– जनता हमेशा कहती है, हमारे पास ऑप्शन कहा था, लेकिन इस बार बिहार चुनाव में विकल्प ही विकल्प होने वाले है, कुछ दिन पहले तक हम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के अलावा किसी को मुख्यमंत्री पद के लिए सोच तक नहीं पाते थे, लेकिन इस बार इंटरनेट पर बिहार की राजनीति की ब्यार ऐसी बह रही है, जो सिर्फ बिहार नहीं देश की राजनीति में एक परिवर्तन लाने वाली है. शायद ही किसी राज्य का चुनाव इतना रोचक हुआ हो, चुनाव साल के अंत से पहले होने वाला है लेकिन पी.आर एक्सरसाइज ऐसी जबरदस्त चल रही है मानो, बिहार में इसी हफ्ते चुनाव हो, बिहार को बदलाव के सपने दिखाने वाले ढ़ेरो अभियान तैयार है- बिहार बदले ना बदले, चुनाव का मिजाज़ बदल गया है और प्रचार का अंदाज भी बदल गया है, इसमें सबसे ज्यादा चांदी अगर किसी की है, तो वो है पी. आर वाले लोगो की.
सोसल मीडिया पर चलने वाले कैंपेन जबरदस्त छाये है-
प्रशान्त किशोर का बिहार की बात, तेजस्वी का – तेज रफ़्तार तेजस्वी सरकार, चिराग पासवान का बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट, पुष्पम प्रिया का प्लूरल्स, ढ़ेरो अन्य सब के सब क्रिएटिव अंदाज में चुनावी मैदान में उतर चुके है – सोशल मीडिया को देख कर तो यहीं लगता है रण भयंकर होने वाला है, खैर जिस तरह 2014 के चुनाव ने प्रचार का तरीका बदला है, ठीक वैसे ही 2020 का चुनाव प्रचार बहुत कुछ उदाहरण सेट करने वाला है, वैसे बिहार नेताओ का राज्य रहा है यहां हर गली मुहल्ले में नेता पाए जाते है, इस बीच सोशल मीडिया और पी.आर के धुरंधर क्या जादू कर पाएंगे ये वक्त बताएगा.
वैसे आपके जानकारी के लिए बताएं कि बिहार में डिजिटल लिट्रेसी बहुत कम है, यहां अब भी लोग इंटरनेट से ज्यादा अखबार और टीवी पर निर्भर है, जो शहर हम देख रहे है सिर्फ उस शहर का नाम बिहार नहीं है, बिहार गांव का राज्य है, यहां नेट से ज्यादा रोटी और शिक्षा की जरूरत है, पुराने लोगो में बहुत से लोग अनपढ़ है, बैक में साइन की जगह पर अंगूठा का निशान लगाने वाले बहुत मिल जाएंगे, ये मान लीजिए इलीट क्लास से ज्यादा गरीब गुरबा का बिहार है – सोशल मीडिया पर चलने वाली कंपेन शहरी युवाओं पर असर कर सकती है लेकिन जमीनी लोगो को तो सड़को पर घूमने वाले नेता ही पसन्द है, बिहार की राजनीति समझना बहुत मुश्कील है, बिहार की बात नाम से प्रशांत किशोर बिहार के बदहाली का आंकड़े सोशल मीडिया पर डाल वर्तमान सरकार को कोश रहे है, बाकी लोगो का भी अपना अपना फंडा है.
खैर- बिहार बहुत हद तक अगर बदला है तो एक बड़े पैमानें पर बदलवा की और जरूरत है, पैरवी और भ्रष्टाचार का खेल अभी भी खुलेआम चलता है, इन चीज़ो को सत्ता वाले खत्म कर सके तो बड़ी मेहरबानी हो, बिहार पुलिस ना जाने किस अकड़ में रहती है कुछ प्रशासनिक पदाधिकारी ठीक है मगर बहुत ऐसे है जो जात और हैसियत देख कर कारवाई करते है, उन्हें समझना चाहिये सरकार की जरूरत गरीबो को है अमीरों के लिये तो सभी सुविधाएं प्राइवेट तौर पर उपलब्ध है, सरकारी स्कूल में गरीब पढ़ते है, सरकारी अस्पताल में भी गरीब जाते है, पैसो वाले के लिए तो बड़े बड़े इंटरनेशनल स्कूल और मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल है..
यहाँ इंटरनेट के पैसे देने वाले अब भी कम लोग है क्योंकि उन्हें रोटी और दवा के लिए पैसे जमा करने है, साइकिल से चलने वाले लोगों की संख्या यहां अधिक है क्योंकि रोज गाड़ी में पेट्रोल हर कोई नहीं भरा सकता है, वैसे दिल्ली – मुम्बई और पटना में रहने वाले पोलिटिकल और पी.आर गुरु बस इंटरनेट वाली राजनीति समझ सकते है बिहार की असलियत तो बिहार के गांव में रहने वाला इंसान समझ सकता है, यहां कई घरों में अबतक टीवी खरीदना सपना है वहां इंटरनेट पर सपने बेचने से किसको कितना फायदा मिलेगा ये चुनाव के बाद परिणाम बताएगा.