मुजफ्फरपुर। कोरोना और उसके बाद लॉकडाउन ने कई जख्म दिए। हो सकता है समय के साथ उनमें कुछ भर भी जाए। लेकिन, कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें हमें साथ लेकर जीना होगा। विश्व साइकिल दिवस के दिन एटलस साइकिल का उत्पादन पूरी तरह से बंद होना कुछ ऐसा ही है। इससे श्रमिकों की बेरोजगारी एक पहलू है। किंतु, एटलस साइकिल से लाखों लोगों की यादें जुड़ी हैं। कई लोगों ने अपना संघर्ष इसके साथ किया। कई बच्चाों को तभी अकेले घर से बाहर जाने की अनुमति मिली, जब उसने साइकिल चलानी सीख ली। किसी को परीक्षा में बेहतर करने पर बतौर इनाम एटलस साइकिल मिली थी। न जाने क्या, क्या…। अब जबकि प्रबंधन की ओर से इसके उत्पादन को बंद कर दिया गया है। आइये जानते हैं पाठकों के स्मृतिकोष में इसकी कौन सी यादें संरक्षित हैं।

अमर सिनेमा के पास से सपना अग्रवाल ने इस तरह अपनी भावना व्यक्त कीं। कहती हैं, सबसे सुंदर, सबसे सस्ता/सबसे अच्छा, सबसे बढ़िया/ मेरी एटलस साइकिल, याद सताती है मुझे उसकी/ पहले तो मैं चल भी नहीं पाती थी/ क्या बताऊं जबसे मिली यह एटलस/ पंख लगाए उड़ जाती थी मैं।

मीनापुर से आनंद मोहन कहते हैं कि साइकिल बिहार के हर घर का हिस्सा है। यहां इसका कारोबार काफी बड़ा है। बंद करने की जगह इसे बेहद बड़े स्तर पर खड़ा करने की आवश्यकता है। जिससे लोगों को रोजगार मिलेगा और सरकार की आय बढ़ेगी।

भगवानपुर,मुजफ्फरपुर के सर्वेश रंजन की बचपन की याद इससे जुड़ी है। कहते हैं कि मुझे पहली बार किसी ने गिफ्ट दिया तो वह साइकिल ही थी। मेरे नानाजी स्व ब्रजनंदन चौधरी जी(खरौना) ने एटलस साइकिल दी थी। जो मुझे मेरे उपनयन संस्कार के मौके पर मिला था।

युवा कांग्रेस,बिहार के प्रदेश सचिव आसिफ इकबाल ने कहा कि एटलस साइकिल मेरी पहली सवारी थी। छात्र जीवन में मैंने इसकी सवारी का सुख पाया हूं। इसका बंद होना दुखद है।

बालूघाट, मुजफ्फरपुर के संतोष कुमार कहते हैं कि मेरी पहली साइकिल एटलस ही थी। इसलिए मैं हमेशा उसे मिस करूंगा।

ब्रह्मपुरा, मुजफ्फरपुर के ही डॉ.ए.हसन ने कहा कि एटलस केवल साइकिल ही नहीं वरन हमारी पहचान थी। पहला बेस्ट फ्रेंड। मैं इसे हमेशा याद करूंगा।

File:Hero Bicycle at Bhadrachalam.jpg - Wikimedia Commons

मुजफ्फरपुर के संजय कुमार ने कहा कि भाजपा की रैली में मैं 1994 में बोधगया से पटना गांधी मैदान एटलस साइकिल से ही पहुंचा था। उस समय 100 किलोमीटर की दूरी तय की थी। इस साइकिल की चाल काफी हल्की होती थी। मेरे घर के सभी सदस्यों ने इसकी सवारी का अानंद लिया है। मैं सरकार से मांग करता हूं कि इस कंपनी को चालू करवाया जाए।

