छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है. ऐसे में आज छठ पूजा है. छठ पूजा का प्रारंभ दो दिन पूर्व चतुर्थी तिथि को नहाय खाय से होता है, फिर पंचमी को लोहंडा और खरना होता है. उसके बाद षष्ठी तिथि को छठ पूजा होती है, जिसमें सूर्य देव को शाम का अर्घ्य अर्पित किया जाता है. इसके बाद अगले दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और फिर पारण करके व्रत पूरा किया जाता है. तिथि के अनुसार, छठ पूजा 4 दिनों की होती है. इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं. व्रत के दौरान वह पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं. यह व्रत संतान प्राप्ति के साथ-साथ परिवार की सुख-समृद्धि के लिए भी रखा जाता है. छठ पूजा के दौरान बहुत ही विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है.
छठ पर्व पर भगवान सूर्य के साथ उनकी बहन छठी मैय्या का पूजन किया जाता है. मार्कण्डेय पुराण में छठी मैय्या को प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी और ब्रह्मा की मानस पुत्री बताया गया है. पुराण में कहा गया है कि प्रकृति ने अपनी सारी शक्ति को 6 भागों में विभाजित की है. उनका छठा और सबसे मूल भाग छठी मैय्या हैं. इनके पास प्रकृति की उर्वरा शक्ति निहित है. छठी मैय्या के पूजन से संतान की प्राप्ति होती है और संतानों के जीवन में सुख-सौभाग्य आता है. इसलिए शिशु के जन्म के छठे दिन, छठी मैय्या का पूजन किया जाता है. छठ के पूजन में छठी मैय्या की आरती जरूर करनी चाहिए. ऐसा करने से छठी मैय्या खुश होती हैं और संतान सुख का वरदान प्रदान करती हैं.
छठी मैय्या की आरती
जय छठी मैया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहायऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Muzaffarpur Now इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)
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