कोरोना वायरस और जेलों में कैदियों की बढ़ती भीड़ को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश देते हुए कहा है कि कोरोना महामारी को देखते हुए सभी आरोपियों को जेल तक लाने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा है कि ऐसे आरोपी जिन्हें अधिकतम सात साल की सजा की संभावना है उन्हें जेल में डालने की फिलहाल जरूरत नहीं है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी को देखते हुए आदेश दिया है कि सभी कैदियों को पर्याप्त मात्रा में मेडिकल सुविधाएं मिलनी चाहिए.

पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने सात साल से कम की सजा वाले मामलों में आरोपियों को अस्थायी तौर पर रिहा करने का आदेश दिया था, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र को हाई पावर्ड कमिटी गठित करने का आदेश दिया था जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर कैदियों को कुछ दिन की छुट्टी देनी थी. केंद्र और राज्यों द्वारा बनाई गई समितियों को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा से कहा है कि वे ऐसे कैदियों की पहचान करें जिन्हें अभी अस्थायी पर छोड़ा जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि पिछली बार जिन कैदियों को पैरोल पर छुट्टी दी गई थी उन कैदियों को दोबारा से 90 दिन की छुट्टियां दे दी जाएं.

कोर्ट ने पाया है कि अधिक भीड़ भाड़ वाली जेलों में कोरोना नियमों का पालन कर पाना मुश्किल है. कोर्ट ने आदेश दिया है कि कैदियों और स्टाफ का नियमित आधार पर टेस्ट होना चाहिए और उन्हें समय पर इलाज मिलना चाहिए. कोर्ट ने ये भी कहा है कि ऐसे कैदी जो किन्हीं कारणों से वापस घर नहीं जाना चाहते हैं उनके निवेदन का भी ध्यान रखा जाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है अगर कोई कैदी बाहर कोरोना वायरस होने के कारण या सामाजिक कारणों से वापस न जाना चाहे तो उनका ख्याल रखना है.

Input: Aaj Tak

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