कोविड-19 की शुरुआत के साथ न्यूयॉर्क में हर हफ्ते ट्रेनों से आने-वाले यात्रा पर विराम लगा. लगभग 5 महीने बाद यहां जीवन सामान्य रफ्तार पर आने की कोशिश में है, लेकिन तब भी ट्रेनें इस्तेमाल करने वालों की संख्या पहले की तुलना में 20 प्रतिशत रह गई है. हालांकि दुनिया के कई शहर हैं, जो इस मामले में बेहतर कर रहे हैं.

क्या देखा जा रहा है?

न्यूयॉर्क टाइम्स की मदद से हुए सर्वे में सामने आया कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आवाजाही उतनी खतरनाक नहीं, जितनी पहले सोची जा रही थी. यात्रा अगर मास्क पहनें और भीड़ पर नियंत्रण रखा जा सके, तो कोरोना का खतरा काफी कम हो जाता है. इसी तरह से दूसरे शहरों को, जैसे पेरिस को ही लें तो वहां मई से जुलाई के बीच 386 मामले आए, लेकिन कोई भी केस पब्लिक ट्रांसपोर्ट से जुड़ा हुआ नहीं था. टोक्यो और ऑस्ट्रिया में भी यही देखा गया.

हालांकि अभी ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कोरोना संक्रमण रहने के दौरान बसों या ट्रेन से ट्रैवल कितना सेफ है. तब भी जीवन को पटरी पर लाने के लिए यातायात दोबारा शुरू करने के प्लान बनाए जा रहे हैं. भारत में भी लंबी दूरी की ट्रेनें फिलहाल बंद हैं, लेकिन 12 अगस्त के बाद इनपर कोई फैसला हो सकता है. इसी तरह से दिल्ली मेट्रो के लिए भी सेफ कम्युट के प्लान बनाए जा रहे हैं.

पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कोरोना के दौरान बसों या ट्रेन से ट्रैवल कितना सेफ है- सांकेतिक फोटो (Photo-pixabay)

बनाए जा रहे नियम

बहुत सी या मान सकते हैं कि लगभग सभी जगहों पर अगर आप पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा करें तो मास्क अनिवार्य है. इसके बिना आपको एंट्री नहीं मिलेगी. दूसरे राज्यों में हवाई सफर के दौरान यात्रियों के मोबाइल पर आरोग्य सेतु एप का होना जरूरी है. इससे इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि आसपास कितने लोग संक्रमित हो सकते हैं. साथ ही थर्मल टेंपरेचर भी जांचा जाता है. अगर किसी के शरीर का तापमान ज्यादा हो तो उसे प्रवेश की इजाजत नहीं मिलती है.

अब ध्यान दें गाड़ियों के इंतजाम पर तो पाएंगे कि गाड़ी की सीटों को लगातार सैनेटाइज किया जा रहा है. बैठने की व्यवस्था इस तरह से हो रही है कि दो यात्रियों में सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहे. कई स्टडीज इस बात पर भी हो रही हैं कि कितनी दूरी पर बैठे यात्रियों में संक्रमण का खतरा रहता है. साथ ही साथ ट्रेनों में हवा के बहाव पर भी ध्यान दिया जा रहा है.

हवा के सर्कुलेशन पर ध्यान

जैसे न्यूयॉर्क में सब-वे में वेंटिलेशन सिस्टम काफी बेहतर किया गया है. इससे 1 घंटे में 18 बार हवा साफ होकर बहती है. ये किसी रेस्त्रां से एयर सर्कुलेशन से बेहतर है, जहां 1 घंटे में 8 से 12 बार हवा रिसर्कुलेट होती है. वहीं दफ्तरों के हाल सबसे खराब हैं, जहां आमतौर पर 1 घंटे में 6 से 8 बार एयर प्यूरिफिकेशन का सिस्टम होता है. टोक्यो मेट्रो में इतने सारे इंतजाम तो नहीं लेकिन वहां खिड़कियां खुली रखी जा रही हैं. साथ ही टिकट मशीन लगातार डिसइन्फेक्ट हो रही है.

