छठ का पर्व बिहार, पूर्वी उत्तर प्रेदश और झारखंड में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. ये पर्व सूर्य, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है. छठ में सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है. मान्यता है कि कोई भी व्यक्ति अगर पूरे श्रद्धा भाव से व्रत कर के सूर्य देव की उपासना करता है और उन्हें अर्घ्य देता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. चार दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व 21 नवंबर को सुबह का अर्घ्य देने के साथ ही समाप्त हो जाएगा.
सूर्योदय अर्घ्य का समय
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को छठ पूजा का अंतिम दिन मनाया जाता है. इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने की परंपरा है. 21 नवंबर को सूर्योदय का अर्घ्य दिया जाएगा. उगते सूरज के अर्घ्य देने का शुभ मुहूर्त सुबह 06:49 बजे है. इसके बाद पारण कर इस व्रत को पूरा किया जाता है. सूर्य को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए. गिरते जल की धारा में सूर्यदेव के दर्शन करना चाहिए.
छठ पूजा या व्रत के लाभ क्या हैं?
ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों को संतान न हो रही हो या संतान होकर बार बार समाप्त हो जाती हो ऐसे लोगों को इस व्रत से अदभुत लाभ होता है. अगर संतान पक्ष से कष्ट हो तो भी ये व्रत लाभदायक होता है. अगर कुष्ठ रोग या पाचन तंत्र की गंभीर समस्या हो तो भी इस व्रत को रखना शुभ होता है. जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति खराब हो अथवा राज्य पक्ष से समस्या हो ऐसे लोगों को भी इस व्रत को जरूर रखना चाहिए.