जन अधिकार पार्टी के संयोजक राजेश रंजन उर्प पप्पू यादव अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. अलग-अलग वक्त पर कारण भी अलग रहते हैं. कभी वे जरायम पेशे (अपराध) की दुनिया का बड़ा नाम रहे तो कभी कोसी और पूर्णिया इलाके में उनकी छवि किसी रॉबिनहुड से कम नहीं रही है. किसी आपदा के वक्त वे लोगों के साथ हरदम खड़े नजर आते हैं. आज जब कोरोना काल के घने अंधेरे में हर तरफ अफरा-तफरी है. लोग परेशानी में जूझ रहे हैं, वहीं पप्पू यादव मुसीबत में घिरे लोगों के लिए हर वक्त घने अंधेरे के बीच रोशनी के रूप में खड़े नजर आ रहे हैं.
हाल में ही गंभीर बीमारी को देखते हुए पप्पू यादव का ऑपरेशन हुआ था. डॉक्टरों ने उन्हें रेस्ट की सलाह दी है, लेकिन वे कभी पटना के पीएमसीएच तो अगले ही पल एनएमसीएच में नजर आते हैं. दानापुर से दीदारगंज तक करीब 25-30 किमी के दायरे में आने वाले हर जगह, जहां भी उनकी जरूरत होती है वे एक कॉल में पहुंच जाते हैं. डॉक्टरों से मिलते हैं, लोगों की मुश्किलों का निदान करते हैं और अगर सामान्य तरीके से मदद न मिल रही हो तो वे अपने अंदाज में हड़काते हुए नजर आते हैं.
पप्पू यादव के बारे में वरिष्ठ पत्रकार सुनील सिन्हा कहते हैं कि हाल में ही उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी मौत से पहले जब उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत थी तो सरकार के स्तर पर उन्हें कई कोई सहायता नहीं मिली. अंत में पप्पू यादव के पटना में मंदिरी स्थित आवास से उन्हें ऑक्सीजन सिलिंडर मुहैया करवाई गई थी. पत्नी की मौत के बाद भी वे पप्पू यादव की इस मदद के लिए वे खुद को ऋणी बताते हैं.
अस्पतालों की कार्यशैली से नाराज हैं पप्पू
एक ओर जहां बड़े राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेता जमीन पर नजर नहीं आ रहे हैं वहीं, जन अधिकार पार्टी के संयोजक लागतार अस्पतालों का जायजा लेते दिख रहे हैं. आए दिन उन्हें राजधानी पटना के सरकारी अस्पतालों में देखा जाता है. जिस दौरान वो अस्पतालों में मरीजों को होने वाली परेशानी को उनके परिजनों के द्वारा सुनते हैं और अस्पताल की कार्यशैली को लेकर सवाल उठाते रहते हैं.
सेना के हवाले करना चाहते हैं बिहार के अस्पताल
कोरोना संकट के बीच खुद अस्पतालों के निरीक्षण के लिए निकलते हैं. इस दौरान कुव्यवस्था को वो लोगों के बीच रखते हैं और सरकार पर हमला बोलते हैं. वे जरूरतमंदों की यथासंभव मदद करते हैं और इस बात की भी वकालत करते हैं कि सरकार अगर बिहार में कोरोना के चेन को तोड़ना चाहती है तो सभी कोविड अस्पतालों को सेना के हवाले कर देना चाहिए तभी बिहार से कोरोना का खात्मा हो पाएगा.
जब डूब रहा था पटना
बता दें कि पप्पू यादव की सक्रियता तब भी इसी तरह थी जब 2 साल पहले जब पटना डूब गया था. तब भी इन्होंने इसी तरह से किया था. उस समय भी जब सब नेता भागे चल रहे थे ये फरिश्ता बन कर आए थे. पटना की सड़कों पर गले भर पानी में डूब-डूबकर दिन रात मदद कर रहे थे. जरूरतमंदों तक पीने का पानी और राशन पहुंचा रहे थे. रेस्क्यू कर रहे थे. तब कहा गया था कि पप्पू यादव नाटक कर रहे हैं. लेकिन मदद करना क्या नाटक हो सकता है? इस बार भी कुछ लोग ऐसा ही कह रहे हैं कि वे एक बार फिर नाटक कर रहे हैं. पर सवाल यह है कि कोविड संक्रमण के खतरों के बीच सीधे कोविड वार्ड में दाखिल हो जाना क्या नाटक है? बिना जाति-धर्म पूछे लोगों की मदद को हर स्तर पर आगे रहना क्या ढोंग है? क्या मीडिया में रहने के लिए कोई अपनी ही जान को जोखिम में डालेगा?
नहीं मिला राजनीतिक लाभ
हालांकि कई लोग कहते हैं कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं. जाहिर है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा हो सकता है. यह बात तब सही होती दिखी थी जब वर्ष 2020 में उन्होंने अपने कैंडिडेट उतारे थे. लेकिन हकीकत भी यह है कि कुम्हरार से इनके कैंडिडेट को कितना वोट मिला था? पानी में डूबे पटना में इस इलाके में इन्होंने शायद ही कोई घर हो जिसको उस विपदा में मदद न की होगी, लेकिन उनके कैंडिडेट की बुरी हार हुई थी.
तब कहां थे बड़े नेता?
बहरहाल हकीकत भी यही है कि हमारे यहां ऐसे सेवा भाव वाले को वोट नहीं मिलता. वोट तो जाति और धर्म पर मिलता है. जब पूरा पटना बाढ़ में डूब रहा था उस समय मदद करने न बीजेपी वाले आये थे न राजद वाले. लोग आज भी तत्कालीन डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी का वह हाफ पैंट पहने हुए रेस्क्यू वाला दृश्य नहीं भूले हैं. कैसे वे कई दिनों तक अपने घर में घिरे थे. तेजस्वी यादव दिल्ली में थे और नीतीश कुमार भी लंबे वक्त के बाद ही पटना का जायजा लेने निकले थे. तब यह सच्चाई थी कि पप्पू यादव लगातार पानी में डूब-डूबकर लोगों की मदद कर रहे थे.
गौरतलब है कि पप्पू यादव ने तब अधिक सुर्खियां हासिल की थीं जब वर्ष 2015 में वे लालू-नीतीश की जोड़ी के खिलाफ खड़े थे और एनडीए द्वारा फंडेड बताए जाते थे. हालांकि तब यह प्रयोग फेल रहा था. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इनपर वोटकटवा होने का आरोप लगा. लेकिन हर मुसीबत के समय लोगों की सेवाभाव में इन्होंने कोई कमी नहीं की. पप्पू यादव जहां कोरोना के मरीजों को दवाइयां और ऑक्सीजन पहुंचाने में लगे हैं, वहीं कई लोग इसे फिर ‘नाटक’ कह रहे हैं. हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि मुसीबत के समय खड़ा होने वाला शख्स अगर नाटक भी कर रहा है, तो यह सभी को करना चाहिए. लेकिन आपातकाल में घरों में छिपने वाला नेता नहीं चाहिए.
Input: News18