उत्तर बिहार के ऐतिहासिक धरोहरों को बाढ़ से गंभीर खतरा पैदा हो गया है। वैशाली से लेकर पश्चिमी चंपारण के लौरिया तक ऐतिहासिक बौद्ध पर्यटन स्थल बाढ़ के पानी में डूबे हैं। पूर्वी चंपारण का केसरिया बौद्ध स्तूप का परिसर महीने भर से जलमग्न है। केसरिया बौद्ध स्तूप की दक्षिण-पूर्वी चहारदीवारी गंडक की बाढ़ में ध्वस्त हो गई है।

वैशाली की सीमा पर मुजफ्फरपुर के सरैया प्रखंड अंतर्गत कोल्हुआ अशोक स्तंभ और बौद्ध स्तूप परिसर में बाढ़ का पानी फैला है। पश्चिमी चंपारण में लौरिया अशोक स्तंभ परिसर कई दिनों तक सिकरहना नदी की बाढ़ के पानी में डूबा रहा। लौरिया अशोक स्तंभ परिसर का पानी धीरे-धीरे निकल गया है, लेकिन अन्य पर्यटन स्थलों पर अब भी बेहिसाब पानी है। हर साल की बाढ़ से इन पुरातात्विक महत्व के प्रमुख स्थलों को गंभीर खतरा पैदा हो रहा है, परन्तु इनके संरक्षण व सुरक्षा की कोई कार्ययोजना नहीं दिख रही।

कोल्हुआ में जलनिकासी की व्यवस्था फेल

कोल्हुआ बौद्ध स्तूप परिसर की अपेक्षा आसपास की जमीन ऊंची है। बारिश में चारों ओर का पानी स्वत: अशोक स्तंभ- बौद्ध स्तूप परिसर में चला आता है। तालाब समेत छोटे-छोटे स्तूप पानी में डूब गए हैं। जलनिकासी के लिए ह्यूम पाइप लगाकर तालाब को निकटवर्ती नहर से जोड़ा गया है,परन्तु नहर में बेहिसाब पानी आ जाने से जलनिकासी ठप है। कोरोना संकट से पहले तक यहां जापान, चीन, श्रीलंका, इंडोनेशिया, कनाडा एवं नेपाल समेत कई देशों से हर साल डेढ़-दो लाख पर्यटक आते रहे हैं। बाढ़ के पानी से कूटागारशाला को भी खतरा है।

केसरिया स्तूप के चारों ओर सैलाब

केसरिया स्तूप परिसर में चारों ओर एक महीना से अधिक दिनों से सैलाब है। पहले बारिश का पानी जमा हुआ। भवानीपुर में गंडक नदी का चंपारण तटबंध टूटने के बाद बाढ़ का बेहिसाब पानी आ गया। दक्षिण-पूर्वी चहारदीवारी पानी में ध्वस्त हो गई है। परिसर में जाने वाली सड़क पर भी पानी है। स्तूप दर्शन और राजमाता मंदिर में पूजा अर्चना बाधित है। एसएच 74 के निकट पर्यटन विभाग के कैफेटेरिया एवं  विश्राम गृह के चारों ओर झील सा नजारा है।

लौरिया अशोक स्तंभ को पुल से खतरा

वर्ष 2018 की तरह इस साल भी लौरिया अशोक स्तंभ परिसर से सिकरहना नदी की बाढ़ की धारा उफान मारने लगी। सिकरना में नेपाल से आने वाली पांच नदियां तांडव करती हैं। पुरातत्वविद एवं पटना संग्रहालय के शोध एवं प्रकाशन प्रभारी डॉ. शिव कुमार मिश्र बताते हैं कि लौरिया अशोक स्तंभ के निकट निर्माणाधीन पुल से गंभीर खतरा पैदा हो गया है। पानी की धारा अशोक स्तंभ परिसर में उफान मारती है। अशोक स्तंभ को बचाने के लिए पुल को  कम से कम 200 मीटर दूर ले जाना जरूरी है।

वैशाली, केसरिया से लेकर लौरिया तक के ऐतिहासिक स्थल हमारे धरोहर हैं। यहां अब हर साल बाढ़ आने से पुरातात्विक स्थलों की सुरक्षा को खतरा पैदा होने लगा है। मैं इनकी सुरक्षा का प्लान बनाकर मुख्यालय को भेजूंगा।

Input : Live Hindustan

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