कहा गए वो दिन
कहा गए वो दिन
वो दिन भी क्या दिन थे।
सुबह माता श्री कि मार से बिस्तर छोड़ते और
घर से छूटते हिं एल.एस. कॉलेज के फील्ड की तरफ दौड़ते थे…
लौटते वक़्त छाता चौक का लिट्टी बड़ा बुलाता था और
वही काठहीपुल का जलेबी भी कहाँ पीछे रह पाता था…
“मम्मी आई न ख़बऊ…मन नई खे” बोलकर नाश्ता तो टाल दिया करते थे और
जब पिताजी आँखें बड़ी करते तो उस नाश्ते को भी लिट्टी से भेंट करवा दिया करते थे…
स्कूल के लिए तैयार होते और दो चोटी बनाते थे और
नो काजल नो मेकअप का फंडा अपनाते थे…
स्कूल से घर लौटना सीधा कहाँ हो पाता था
उस भरी दोपहरी में भारत जलपान का डोसा बड़ा याद आता था…
घर पहुँचते तो मम्मी के खाने की खुशबू बुलाती थी और शाम होते ही
मंडली ग्रैंड मॉल के सीढियो पर जम जाती थी…
शाही लीची स्टेशन रोड के मैदान में उतर चुका है ये कोई खबरी बता जाता था और
उसके बाद तो दोस्त दोस्त कहाँ रहता असली कंपटीटर बन जाता था…
लीची लेकर जब घर पहुँचते तो सबके चेहरे पर खुशी पाते थें और
मम्मी के कहने पर दो चार पड़ोसियो को भी दे आते थे…
फिर थक कर रात को सो जाया करते थे और
वापस सुबह माता जी के मार से बिस्तर छोर दिया करते थे…
कहा गए वो दिन
वो दिन भी क्या दिन थे
इस महामारी के दौर में हम सब का जीवन थम सा गया है
जिस चीज की कद्र नहीं थी वही सारि चीजें अब बहुत प्यारी हो गयी है
आइये हम सारे मुज़फ़्फ़रपुर वासी मिलकर इसका सामना करें
अगर आपको ये मेरा प्रयास अच्छा लगा हो तोह प्रोत्साहन दे और अगर कहीं गलती दिखी हो तो पहले ही माफी चाहती हुँ 🙏🌸