मुजफ्फरपुर शहर लीची के मशहूर है, पर किसानों की जिंदगी में लीची की मिठास बस तस्वीरों में ही दिखती है। हर साल मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के लगभग दो से ढाई लाख लीची किसानों की मिठास बिचौलिये ले उड़ते हैं। यही हाल सब्जी उगाने वाले किसानों का भी है।
जिले में किसानों की बहुत बड़ी आबादी लीची और सब्जी की खेती पर आश्रित है। बागवानी विभाग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में लीची किसानों की अनुमानित संख्या 45 हजार थी जबकि सब्जी की खेती करने वाले लगभग एक लाख किसान थे। इस चुनाव में किसान अपने दर्द पर नेताओं को सवालों से घेरेंगे। प्रदेश में लीची उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा ( 1.20 लाख टन ) केवल मुजफ्फरपुर में होता है। अब तक प्रोसेसिंग की कोई व्यवस्था नहीं होने से बिचौलियों के हाथों औने-पौने दाम में बेच देना होता है। मुंबई और दिल्ली में पांच सौ रुपये किलो बिकने वाली लीची यहां किसानों को तीस से चालीस रुपये मे बेचनी होती है। सब्जी के साथ भी किसानों को यहीं समस्या झेलनी पड़ती है। दूसरी बड़ी समस्या सिंचाई की है। सरकारी बोरिंग के फेल होने से खुद सिंचाई की व्यवस्था करनी होती है। इससे लागत बढ़ जाता है।
किसानों के लिए कारगर नहीं है लीची रिसर्च सेन्टर
लीची की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए 2002 में मुसहरी में राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र की स्थापना हुई। किसानों की मानें तो 17 सालों के सफर के बावजूद इसकी क्वालिटी में कोई फर्क नहीं पड़ा। कई देशों में तो अब उत्तराखंड की लीची पहली पसंद बनने लगी है। सालाना चार सौ करोड़ रुपये के बजट वाले इस संस्थान से हजारों लीची किसानों की अपेक्षा पूरी नहीं हो पा रही है।
वादों में सिमटी रह गई कार्गो सेवा की घोषणा
मुजफ्फरपुर के पताही हवाई अड्डे से कार्गो सेवा की घोषणा कई बार हो चुकी है। मगर अबतक यह जमीन पर नहीं उतर पाई है। इस सेवा से न केवल लीची बल्कि सब्जी भी बाहर भेजी जा सकती है। रेल और सड़क मार्ग से लीची और सब्जी बाहर भेजना न केवल महंगा होता है बल्कि उसकी क्वालिटी भी प्रभावित होती है।
कौन कब जीता
1952: अवधेश्वर प्रसाद सिन्हा
1957: श्यामनंदन सहाय
1957: अशोक रंजीतराम मेहता (उपचुनाव)
1962,67: डीएन सिंह
1971: नवल किशोर सिन्हा
1977,80: जार्ज फर्नांडिस
1984: एलपी शाही
1989,91: जार्ज फर्नांडिस
1996,98,99: जयनारायण निषाद
2004: जार्ज फर्नांडिस
2009: जयनारायण निषाद
2014: अजय निषाद
Input : Live Hindustan