बिहार में कोरोना वायरस (Coronavirus) फैलने की रफ्तार तो काफी तेज है, लेकिन नीतीश सरकार (Nitish Government) के दावों को मजबूत करने वाला पूरा तंत्र सुस्त दिख रहा है. यहां तक कि कोरोना जांच का सरकारी सिस्टम RTPCR टेस्ट के नतीजों में ही 4-5 दिन का वक्त ले रहा है. बिहार में कोरोना के मौजूदा आंकड़े रिकॉर्ड तेजी पर हैं और रोज नई ऊंचाई छू रहे हैं, लेकिन इससे निपटने के इंतजाम नाकाफी साबित हो रहे हैं. जबकि बिहार में अस्पताल जाना खुद की दुर्दशा कराने के बराबर है, लेकिन ये सब एक दिन में नहीं हुआ है. इन सब के पीछे बिहार का स्वास्थ्य बजट है. पिछली बार की तुलना में बिहार बजट बढ़ा तो जरूर लेकिन इलाज, दवाओं और मैनपावर बढ़ाने के नाम पर महज 927 करोड़ ही बचते दिखे.

साल 2021-22 में स्वास्थ्य विभाग को 13,264 करोड़ रुपये का बजट (Bihar Budget) अलॉट किया गया. इस बजट में से 6,900 करोड़ योजनाओं पर खर्च किए जाने हैं. वहीं, 6,300 करोड़ स्वास्थ्य संबंधी निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होना है. बिहार में स्वास्थ्य की मौजूदा स्थिति और जनसंख्या के लिहाज से ये प्रस्तावित राशि ऊंट के मुंह में जीरा की तरह ही है.

बजट में ऐसे अहम क्षेत्रों को अनदेखा किया गया है, जिन्हें इस राशि की ज्यादा जरूरत है. मसलन डॉक्टरों की भर्ती, दवाओं की आपूर्ति और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करना शामिल है. मतलब जो बजट अलॉट किया गया है उससे कोरोना को हराना मुश्किल है.

कहां खर्च हो रही बजट की रकम

बजट पेश करते हुए सरकार ने आंकड़े बताते हुए कहा था कि पिछले साल के मुकाबले बजट 21.28 फीसदी ज्यादा है, लेकिन इनमें बड़ी राशि अस्पतालों के निर्माण पर खर्च हो रही है. नए बनने वाले अस्पतालों में ज्यादातर अस्पताल पटना और आसपास के इलाके में बन रहे हैं. सबसे अधिक राशि पटना मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल (पीएमसीएच) को विश्वस्तरीय अस्पताल बनाने के लिए खर्च होने वाली है. इसके लिए कुल 5540.07 करोड़ की राशि आवंटित की गई है. ये राशि ही इस साल के कुल स्वास्थ्य बजट का 42 फीसदी है. पटना के ही एक अन्य अस्पताल एलएनजेपी अस्पताल को 400 बेड वाले सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनाने के लिए 215 करोड़ खर्च होंगे. इसके अलावा भी इंफ्रास्ट्रक्चर पर बहुत ज्यादा फंड खर्च हो रहा है.

Input: News18

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