एक मध्यम वर्गीय परिवार का आदमी …….!
जिसने जीवन की सारी गाढ़ी कमाई तो बाल बच्चों को पढ़ाने में लगा दिया.. !
कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ने बाहर भेज दिया ताकि बच्चे अच्छी तरह पढ़ लिख कर बेहतर रोजगार हासिल कर सके…!
लेकिन कोरोना माहमारी ने इस वर्ग के लोंगो को घुटने के बल ला दिया । बच्चे को राजस्थान के कोटा शहर भेजा.. ,इस उम्मीद से कि वह वहां बेहतर पढ़ाई करे …।बच्चे कॉम्पिटिशन की तैयारी कर सके…इंजीनियरिंग या मेडिकल में अच्छी रिजल्ट ला सके…बढियां संस्थानों में उसे पढ़ने का मौका मिले और अभाव ..जिल्लत भरी जिंदगी से उसे निजात मिल सके.. !
सपना देखना बुरी बात नही है,उन सपनों को पूरा करने की कोशिश भी गलत नही है.. अभाव जिंदगी की हिस्सा है पर उन अभाव में कर्ज या कुछ जेवरात बेच कर…दो बक्त के रोटी से कुछ पैसे काट कर कुछ लोंगो ने अपने बच्चों को कोटा,या कुछ ने अन्य महानगरों में पढ़ने के लिए भेज दे तो किया बुरा ..?
लेकिन इस कोरोना काल मे उन बच्चों को कुछ राज्य सरकारों ने बसें भेजकर अपने घर मांगा लिया..तो कुछ सक्षम और पावरफुल लोंगों ने पास बनाकर स्वयं के गाड़ी से वापस ले आया…फंसा तो इन माध्यम वर्ग के बच्चे..जिनके मां बाप के पास ना तो पैसे हैं कि अपनी गाड़ी से ले आये या ना पावर की पास बनाकर वापस ले आये।
बिहार सरकार के अपने तर्क है..।
वहां से बच्चों को वापस लाने से कोरोना फैल जाएगा..लेकिन सरकार यह नही बताती की इसकेलिए जो प्रक्रिया हैं , जांच करने की ।फिर यहां लाकर कोरोनटाइन करने की।वह हैम नही करेंगे। सरकार जहां भयंकर कोरोना फैली थी उस बुहान से कोरोना को सौगात के रूप में बच्चों।के साथ ला सकती हैं लेकिन अपने देश में भूख प्यास से मर रहे….मां बाप से दूर रह कर तड़प रहे बच्चों को बिहार सरकार नही ला सकती।
आज बच्चों को वहां से भागने की विवशता है.. ,और मां बाप की मजबूरी! आखिर इन परिस्थितयों से गरीब के बच्चे ही क्यों जूझ रहे है ?
आज स्थिति यह है कि वे अपने बच्चो को लाने के लिए परेशान इधर उधर भटक रहै हैं । उसकी कोई सुनने वाला नही है क्योंकि व न तो वह जनप्रतिनिधि है और न ही कोई ऑफिसर है।
यह बात बिहार में चर्चा का विषय बना हुआ है । एक ओर सरकार कोरोना की वजह से बच्चो को बिहार लाने देने को तैयार नहीं। उसी बच्चे का सहपाठी जो विधायक का बेटा है वह आ गया अपने घर….अफसर का बेटा है वह आ गया अपने घर …,उसकी माँ उसको घूर घूर कर देख रही है और खुशी से चहक रही है और इस विपदा की घड़ी में वह पूरा परिवार सामर्थ्यवान होने का दंभ भर् रहा है।
वही उसी के पड़ोसी की मां अपने बच्चों को बुलाने के लिये.. अपने घर लाने के लिये ..उसके पिता के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं । लाचार व विवश मध्यमवर्गीय पिता अपने आप को कोश रहा है कि मेरा कसूर सिर्फ इतना है कि मैं मध्यमवर्गीय आदमी हूँ !
ना मैं अफसर हूँ ना मैं विधायक .ना राज नेता हूँ।
यह देखकर हैरानी हो रही हैं कि आखिर सरकार किसके लिये होती है हर आम आदमी जो अपना कीमती वोट देकर चुनता है या फिर चुनने के बाद उनकी परिक्रमा कर रहे कुछ खास लोगो के लिए ,, यह बहुत ही चिंतनीय विषय है ।
दूसरा इस सवाल का जबाब इस वक्त ढूंढना मुश्किल ही नही बल्कि नामुमकिन है कि कैसे बाहर से आने वाले राजनेताओं के बच्चें कोरोना मुक्त और आम आदमी के बच्चें कोरोना कैरियर है ?