बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार  (Chief Minister Nitish Kumar) ने बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बिहार के पंचायतों और जिला परिषद के जनप्रतिनिधियों के साथ ही राज्य के लोगों को संबोधित किया. उन्‍होंने जनता को कोरोना वायरस संक्रमण (Corona virus infection )के दौरान सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों से अवगत कराया और आगे की योजनाओं की भी जानकारी दी. सीएम नीतीश ने बताया कि आने वाले समय में राज्‍य के स्‍कूल-कॉलेजों में पढ़ाई शुरू होगी और सरकार बाहर से लौटे सभी लोगों को रोजगार देगी. इस संबोधन के दौरान उन्होंने एक और बात कही जो काबिले गौर है. उन्होंने दूसरे राज्‍यों से लौटकर बिहार (Bihar) आ रहे श्रमिकों को ‘प्रवासी श्रमिक’ (Migrant Labour) कहे जाने पर ऐतराज जताया.

नीतीश कुमार ने कहा कि जब यह देश एक है और लोग एक जगह से दूसरी जगह सेवा करने गए हैं तो यह अच्छी बात नहीं है कि जब बिहार के बाहर से लोग वापस आएं तो उन्हें प्रवासी कहा जाए. सीएम नीतीश ने इसके साथ ही कहा कि हां, जब वो देश के बाहर जाएं तो उन्‍हें आप ‘प्रवासी’ कह सकते हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि जहां ये श्रमिक काम करते थे, वहां उनका ध्यान नहीं रखा गया. हम ऐसी व्यवस्था कर रहे हैं कि रोजगार के लिए किसी को बिहार से ना जाना पड़े. कोई अपनी मर्जी से जाना चाहता है तो जा सकता है. सीएम नीतीश जब ये बात कह रहे थे तो लग रहा था कि श्रमिकों की नाराजगी का उन्हें अहसास है और आने वाले चुनाव को लेकर वे सशंकित भी हैं.

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राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार की ये कवायद इसलिए भी है कि ये श्रमिक इस बार चुनाव में अहम रोल निभाने वाले हैं और बिहार में सियासी जीत-हार का रास्ता इनके समर्थन या विरोध पर काफी निर्भर करेगा. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रेम कुमार कहते हैं कि जब मजदूर पूरे देश में पैदल चल रहे थे तो सबसे पहले योगी आदित्यनाथ ने मजदूरों के इमोशन्स को समझा और मदद को सबसे पहले आगे आए, लेकिन नीतीश कुमार के मन में अपने ही लोगों के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं दिखी.

प्रेम कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार ने उल्टे सेंट्रल लॉकडाउन की दलील दी जिसे खुद केंद्र सरकार ने कभी नहीं कहा. जाहिर है नीतीश कुमार ने अपने लोगों की भावना को समझा ही नहीं. या यूं कहें कि नीतीश कुमार यहां निर्दयी बने रहे और इमोशनल ग्राउंड पर वे फेल हो गए. जब सारी राज्य सरकारें योगी आदित्यनाथ की दिखाई राह पर सब चल पड़े तो मजबूरी में उन्हें भी इसी रास्ते पर आना पड़ा.

बकौल प्रेम कुमार मजदूरों को प्रवासी कहने पर नीतीश की नाराजगी अच्छी बात है, लेकिन उनकी ये भावना तब अच्छी मानी जाती जब वे वक्त पर इमोशन दिखाते. अब प्रवासी मजदूर नहीं कहकर नीतीश कुमार सिर्फ और सिर्फ उस संबंध को एक बार फिर स्थापित करने की कवायद कर रहे हैं जो लॉकडाउन के दौरान टूट गया है.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि एक नीतीश कुमार ने जब ये बात कही थी तो वास्तव में विकट स्थिति थी. लेकिन मजदूरों की अपनी समस्याएं भी थीं, जिसे भांपने में न सिर्फ नीतीश कुमार बल्कि केंद्र की सरकार भी नाकाम रही. जिस तरीके से प्रवासी मजदूरों को प्रवाह बिहार वापसी के लिए होने लगा इसका अहसास तो वास्तव में किसी को भी नहीं था.

अशोक शर्मा कहते हैं कि जब श्रमिक दूसरे राज्यों से बिहार लौट रहे थे तो बिहार सरकार ने ये शर्त लगा दी कि जो क्वारंटीन सेंटर में रहेगा उसे ही टिकट खर्च के साथ 500 रुपये मिलेंगे. जब महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों ने अपने मजदूरों का खर्च वहन किया तो बिहार सरकार ने तब पहल क्यों नहीं की.

बकौल अशोक कुमार शर्मा जब नीतीश कुमार को ये अहसास हो गया कि अब दूसरे राज्यों से आने वाले बिहारियों को रोकना मुमकिन नहीं है तो उन्होंने एक के बाद एक कई ऐलान किए. क्वारंटाइन सेंटर में रहने वालों को बर्तन, कपड़ा साथ ले जाने की घोषणा की. इसके साथ ही सबको रोजगार दिए जाने की बात भी बार-बार कही जा रही है.

अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने प्रवासी कामगारों के मुद्दे को उठाया और 2000 बसें भेजने का ऐलान कर लोगों के सेंटिमेंट को छूने की कोशिश की, वह नीतीश कुमार के लिए परेशानी का सबब बनी. यह भी एक वजह है कि राज्य में बड़े पैमाने पर राशन कार्ड बनवाने का अभियान शुरू किया गया है जिससे इन मजदूरों को राहत मिले और थोड़ी नाराजगी कम हो.

जाहिर है अब जो नीतीश कुमार मरहम लगाने की कोशिश कर रहे हैं ये सब कवायद उसी डर का नतीजा है जो बिहार चुनाव पर असर डाल सकता है. दरअसल नीतीश कुमार जानते हैं कि अगर तीस लाख वोट में पचास प्रतिशत भी किसी एक ओर शिफ्ट होगा तो ये बिहार का राजनीतिक खेल बनाने-बिगाड़ने का अहम कारण बन जाएगा.

Input : News18

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