कॉपी 10 रुपये, पेंसिल 5 रुपये, कटर 3 रुपये, इरेजर 3 रुपये…। बरामदे में टेबल पर सजी इस दुकान पर कोई दुकानदार नहीं है। सामान के ऊपर गांधीजी की तस्वीर वाला एक पोस्टर और उस पर नाम लिखा है ‘ईमानदारी की दुकान।

बच्चे अपनी जरूरत के अनुसार सामान लेने आते हैं और इसी पोस्टर पर लिखा दाम देख टेबल पर रखे गुल्लक में पैसा डाल देते हैं। ईमानदारी का पाठ किताबों में नहीं बल्कि रोजमर्रा के जीवन में सीखाने के लिए यह अनोखी दुकान कांटी के उत्क्रमित मध्य विद्यालय ढेमहां के बच्चे चला रहे हैं।

जिले का यह स्कूल इन बच्चों की इस अनोखी दुकानदारी की वजह से चर्चा का विषय बना हुआ है। न कोई सामान देने वाला और न कोई रुपये लेने वाला। यहां बच्चों के ईमान पर सामान बिकता है। इस ईमानदारी की दुकान की वजह से बच्चे किताबों से रटकर नहीं बल्कि जीवन में ईमान लाना सीख रहे हैं। बच्चे जितना सामान लेते हैं, खुद ईमानदारी से उसका दाम गुल्लक में डाल देते हैं। पिछले आठ महीने से चल रही ईमानदारी की इस दुकान ने पूरे स्कूल की सूरत बदल दी है।

बाल संसद और मीना मंच के बच्चे करते हैं मॉनिटरिंग

स्कूल में बने बाल संसद और मीना मंच के बच्चे इसे संचालित कर रहे हैं। पहली बार में शिक्षकों ने सहयोग दिया मगर अब सबकुछ खुद बच्चे देख रहे हैं। आरती, कुमकुम, चुलबुल, रोहित, रिमझिम आदि बच्चे कहते हैं कि सामान बिकने से जितने रुपये गुल्लक में आते हैं, उन्हीं से फिर आगे का सामान लाते हैं। कांटी स्थित इस स्कूल के प्रधानाध्यापक गोपाल फलक कहते हैं कि पहले बच्चों को सामान के लिए भटकना पड़ता था। इस दुकान का उद्देश्य बच्चों में स्वाबलंबन, नैतिक शिक्षा और ईमानदारी को जीवन में उतारना है। इन बच्चों की वजह से स्कूल आज मॉडल बन गया है।

Input : Live Hindustan

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