बिहार में चुनाव आनेवाले है। जहां हर पार्टी- गठबंधन सरकार बनाने के दावे कर रही है, वहीं महत्वपूर्ण को लेकर पक्ष- विपक्ष और अन्य पार्टियों ने अपने वादे के परचम विज्ञापन से लहरहा रहे है, वहीं खेल की सुविख्यात लोकप्रियता हर किसी की चुप्पी बनी हुई है।

खेल – खिलाड़ियों की बात करने वाला कोई नहीं है! बात तो रोजगार, पलायन और उद्योग की करते नहीं दिख रहे, लेकिन इन सबकी चर्चा तो बनी हुई है। लेकिन राज्य में खेल – खिलाडियो को लेकर चुप्पी छाई है।

शायद ही कोई युवा – व्यस्क होगा, जिसकी रूचि खेल को लेकर नहीं होगी। कहते हैं बिहार के बच्चे चलना ही बैट पकड़कर सीखते हैं। बल्लेबाज द्वारा गलत शाॅट खेलने पर अपनी विशेष प्रतिक्रिया जाहिर करते नहीं खकते। लेकिन न खेल – खिलाड़ियों के उत्थान के लिए किसी पार्टी ने आवाज नहीं उठाए, ना ही युवाओं ने प्रतिक्रिया जाहिर की।

अपनी महारत को दिखाने के लिए तरसते बिहार के खिलाड़ीयों के मूलभूत सुविधाओं के नाम पर क्या है? खेत को खेल का मैदान समझकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखानेवाले की वाहवाही तो हर कोई करते हैं, लेकिन छिपी प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए बात इस वख्त भी क्यों नहीं हो रही।

स्कूलों के खेल के मैदान से निकलकर राज्य के नाम को देश स्तर पर प्रतिनिधित्व करने की चाह तो हर किसी को ओलंपिक या काॅमनवेल्थ के समय होती है, तब राज्य सरकार अपने खिलाड़ियों के प्रदर्शन के नाम पर कहीं मुंह छिपाती दिखाई पड़ती है।

देश के हर राज्य ने अपने यहां खेल स्तर को सुधारकर , ध्यान देकर खिलाड़ियों को बढावा देते है, उदाहरण के तौर पर हरियाणा , मध्य प्रदेश इत्यादि की भागीदारी दिन – प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। लेकिन इलकी चिंता न राज्य को हैं , न राज्य के खिलाड़ियों को।

राज्य के मुख्यमंत्री कहते है, उद्योग के लिए समुंद्र चाहिए, शायद खेल को लेकर यह बात कहीं समुद्र किनारे न होेने से तो नहीं।

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