अम्बेडकर भारत के संविधान निर्माता है. भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला ऱखने वालों में अम्बेडकर सबसे प्रमुख है. जिस संविधान और कानून की दुहाई देकर हम खुद की रक्षा करते है, अम्बेडकर उसी कानून के निर्माता है. अजीब विडंबना है, इतने दूरदर्शी सोच के प्रणेता के विचारों को लोगों ने कम पहचाना और उनकी जाति पहले देख ली. वोटबैंक के लिये जातिवादी राजनीति का अखाड़ा बन चुके भारत ने अम्बेडकर की जाती का इस्तमाल में करने की कोई कसर नहीं बाकी रहने दी, लोगो ने अम्बेडकर जैसे महान ज्ञानी के नाम को बस जातिवादी राजनीति का शस्त्र बन लिया.

 

वोटबैंक की राजनीति में अंधे हो चुके नेताओं ने बखूबी संविधान निर्माता अम्बेडकर को अपने हित की राजनीति के लिये प्रयोग किया, कर्त्तव्य को महान बताने वाले और देश को संविधान देने वाले अम्बेडकर जाति के दलित थे, इसका प्रचार राजीनीति करने वालों ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक किया, ताकि इस दलित महापुरुष को अपने जातिवादी वोटबैंक की राजनीति में कुछ पा सके, हर राजनेता अम्बेडकर से जुड़कर उनको भुनाना चाहता है, लेकिन कोई उनके विचार से नहीं जुड़ता है, जुड़ाव का झूठा मोह बस इस बात का है कि वो जाती से दलित थे और देश में दलित समुदाय का 20 प्रतिशत वोट बैंक है, और यह वोट बैंक यह सुनिश्चित करता है कि भारत की राजगद्दी पर कौन बैठेगा.

 

देश की राजगद्दी पर बैठने के लिये राजनेताओं ने देश को जातिवादी राजनीति का अखाड़ा बना दिया और अम्बेडकर जैसे महापुरुष को भी लेकर इस अखाड़ा में उतर गये, अम्बेडकर के नाम पर राजनीति करने वालो ने अम्बेडकर की दलित से ज्यादा कुछ नहीं समझा, इतने सम्पूर्ण संविधान का निर्माण करने वाले अम्बेडकर को भी नेताओं ने जातिवादी राजनीति का शिकार बना लिया. सबसे अहम बात ये है कि अम्बेडकर के नाम पर राजनीति करने वालो ने ही सबसे कम अम्बेडकर को पढा और जाना है. अम्बेडकर ने क़भी नहीं सोचा होगा कि उनकी जाति के नाम का प्रयोग लोग स्वार्थ की राजनीति में करेंगे.

अम्बेडकर जातिवाद के विरोधी थे, वो हमेशा से जातिमुक्त भारत चाहते थे उनका मान ना था जाती भेदभाव का मूल कारण है लेक़िन लोगो ने ऐसे विचार वाले अम्बेडकर के नाम पर ही जातिवाद को फैलाया. जातिवादी राजनीति का अखाड़ा बन चुके भारत और इस अखाड़ा के पहलवानों ने कभी नहीं सोचा कि जातिवाद की राजनीति से अम्बेडकर का जातिमुक्त भारत का सपना कभी सच नहीं होगा. अम्बेडकर ने संविधान एक वर्ग विशेष के लिये नहीं बनाया वो परम ज्ञानी थे समाज के हर तबक़ा का ख्याल रख कर संविधान बनाया और शायद ये सोच भी उनके जहन में होगी कि एक दिन भारत जातिमुक्त बनेगा, लेकिन मरती मानवता के इस युग में महान अम्बेडकर बस वोटबैंक की राजनीति का शिकार बन कर रह गए है.

अम्बेडकर के नाम पर राजनीति करने वालों ने अपने हित के लिये उनके विचारों को भी खूब मैनिपुलेट किया, उनकी शब्दो को तोड़ मरोड़ कर अपने जातिवादी राजनीति के लिये बखूबी इस्तमाल किया. जिस जातिमुक्त भारत की अम्बेडकर ने कल्पना की थी आज उसी अम्बेडकर के नाम पर जातिगत सेना बनाया जाने लगा है. जातिवाद की राजनीति करने वाले ये नेता ये भूल गए कि उनके इस काम से अम्बेडकर कभी खुश नहीं होंगे बल्कि जातिमुक्त भारत का उनका सपना और कमज़ोर होगा.

अम्बेडकर ने पर हर राजनीतिक दल अपनी रोटी सेंकने में पीछे नहीं रहते क्योंकि आज अम्बेडकर को देश की दूषित राजनीति ने बस दलित चेहरा बना दिया है. जातिमुक्त भारत भारत का सपना देखने वाले लोगों ने ही उन्हें जाति की जंजीरों में मानो जकर दिया है. अम्बेडकर के प्रभावशाली व्यक्तित्व को वोटबैंक की चश्मा से देखने वालों ने लोगों को अम्बेडकर के नाम पर जमकर ठगा है और अब भी यह कारोबार जरूरी है. जातिमुक्त भारत का सपना देखने वाले अम्बेडकर एक प्रचलित नाम है लेक़िन उनके बस कुछ बातों को ही जनता को इतना समझाया गया जिस वजह से उन्हें भी वोटबैंक की जंजीरो में जकरा जा सके.

आज समय की मांग है,अम्बेडकर को पढ़ने की उन्हें समझने की और लोगो को उनके हर आयाम को बताने की ताकि अम्बेडकर का राजनीतिक इस्तेमाल पर रोक लगे उनकी विचारधारा जातिविशेष के लिये बल्कि जातिमुक्त भारत की थी दोनों में फर्क को समझा जा सके.

Abhishek Ranjan Garg

अभिषेक रंजन, मुजफ्फरपुर में जन्में एक पत्रकार है, इन्होंने अपना स्नातक पत्रकारिता...