दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में शास्त्रीय संगीत और तबला-सरोद, तबला-शहनाई की युगलबंदी सुनने के लिए कभी भारी भीड़ जुटा करती थी। देश के नामचीन कलाकारों की प्रस्तुतियों का रसास्वादन करने के लिए शहर और आसपास के श्रोता बड़ी शिद्दत से जुटते थे। लेकिन 1980 के बाद इस परंपरा पर विराम लगा। अब उसकी जगह धूम-धड़ाका वाले फिल्मी गीतों की पैरोडी पर आधारित संगीत-नृत्य के कार्यक्रम आयोजित होने लगे हैं।

दशहरा में सप्तमी से दशमी तिथि के बीच शाम ढलते ही कल्याणी चौक पर शास्त्रीय गीत-संगीत का मंच गुलजार हो उठता था। लेकिन अब यह बात कहां है! इतना कहकर भावुक हो जाते हैं प्रसिद्ध ध्रुपद गायक पंडित अरुण कुमार मिश्र। 66 वर्षीय पंडित मिश्र बताते हैं कि वे दस साल की उम्र से यहां दुर्गा पूजा पर होने वाले शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में शामिल होते रहे थे। कहते हैं कि यहां आने वाले पुराने कलाकार जब दिल्ली, वाराणसी या अन्य शहरों में कार्यक्रम के दौरान मिलते हैं तो मुजफ्फरपुर की पुरानी महफिल को याद करते हैं।

कब हुई सुबह नहीं रहा भान: कल्याणी चौक के समारोह के गवाह रहे पूर्व कुलपति डॉ.रवींद्र कुमार रवि कहते हैं कि इस आयोजक के मुख्य कर्ता-धर्ता संगीत मर्मज्ञ उमाशंकर प्रसाद होते थे। उस परंपरा को हृदय नारायण जी ने भी बरकरार रखी। डॉ. रवि कहते हैं कि एक बार तो ऐसा हुआ कि मंच पर प्रसिद्ध गायक पंडित सीताराम हरि डांडेकर, ठुमरी गायिका शोभा गरुटू सितार वादक उस्ताद रईस खान, युवा तबला वादक उस्ताद कुमार लाल मिश्र, उस्ताद वीरेन्द्र वर्मा सरीखे कलाकार उसमें भाग ले रहे थे। ऐसी महफिल जमी कि अगली सुबह धूप निकली तब जाकर श्रोता वहां से उठे। कल्याणी के अतिरिक्त धर्मशाला चौक व अन्य जगहों पर भी शास्त्रीय संगीत के आयोजन होते थे।

तालमणि सम्मान प्राप्त तबला वादक भारतीय कला पीठ मुजफ्फरपुर के सचिव डॉ.राकेश रंजन बताते हैं कि दशहरा में होने वाले संगीत समारोह की परंपरा से यहां माहौल जीवंत था। अब तो इसकी जगह आर्केस्ट्रा जैसे कार्यक्रमों का दौर चल रहा है। तबला वादक नीलकमल कहते हैं कि शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम की समृद्ध परंपरा थी। कल्याणी के आयोजन में तो समय का भान भी उस समय की राग प्रस्तुति से होता था। वागेश्वरी, यमन, भैरवी शुरू होने पर, कितना समय हुआ इसकी चर्चा होने लगती। ऐसा नहीं कि आज शास्त्रीय संगीत के श्रोता नहीं है। लेकिन यहां कार्यक्रम की परंपरा लुप्त हो गई।

 

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई सुनकर मुग्ध हो उठते थे लोग

अलग-अलग समय में शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान,गायक पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, बड़े गुलाम अली खान, अमीर खां, पंडित सीताराम हरि डांडेकर, पंडित सियाराम तिवारी, बेतिया घराना के पंडित उमाचरण मल्लिक,गोरख मल्लिक, गुंज बिहारी मल्लिक, दरभंगा घराने के पंडित रामचतुर मल्लिक, वाराणसी के प्रसिद्ध तबला वादक पंडित अनोखेलाल मिश्र, पंडित किशन महराज, पंडित समता प्रसाद मिश्र उर्फ गोदई महराज, सारंगी वादक पंडित गोपाल मिश्र, नृत्यांगना पदम श्री सितारा देवी, यामनी कृष्णमूर्ति, गोपीकृष्ण, शंभू महराज, बिरजू महराज सहित गई नामचीन कलाकार यहां आते रहे।

Input : Dainik Jagran | Amrendra Tiwari

I just find myself happy with the simple things. Appreciating the blessings God gave me.