किये हैं। उन्हें राजस्थान के अजमेर की नई जिलाधिकारी के तौर पर नियुक्ति मिली हैं। पहले भी वे एसडीएम अजमेर के पद पर भी पदस्थापित रही हैं। इससे पहले वे राजस्थान के बीकानेर और बूंदी जिलों में भी कलेक्टर का पदभार संभाल चुकी हैं। इसके पहले वो डिस्कॉम की मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर भी रह चुकी हैं।

बीकानेर की जिलाधिकारी के तौर पर आरती नें ‘बंको बिकाणो’ नामक अभियान की शुरुआत की। इसमें लोगों को खुले में शौच ना करने के लिए प्रेरित किया गया। इसके लिए प्रशासन के लोग सुबह गांव जाकर लोगों को खुले में शौच करने से रोकते थे। गांव-गांव पक्के शौचालय बनवाए गए जिसकी मॉनीटरिंग मोबाइल सॉफ्टवेयर के जरिए की जाती थी।

यह अभियान 195 ग्राम पंचायतों तक सफलता पूर्वक चलाया गया। बंको बिकाणो की सफलता के बाद आस-पास से जिलों ने भी इस पैटर्न को अपनाया। आरती डोगरा को राष्ट्रीय और राज्य स्तर के कई पुरस्कार मिल चुके हैं।

आरती जोधपुर डिस्कॉम के प्रबंध निदेशक के पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला आईएएस अधिकारी रही।आरती डोगरा ने पद ग्रहण करने के बाद कहा कि जोधपुर डिस्कॉम में फिजूल खर्ची, बिजली बर्बादी पर नियंत्रण के लिए जूनियर इंजीनियर से लेकर चीफ इंजीनियर तक की जिम्मेदारी तय की जाएगी। दूरदराज में जहां बिजली नहीं है वहां बिजली पहुंचाने के सभी प्रयास किये उनके द्वारा किये गए।

इसके अलावा बिजली बचत को लेकर जोधपुर डिस्कॉम में एनर्जी एफिशियेंसी सर्विस लिमिटेड (ईईएसएल) द्वारा उन्होंने 3 लाख 27 हजार 819 एलईडी बल्ब का वितरण भी करवाया था। जिससे बिजली की खपत में बहुत हद तक नियंत्रित हुआ था।

उनके पिता कर्नल राजेन्द्र डोगरा सेना में अधिकारी हैं और मां कुमकुम स्कूल में प्रिसिंपल हैं। आरती के जन्म के समय डॉक्टरों ने साफ कह दिया कि उनकी बच्ची सामान्य स्कूल में नहीं पढ़ पाएगी, लोग भी कह रहे थे कि बच्ची असामान्य है। पर उनके माता-पिता नें उनको सामान्य स्कूल में डाला। लोगों के कहने के वाबजूद उनके माता पिता नें किसी और बच्चे के बारे में सोच तक नहीं।

उनका कहना था कि मेरी एक ही बेटी काफी है जो हमारे सपनें पूरे करेगी। आरती की स्कूलिंग देहरादून के वेल्हम गर्ल्स स्कूल में हुई थी। इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया है।

इसके बाद पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए वो वापस देरहरादून चली आयीं। यहां उनकी मुलाकात देहरादून की डीएम आईएएस मनीषा से हुई जिन्हीने उनकी सोच को पूरी तरह बदल किया। आरती उनके इतनी प्रेरित हुई कि उनके अंदर भी आईएएस का जुनून पैदा हो गया।

उन्होंने इसके लिए जमकर मेहनत की और उम्मीद से भी बढ़कर अपने पहले ही प्रयास में लिखित परीक्षा और साक्षात्कार भी पास कर लिया। आरती नें साबित कर दिया कि दुनिया चाहे कुछ भी कहे, कुछ भी सोचे आप आने काबिलियत के दाम पर सबकी सोच बदल सकते हैं।

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