अभी प्रयागराज में रहकर पढ़ाई कर रहीं चंपारण निवासी शुभम कुमारी साइकिल सच्चा मित्र मानती हैं। कहती हैं कि मेरे जीवन में साइकिल बहुत कठिनाई से शामिल हुई। लेकिन, अब मैं इसे छोड़ने वाली नहीं। प्रयागराज इसे साथ लेकर ही जाउंगी। हर रोज मै साइकिल चलती हूं।

मुजफ्फरपुर के रंजन कुमार बताते हैं कि मध्य विद्यालय की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद घर से चार किमी दूर हाईस्कूल में मेरा नामांकन कराया गया। इसके बाद पिताजी ने एक एटलस साइकिल खरीद दी। आज बाइक या अन्य सवारी चलाने में जो सुख है उससे कई गुना अधिक आनंद उस साइकिल की सवारी में मिलता था।

बावन बिगहा, मुजफ्फरपुर के विद्यानंद झा कहते हैं कि 1970 के आसपास जन्म लेनेवालों की जिंदगी में किसी न किसी रूप में एटलस साइकिल जरूर जुड़ी रहती थी। सौभाग्यवश मैं भी उन्हीं में एक हूं। एटलस साइकिल पास में होना मतबल सुरक्षित यात्रा की गारंटी होना था। यह स्वाभिमान का प्रतीक भी था।

गोविन्द फुलकाहां, कांटी के सानू कहते हैं कि अभी के दौर मे इसका इस्तेमाल बहुत कम हो गया था। लेकिन, विकास को गति देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

ताजपुर, समस्तीपुर के मोहम्मद लुकमान कहते हैं कि एक ओर आत्मनिर्भर होने की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर एटलस जैसी कंपनी बंद हो रही है।

बीजेवाइएम के आशीष कुमार कहते हैं, ज़िन्दगी कैसे दो पहियों पे चलती है/ बता दिया था तुमने।/ जब पहली बार गिरे थे ना/तभी उठना सिखा दिया था तुमने।/पीछे बैठा शख्स कभी बोझ नहीं लगता/साथी का असली मतलब/बता दिया था तुमने।/हर पैडल के बाद कम होती दूरी/मेहनत और मंज़िल का रिश्ता/समझा दिया था तुमने।/ आएगा जो कुछ/ज़िन्दगी में काम मेरे/वो सब कुछ बचपन में ही/ सिखा दिया था तुमने।।

हाजीपुर से अजित कुमार कहते हैं कि एटलस साइकिल के मडगार्ड पर लोगो बचपन में मुझे रोमांचित करता था। मैंने चौथी क्लास में साइकिल सीखी। उस दौरान पूरी रात कल्पना करता था कि कल किस ढलान से शुरू करना है। पिताजी ऑफिस चले जाते थे और मैं दिनभर साइकिल के साथ। एटलस साइकिल को यादकर रोमांचित हो जाता हूं। बाद में बाइक भी सीखी लेकिन, साइकिल की बात ही कुछ और थी। उस समय लोग सम्मान के साथ एटलस साइकिल होने की बात कहते थे। अब बस यादें ही रह जाएंगी।

महात्मा गांधी केंद्रीय विवि, मोतिहारी के छात्र राहुल कुमार ने कहा कि हमलोगों ने एटलस साइकिल की बहुत सवारी की है। यह किसी समय सोशल स्टैटस का हिस्सा थी। कहते हैं, मेरे नाना कहते थे कि जब विवाह में किसी को एटलस साइकिल और घड़ी मिलती थी तो वह चर्चा का विषय होता था। उस समय एटलस साइकिल से यात्रा शान की बात हुआ करती थी।

गांधी स्वराज आश्रम कमलपुरा, पारू, मुजफ्फरपुर के राष्ट्रीय अध्यक्ष रानू नीलम शंकर कहते हैं कि मैंने जब मैट्रिक की प्ररीक्षा मे प्रथम स्थान लाया था तो मेरी दादी मां ने एटलस साइकिल खरीद कर दी थी। अब इसे दोबारा कभी नहीं देख पाउंगा।

Input : Daink Jagran

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