होली (Holi 2020) का त्योहार आने में अब थोड़ी ही समय बाकी रह गया है. प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है. ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है. इस वर्ष 9 मार्च को होलिका दहन होगा और 10 मार्च को रंग वाली होली खेली जाएगी.

होली से जुड़ी पौराणिक कथाएं

होली से जुड़ी अनेक कथाएं इतिहास-पुराण में पाई जाती हैं. इसमें हिरण्यकश्यप और भक्त प्रह्लाद की कथा सबसे खास है. रंगवाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाता है.

 

कथा के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी. बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती.

भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई. अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ.

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