कोरोना वायरस फैलने को लेकर भारत में भी खौफ है. अब तक इसके 73 पॉजिटिव लोग मिले हैं. कर्नाटक के कलबुर्गी में इससे पहली मौत हुई है. 76 साल का यह व्यक्ति हाल ही में सऊदी अरब से भारत वापस लौटा था. बहरहाल, अस्पताल तैयार हैं.

सरकार हर रोज इस पर मॉनिटरिंग कर रही है. लेकिन हमारे यहां स्वास्थ्य सेवाओं का जो इंफ्रास्ट्रक्चर है क्या हम उससे इस महामारी से जंग लड़ पाएंगे? भारत न तो स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च के मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक पर खरा उतरता है और न आबादी के मुताबिक डॉक्टरों की संख्या पर.

बिहार, यूपी की बदतर है स्थिति

जहां पर ज्यादा डॉक्टर होंगे वहां पर स्वास्थ्य सेवाएं उतनी ही बेहतर होगी. लोगों की अच्छे डॉक्टरों तक पहुंच होगी तो वे बीमारियों से दूर रह पाएंगे. अब जरा इसके आंकड़े देखिए. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. जबकि भारत में 11,082 की आबादी पर मात्र एक डॉक्टर है. इस लिहाज से देखें तो यह अनुपात तय मानकों के मुकाबले 11 गुना कम है. बिहार में एक डॉक्टर पर 28,391 लोगों के ईलाज का बोझ है. जबकि उत्तर प्रदेश में 19,962 लोगों पर एक डॉक्टर है. अपने आपको काफी प्रोग्रेसिव स्टेट बताने वाले हरियाणा में एक डॉक्टर पर ईलाज के लिए 10189 लोग निर्भर हैं.

स्वास्थ्य पर कितना खर्च करता है भारत : 2017 के ग्लोबल हेल्थ एक्सपेंडिचर डेटाबेस को देखें तो 184 देशों में भारत का नंबर 166 वां है. यह तो खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय बता रहा है. 2015-16 में हम लोग स्वास्थ्य पर जीडीपी का 1.3 फीसदी खर्च करते थे जो अब 2019-20 में बढ़बर 1.6 फीसदी तक पहुंच गया है.

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