गाड़ियों के इंतजाम पर तो पाएंगे कि गाड़ी की सीटों को लगातार सैनेटाइज किया जा रहा है

अनलॉकिंग के दौर को ध्यान रखते हुए लगातार कई स्टडीज हो रही हैं. इनमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर खास ध्यान दिया जा रहा है. जैसे एक स्टडी चीन में कोरोना का लॉकडाउन खुलने के बाद वहां की हाईस्पीड ट्रेनों पर की गई. इसमें चाइनीज सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के साथ चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस ने भी काम किया.

इंडेक्स पेशेंट से दूरी

समूह में बैठे मरीज को इंडेक्ट पेशेंट या पेशेंट जीरो कहा गया. स्टडी में निकलकर आया कि कोरोना के मरीज यानी इंडेक्ट पेशेंट से पांच सीट आगे-पीछे लोगों से लेकर आजू-बाजू की तीन सीटों तक पर बैठे यात्रियों में संक्रमण का औसत 0.32 प्रतिशत होता है. वहीं अगर कोई यात्री इंडेक्ट पेशेंट के बगल में ही बैठा हो तो उसे संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा 3.5 प्रतिशत तक होता है.

घंटे से हिसाब से बढ़ता है खतरा

हालांकि ये स्टडी 3 घंटे से कम दूरी के यात्रियों पर हुई. अगर यात्रा 3 घंटे या इससे ज्यादा हो तो इसके परिणाम अलग होंगे. खासकर इंडेक्स पेशेंट के बगल में बैठे स्वस्थ व्यक्ति को संक्रमण का खतरा ज्यादा रहेगा. औसत के आधार पर ही ये देखने की कोशिश की गई कि यात्रा के समय के साथ खतरा कितना बढ़ता है. इस दौरान ये माना गया कि सफर के हर घंटे के साथ कोरोना संक्रमण का खतरा 1.3% तक बढ़ जाता है.

मास्क न पहना जाए तो संक्रमण का खतरा काफी ज्यादा होता है- सांकेतिक फोटो (Photo-pixabay)

वैसे स्वस्थ लोगों से मरीज की दूरी के अलावा ये बात भी संक्रमण की दर कम या ज्यादा कर सकती है कि मरीज और दूसरों ने हाइजीन का कितना ध्यान रखा है. अगर मास्क न पहना जाए या हाथों को नाक, कान या आंखों के पास ले जाया जाए तो संक्रमण का खतरा काफी ज्यादा हो सकता है.

फ्लाइट में भी इंडेक्स पेशेंट से दूरी के मायने

ट्रेन की तरह ही फ्लाइट में भी कोरोना संक्रमण का खतरा रहता है. हालांकि ये अपेक्षाकृत सेफ मानी जा रही है. इसके पीछे अमेरिका की वो स्टडी है जो प्रतिशत में खतरे का आकलन करती है. Emory University और Georgia Tech की ये स्टडी साइंस जर्नल PNAS में आई. ये बताती है कि जैसे तमाम एहतियात के बाद भी कोई मरीज फ्लाइट में दाखिल हो गया तो उससे बीमारी कितनी दूर तक और कितने प्रतिशत तक असर कर सकती है.

जैसे मान लें कि 14वें सीट नंबर पर कोई मरीज है तो उसके खांसने-छींकने पर वायरस के फैलने का सबसे ज्यादा खतरा उसके आगे और पीछे की दो-दो सीटों पर होगा. इससे दूर बैठे यात्रियों तक पहुंचते हुए खतरा 1% हो जाएगा. वहीं फ्लाइट क्रू, जो फ्लाइट में यात्रियों की मदद के लिए लगातार घूमते रहते हैं, उन्हें 5% से 20% तक खतरा होता है. वहीं हर मिनट के साथ वायरस के फैलने का खतरा 1.8% रहता है.

Input : News18

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