अब केले के तने से रेशा बनाया जा रहा। उससे साड़ी, कुर्ता व चादर सहित विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प बन रहे। यह सब हो रहा मोहिउद्दीननगर में। यहां की पूजा सिंह तमिलनाडु से प्रशिक्षण लेने के बाद बीते पांच साल से गांव की महिलाओं को इसके जरिए आत्मनिर्भर बना रहीं। अब तक दो हजार से अधिक को प्रशिक्षित कर रोजगार से जोड़ चुकी हैं।

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केले के तने को मशीन में डाल उससे रेशा निकाला जाता है। उसे अच्छी तरह सुखाने के बाद महिलाएं उससे बैग, सजावटी सामान, कलम स्टैंड व डोरमैट सहित अन्य वस्तुएं बनाती हैं। यह पूरी तरह जूट से बना दिखता है। बिहार सरकार इनमें से बहुत से सामान की खरीदारी करती है। अधिकतर उत्पाद तमिलनाडु भेजे जाते हैं। वहां से विदेशों तक डिमांड के हिसाब से खपत होती है।
इस काम में लगीं रीता देवी, नीतू कुमारी, सीता देवी, चांदनी सिंह, ऋचा सिंह और पूनम बताती हैं कि महीने में पांच से छह हजार आय हो जाती है। इससे आर्थिक स्थिति सुधरी है।
पूजा कहती हैं कि केले का जो तना पहले सड़ जाता था, अब किसानों की अतिरिक्त आमदनी का जरिया बन गया है। वे मोतिहारी, कटिहार, मधुबनी, गोपालगंज, भागलपुर, सहरसा, गया और पटना आदि जगहों पर भी इस कार्य के लिए महिलाओं को प्रशिक्षण दे रही हैं।
जिला परिषद अध्यक्ष प्रेमलता का कहना है कि यह बहुत ही बढ़िया प्रयास है। महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। इससे प्रेरणा लेने की जरूरत है।
किसानों को भी हो रहा फायदा
बेंगलुरु से फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने के बाद पूजा ने वर्ष 2010 में तमिलनाडु जाकर यह कार्य सीखा। वहां से आने के बाद समस्तीपुर में इसकी शुरुआत की। रेशा निकालने वाली मशीन तमिलनाडु से ही मंगाई। स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षण दिया। समस्तीपुर के अलावा हाजीपुर, मुजफ्फरपुर व दरभंगा सहित अन्य स्थानों पर केले की काफी खेती होती है। किसान फसल के बाद इसका तना फेंक देते हैं। ऐसे किसानों से संपर्क कर इसे इकट्ठा किया जाता है। उन्हें इसकी निश्चित कीमत दी जाती है।
आत्मनिर्भरता
- तमिलनाडु से लेकर अन्य जगहों पर मांग, तकरीबन दो हजार महिलाओं को प्रशिक्षण देकर बनाया आत्मनिर्भर
- मोहिउद्दीननगर की पूजा ने पांच साल पहले की शुरुआत, साड़ी कुर्ता व चादर के अलावा बन रहीं घरेलू उपयोग की कई वस्तुएं
- सुधर गई घर की आर्थिक स्थिति, महीने में पांच से छह हजार रुपये की कमाई कर रहीं महिलाएं
Input : Dainik Jagran